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बीयर में क्यों नाचती हैं मूंगफलियां, चल गया पता

जर्मन वैज्ञानिक ने एक शोध में पता लगाया है कि बीयर में मूंगफली की गिरी नाचती क्यों है. इस शोध का कई उद्योगों में फायदा हो सकता है.

बीयर में क्यों नाचती हैं मूंगफलियां, चल गया पता
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वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया है कि बीयर में जब मूंगफली की गिरी डाली जाती है, तो वे नाचने क्यों लगती हैं. जब बीयर के गिलास में मूंगफली की गिरी डाली जाती हैं, तो पहले वे तलहटी में बैठ जाती हैं. उसके बाद ऊपर सतह पर आ जाती हैं और इधर से उधर भागती हैं.

वैज्ञानिकों ने यह जानने की कोशिश की है कि ऐसा क्यों होता है. 14 जून को प्रकाशित एक शोध में उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया को समझने का फायदा धरती की सतह के नीचे उबलते मैग्मा को जानने या फिर खनिज लवणों को निकालने में होगा.

बीयर से विज्ञान तक

ब्राजील के शोधकर्ता लुईज पेरेरा ने कहा कि उन्हें इस शोध के बारे में पहली बार खयाल अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में आया था, जहां वह स्पैनिश सीखने गए थे. वह बताते हैं कि ब्यूनस आयर्स में बार टेंडर अक्सर ऐसा करते हैं. वे बीयर के ग्लास में मूंगफलियों को डाल देते हैं और मूंगफलियां नाचने लगती हैं. चूंकि मूंगफली बीयर से भारी होती है, इसलिए पहले-पहल तो डूब जाती है लेकिन फिर एक-एक करके गिरी ऊपर आने लगती है.

पेरेरा बताते हैं कि मूंगफली एक ‘न्यूक्लिएशन साइट' बन जाती है. कार्बन डाई ऑक्साइड के छोटे-छोटे सैकड़ों बुलबुले बनते हैं और वे सतह की ओर बढ़ते हैं, इससे हवा का दबाव कम होता है और मूंगफली की गिरी भी बुलबुलों के साथ ऊपर की ओर आ जाती हैं.

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जर्मनी के म्यूनिख में लुडविग माक्सीमिलियान यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता पेरेरा समझाते हैं, "ये बुलबुले ग्लास की सतह पर बैठने के बजाए मूंगफली की गिरी की सतह पर बनते हैं. जब वे सतह पर पहुंचते हैं, तो फूट जाते हैं. बुलबुला फूटता है, तो गिरी दोबारा नीचे जाने लगती है लेकिन नया बुलबुला उसे ऊपर ले आता है. इस तरह यह डांस तब तक चलता रहता है, जब तक कि कार्बन डाई ऑक्साइड खत्म नहीं हो जाती या फिर कोई बीयर की घूंट लेकर उस प्रक्रिया को बाधित नहीं कर देता.”

शोध का फायदा

साइंस पत्रिका रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस में छपे इस शोध में ‘बीयर गैस पीनट सिस्टम' नाम देकर इस पूरी प्रक्रिया के दो अहम कारक बताए गए हैं. वैज्ञानिकों ने पाया कि बुलबुले और मूंगफली की गिरी की सतह के बीच संपर्क का कोण जितना बड़ा होता है, बुलबुले के बनने और बड़ा होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है. लेकिन यह बहुत बड़ा नहीं बन सकता और आदर्श स्थिति में 1.3 मिलीमीटर व्यास के नीचे ही रहता है.

पेरेरा ने उम्मीद जताई है कि इस सीधी सी बात को गहराई से समझने का फायदा उद्योग जगत में भी उठाया जा सकता है. वह उदाहरण देते हैं कि लौह अयस्क से लोहा अलग करने की प्रक्रिया लगभग ऐसी ही होती है. नियंत्रित तरीके से अयस्क के मिश्रण में हवा छोड़ी जाती है. मिश्रण में मौजूद लोहा ऊपर उठने लगता है क्योंकि बुलबुले उसकी सतह पर जा बनते हैं और ऊपर की ओर उठने लगते हैं. तब बाकी खनिज, सतह की ओर बैठने लगते हैं.

इसी प्रक्रिया की वजह से क्रिस्टल रूप में मैग्मा धरती की सतह के नीचे से जब बुलबुलों के रूप में निकलता है, तो मैग्नेटाइट खनिज साथ लाता है. मूंगफली की तरह मैग्नेटाइट का घनत्व भी ज्यादा होता है और इसे भी नीचे बैठ जाना चाहिए, लेकिन चूंकि उसकी सतह पर बड़ा संपर्क कोण बनता है, इसलिए वह बुलबुलों के साथ बाहर आ जाता है.


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