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किसान सभा सदस्यों ने रखा उपवास, दिया सद्भावना का संदेश

छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कहा है कि किसानों का यह संघर्ष देश की अर्थव्यवस्था को कारपोरेटीकरण से बचाने का और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और सुरक्षा को बचाने का देशभक्तिपूर्ण और राष्ट्रवादी संघर्ष है

किसान सभा सदस्यों ने रखा उपवास, दिया सद्भावना का संदेश
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रायपुर। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और 500 से अधिक किसान संगठनों से मिलकर बने साझे मोर्चे संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा के हजारों सदस्यों ने 26 जनवरी को दिल्ली में कई गई सरकार प्रायोजित हिंसा के खिलाफ, किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ संघर्ष को तेज करने और इस आंदोलन में शहीद हुए 150 से ज्यादा किसानों की स्मृति और उनके सम्मान में आज दिन भर का उपवास किया। उनके साथ गांव के लोगों ने भी उपवास में हिस्सा लिया।

आज यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने बताया कि कोरबा, सरगुजा, सूरजपुर, रायगढ़, बिलासपुर, बस्तर सहित पूरे प्रदेश में किसान सभा के सदस्यों ने रोजमर्रा का काम करते हुए उपवास किया, ताकि एक देशव्यापी दबाव बनाकर किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने के लिए मोदी सरकार को बाध्य किया जा सके। उन्होंने कहा कि इस किसान आंदोलन का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है और आम जनता के विभिन्न तबकों का उन्हें समर्थन मिल रहा है, जिसके कारण यह आंदोलन यह आंदोलन आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा ऐतिहासिक आंदोलन बन गया है।

उन्होंने कहा कि वास्तव में यह आम किसानों की मांगों के लिए, आम जनता का, आम जनता द्वारा संचालित आंदोलन है। पूरी दुनिया देख रही है कि सरकार प्रायोजित हिंसा, दमन, उकसावे के बावजूद किस तरह यह आंदोलन गांधीवादी और शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। किसान सभा नेताओं ने कहा कि जिस कानून के पीछे जनता का कोई बल न हो, उस कानून को आम जनता पर थोपना लोकतंत्र का मजाक उड़ाना ही है और केंद्र सरकार को इन कानूनों को वापस लेना ही होगा।

छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कहा है कि किसानों का यह संघर्ष देश की अर्थव्यवस्था को कारपोरेटीकरण से बचाने का और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और सुरक्षा को बचाने का देशभक्तिपूर्ण और राष्ट्रवादी संघर्ष है। जिस संघी गिरोह ने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों के तलुए चाटे है, वही आज इस देश को साम्राज्यवाद के हाथों बेचना चाहता है। इसलिए हमारे देश के किसान केवल अपनी खेती-किसानी बचाने की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, वे इस देश की स्वतंत्रता और अस्मिता की रक्षा के लिए भी लड़ रहे हैं।


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