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ओव्हरलोडिंग, सडक़ व पटरियों पर खतरा

कोरबा ! एसईसीएल की खदानों से उत्खनित कोयला मांग अनुरूप आपूर्ति करने के लिए रेलवे रेक से किये जा रहे परिवहन में घोर लापरवाही बरती जा रही है।

ओव्हरलोडिंग, सडक़ व पटरियों पर खतरा
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कोयले के भराव में एसईसीएल परिवहन में रेलवे लापरवाह?
कोरबा ! एसईसीएल की खदानों से उत्खनित कोयला मांग अनुरूप आपूर्ति करने के लिए रेलवे रेक से किये जा रहे परिवहन में घोर लापरवाही बरती जा रही है। रैक में ओव्हरलोड कोयला भरा जा रहा है जो रास्तेभर रेल की पटरियों और क्रासिंग पर गिरता जाता है। ऐसे में क्रासिंग की सडक़ों और रेल मार्ग पर खतरे की संभावना भी बढ़ जाती है और इसके साफ -सफाई के लिए अतिरिक्त खर्च का भार भी रेलवे को उठाना पड़ता है। इसके अलावा रेल पांत पर भी अतिरिक्त भार पडऩे से उसके क्षतिग्रस्त होने की संभावना बनी रहती है जिससे दुर्घटना हो सकती है।
एसईसीएल की खदानों से निकाला गया कोयला लोडिंग पाइंट पर रखा जाता है जिसे रेलवे साइडिंग कहते हैं, यहां एसईसीएल की ओर से अधिकारी नियुक्त रहते हैं और उनकी देखरेख में लोडिंग एजेंसी के कर्मचारी कोयले का लदान रेलवे रैक में कराते हैं। लोडिंग साइड पर ठेका पद्धति से लोडिंग एजेंसी काम करती है, लेकिन उन पर निगरानी की जिम्मेदारी एसईसीएल के मौजूदा अधिकारी की होती है ताकि निर्धारित मात्रा से ज्यादा कोयला न लादा जा सके। रेलवे साइडिंग से कोयला मालगाड़ी के रैक में लादकर गंतव्य तक पहुंचाने का जिम्मा रेलवे का होता है। पिछले कई महीनों से एसईसीएल के अधिकारी और रेलवे की लापरवाही कही जाए कि वैगन के ऊपर तक कोयला भरकर परिवहन किया जा रहा है। वैगन के ऊपर का यह कोयला रास्तेभर गिरता जाता है। ज्यादा परेशानी पुराना पवन टाकिज रेलवे क्रासिंग पर देखी जा सकती है जहां कोयले के चूरे सहित बड़े-बड़े टुकड़े भी गिरते हैं। संजयनगर रेलवे क्रासिंग और इसके आगे लोगों के द्वारा लकड़ी के सहारे इन ओव्हरलोड कोयले को बेधडक़ होकर गिराया जाता है। इस तरह ओव्हरलोड कोयला सडक़ और रेल पटरियों के बीच गिर रहा है। मानिकपुर खदान से सीएसईबी संयंत्र के लिए जाने वाले रेल लाईन से परिवहन के दौरान सीएसईबी चौक रेलवे क्रासिंग पर ही ऐसे ही कोयला गिरता रहता है। पुराना पवन टाकिज रेलवे क्रासिंग की सडक़ पर तो कोयले की परत सी बिछ गई है जिससे गुजरते वक्त दुपहिया वाहन फिसलते हैं। स्थानीय निवासी गोविंद सरकार, कार्तिक कुमार साहू, दीपकपुरी गोस्वामी ने ओव्हरलोड के लिए रेलवे और एसईसीएल को जिम्मेदार ठहराया।
0 महीनों से पड़े ढेर को आज हटवाया, फिर भी बिखरा है कोयला-फोटो-4केआर-2
पुराना पवन टाकिज क्रासिंग पर गिरे कोयले को गेटमेन के द्वारा स्वयं खींचकर एक जगह किनारे इकट्ठा किया जाने लगा और कोयले के बड़े टुकड़े आसपास के लोग जलाने के लिए बीनकर ले जाते रहे। कोयले के चूरे का ढेर मुख्य सडक़ के दोनों ओर इकट्ठा होता गया और टीले का आकार लेने लगा। कोयले का ढेर धीरे-धीरे सडक़ की ओर बढ़ता गया व आवगमन में भी दिक्कत होने लगी। इस विषय में कोरबा में पदस्थ क्षेत्रीय रेल प्रबंधक आदित्य गुप्ता एवं पवन टाकिज रेलवे क्रासिंग के गेटमेन से चर्चा करने के कुछ दिन बात बुधवार की दोपहर दोनों ओर के कोयले के ढेर को मजदूर लगाकर हटवाया गया। ढेर तो हटवा दिये लेकिन अभी भी सडक़ पर कोयला चूरा की मोटी परत बिछी हुई है।
ओव्हरलोड नहीं समझ का भ्रम- एआरएम
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के कोरबा स्टेशन में पदस्थ क्षेत्रीय रेल प्रबंधक आदित्य गुप्ता ने चर्चा करने पर बताया कि रेल रैक में ओवरलोड नहीं रहता, बल्कि यह समझने का भ्रम है। प्रत्येक कोल साइडिंग में लोडिंग पाइंट पर 500 मीटर के दायरे पर कांटाघर है जहां से जांच होकर रेल रैक गुजरते हैं। जूनाडीह, गेवरा, कुसमुंडा, दीपका, मानिकपुर साइडिंग में जांच होती है। रेल रैक के बक्से की क्षमता के ऊपर दिखने वाला कोयला ओवरलोड नहीं होता। कई बार बड़े आकार का कोयला ज्यादा होने के कारण यह ऊपर तक भरा जाता है, लेकिन जितना वजन निर्धारित रहता है उतना ही कोयला रखते हैं। हर वजन की गाड़ी का स्पीड भी तय किया गया है। यह भी कहा कि कई बार साइडिंग पर जेसीबी से कोयला लदान के दौरान अगल-बगल के गैप को भरा नहीं जाता और कोयला ऊपर तक दिखता है तो जो मालगाड़ी के चलने से होने वाली हलचल और कई जगह रेलवे ट्रैक के ऊंचा-नीचा होने के कारण रैक एक तरफा झुकने से उत्पन्न असंतुलन की वजह से कोयला गिरता है। कई लोग बांस व लकड़ी के सहारे कोयला गिराते हैं ऐसे लोगों की रोकथाम के लिए स्थानीय पुलिस से बात की गई है। रेलवे ट्रेक पर गिरे कोयले को पोर्टर के जरिये साफ कराया जाता है।
हर दिन 35-40 रैक कोयला परिवहन
एसईसीएल का कोयला उसके खरीदारों, संयंत्रों तक पहुंचाने के लिए रेलवे के द्वारा प्रत्येक दिन 35-40 रैक कोयला परिवहन किया जाता है। इस आंकड़े में तकनीकी व अपरिहार्य करणों से कुछ फेर बदल भी होता रहता है औसतन 40 रैक कोयला हर दिन परिवहन हो रहा है। एक रैक में 50-58 वैगन रहती हैं, वित्तीय वर्ष की समाप्ति के दौरान उठाव का लक्ष्य पूरा करने के लिए पडऩे वाले दबाव के कारण 45-50 रैक तक कोयला भी परिवहन करा दिया जाता है। यदि एक वैगन में कम से कम दो टन कोयला भी ओवरलोड माना जाए तो इस तरह 50 वैगन वाले रैक में 100 टन कोयला ओव्हरलोड पार हो रहा है जिसकी कीमत लाखों में जाती है। जहां तक एआरएम की बात को सच भी माना जाए तो उनके मुताबिक ओव्हरलोड नहीं होता लेकिन सवाल यह भी है कि वैगन की क्षमता के अनुसार ही कोयले का भराव क्यों नहीं कराया जाता?


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