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कोयला मजदूर आज भी शोषण का शिकार

कोरबा ! कोयला उद्योग में वर्ग संघर्ष की लड़ाई नि:संदेह आज भी निरंतर जारी है जो कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के पहले भी यह लड़ाई थी।

कोयला मजदूर आज भी शोषण का शिकार
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कोरबा ! कोयला उद्योग में वर्ग संघर्ष की लड़ाई नि:संदेह आज भी निरंतर जारी है जो कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के पहले भी यह लड़ाई थी। इस संबंध में एटक के राष्ट्रीय सचिव दीपेश मिश्रा ने बताया कि वर्ष 1972-73 कोयला उद्योग का जब राष्ट्रीयकरण किया गया तब एक ऐसा वातावरण बनाया गया कि अब मजदूरों का शोषण पूरी तरह खत्म हो जाएगा परंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, बल्कि परदे के पिछे वर्ग संघर्ष की लड़ाई आज भी जारी है। कोयला उद्योग में राष्ट्रीयकरण के पहले भी सारी नीतियां अफसरों के द्वारा बनाई जाती थीं औऱ आज भी उसमें कोई बदलाव नहीं आया है इसमें सबसे अचरज तो इस बात पर है कि राष्ट्रीयकरण के समय अफसरों की संख्या लगभग 18 हजार हुआ करती थी वहीं कर्मचारियों की संख्या 9 लाख थी, पर आज कर्र्मियों की संख्या घट कर 3 लाख पर आ गई और अफसरों की संख्या बढक़र 19 हजार का आंकड़ा पार कर गई है। श्री मिश्रा ने कहा कि 1991 में जो नई आर्थिक नीतियां बनाई गई थीं उससे कोयला उद्योग में श्रमिकों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती गई वहीं अधिकारियों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी होती गई है औऱ आज भी यह सिलसिला जारी है। कोल इंडिया के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में 100 फीसदी अधिकारी बैठते हंै जो अपने फायदे के लिए मजदूर विरोधी नीतियों का निर्धारण करते रहते हैं। 1980 के दौर में कुमार मंगलम ने कोल इंडिया के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में मजदूरों के भागीदारी की बात कही थी पर कोयला प्रबंधन ने इस प्रस्ताव को मानने से पूरी तरह इंकार कर दिया है। इस कड़ी में आज भी जो नीतियां बनाई जा रही हैं वह पूरी तरह मजदूरों के खिलाफ जा रही हैं और इसी का ताजा उदाहरण कोलकर्मियों का सन्डे/ओवरटाइम बंद करने का फरमान है। कोयला उद्योग में आउटसोर्सिंग तेजी से बढ़ रहा है। राष्ट्रीयकरण के पहले भी कोयला उद्योग में अफसरों का पूरा दबदबा था औऱ आज भी स्थिति वहीं के वहीं है, उसमें कोई अन्तर नहीं आया है। कोयले के खेल में मजदूर पूरी तरह पिस रहा है। उसकी सारी सहूलियतें एक के बाद छीनी जा रही हैं इसके उलट अधिकारियों की सुविधाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है।
श्री मिश्रा ने सवाल किया कि आखिर यह कहाँ का न्याय है कि इसी उद्योग में कर्मियों के सेवानिवृत्ति पर 5 लाख की चिकित्सा सुविधा मिलेगी वहीं अफसरों के सेवानिवृत्ति पर 25 लाख दिए जा रहे हंै। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि किस तरह कोल इंडिया में आज भी मजदूर निरीह है औऱ शोषण का शिकार है जबकि उत्पादन लक्ष्य हासिल करने में सिर्फ मजदूर ही अपनी जान गंवा रहे हैं, इसमें कोई भी संदेह नहीं है।


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