जीवनदायिनी हसदेव नदी का अस्तित्व भी खतरे में
कोरबा ! ऊर्जाधानी की जीवनदायिनी हसदेव नदी इतनी मैली होती जा रही है कि इसके जल का उपयोग जनजीवन के लिए संभव नहीं रह गया है।

कोरबा ! ऊर्जाधानी की जीवनदायिनी हसदेव नदी इतनी मैली होती जा रही है कि इसके जल का उपयोग जनजीवन के लिए संभव नहीं रह गया है। इसका जल इस कदर दूषित हो चुका है कि इसका उपयोग न जन कर पा रहे हैं और न ही जंतु। भूलवश यदि जानवर इसे पी ले तो उसकी जान भी संकट में आ जाए। लोग तो ये भूल गये हैं कि इसका उपयोग उन्होंने निस्तारी के लिए कब किया था। पूरी नदी राखड़ से पट गई है जैसे हसदेव बांगो बांध कोरबा हो जिससे हाथी भी उबर न पाये।
जिले में बहने वाली जीवनदायनी हसदो नदी कोरिया की पहाडिय़ों से बहुती हुए 176 किलोमीटर की दूरी तय कर कोरबा पहुंचती है। मनेन्द्रगढ़ तहसील के सोनहत क्षेत्र में स्थित कैमूर की पहाड़ी से हसदेव नदी निकली है। झिंक, अतेम, गज जैसी सहायक नदियों को अपनी धाराओं में समेटकर कोरिया, बिलासपुर, कोरबा और जांजगीर-चांपा को जीवन देती है। हसदेव बांगो परियोजना इसी नदी के जल शोधन से तैयार हुआ है। हसदेव नदी जब पहाड़ों का सीना चीरते हुए शहर में प्रवेश करती है तभी इसकी प्रवाह मंद के साथ-साथ मैली होती चली जाती है। जिले का एतेहासिक और धार्मिक आस्था का प्रतीक मां सर्वमंगला मंदिर भी इसी के तट पर विराजमान है। नदी के आसपास के बस्ती वालों के लिए यह नदी जीवनदायनी है लेकिन घाटों का रख रखाव नहीं होने से चौतरफा गंदगी का साम्राज्य फैला हुआ है। परेशानी उस समय बढ़ जाती है जब बरॉज का गेट खोल दिया जाता है और आसपास के तटों पर पसरी गंदगी मां सर्वमंगला के तट व निचली बस्तियों में रहने वाले लोगों के घरों तक पहुंच जाती है। दुर्भाग्य की बात है कि इस पवित्र सलिला को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी न तो प्रशासन उठा रहा है और न ही सामाजिक संगठन। जो संगठन इसके लिए आवाज उठाते हैं उनकी आवाज कागजों तक ही सिमट कर रह जाती है। निर्मल जल सुवाहित पवित्र तट की कल्पना तभी साकार हो पाएगी जब इसकी धाराओं को समेटा और सहेजा जा सकेगा।
0 हसदेव की पीड़ा समझने कोई तैयार नहीं
शहरवासियों का हसदेव के प्रति अगाथ प्रेम है, नही को आदिकाल से मां की संज्ञा दी जाती है। बच्चे पुत्र भी चाहते हैं कि इस जीवनदायनी को पूरा सम्मान दिया जाए, लेकिन संयंत्रों से प्रदूषित राखड़ और रसायन जब इस जल में प्रवाहित होता है तो हसदेव का जल भी असीम पीड़ा से कहर उठता है। नदी में फैली गंदगी, बस्ती की नालियों को नदी में मिलन, घाटों की गंदगी और संयंत्रों के राखड़ का विसर्जित होना पूरी हसदेव को मैली करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। वर्ष 2002 में जिले के युवा नेता अमित नवरंगलाल ने हसदेव नदी को बचाने हसदेव अभियान चलाया परन्तु इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकल पाया। दुर्भाग्य की बात है कि जल से जीवित रहने वाले सीएसईबी, बालको, एनटीपीसी, लैंको, एसीबी व एसईसीएल द्वारा भी कोई उचित पहल नहीं की जाती है। कोयला जलाओ, बिजली बनाओ और राखड़ हसदो नदी में बहा दो इसी तर्ज पर इन कंपनियों के द्वारा कार्य किया जा रहा है। ऐसे में हसदेव की पीड़ा समझे तो समझे कौन?
पहली जिम्मेदारी पावर संयंत्रों की
गर्मी का असर व प्रभाव हसदेव नदी पर भी पड़ता है, लेकिन बिलासपुर अरपा नदी के मुकाबले इसमें पानी की बेहतर स्थिति होती है। प्रशासन ने अरपा नदी पर करोड़ों की परियोजना तैयार की है। इसी तरह इस हसदो नदी पर परियोजना की दरकार है। खासतौर पर इस स्थिति में जब हसदेव की बुनियाद पर बुलंद संयंत्र की चिमनियां सांस ले रही हो तो हसदेव को बचाने के लिए व्यापक पहल इस संयंत्रों के सहयोग से किया जा सकता है। इन्हीं संयंत्रों का जहर हसदो नदी में घुलता है, जिसके कारण हसदो का पवित्र निर्मल जल विषैला बन जाता है। पहली जिम्मेदारी इन विद्युत संयंत्रों की है कि हसदेव में जहर की मात्रा को कम करें या कोई ऐसी व्यवस्था ईजाद करें जिससे हसदेव की शुद्धता कायम रह सके।
राखड़ से बढ़ रहा जल प्रदूषण मवेशी भी नहीं पी पाते पानी


