डीबी लाईव से विशेष चर्चा में किसान नेता ने भरी हुंकार
तीनों कृषि कानूनों की वापसी तक किसान नहीं लौटेंगे अपने घरः राकेश टिकैत

नई दिल्ली, 23 मई (देशबन्धु)। प्रसिद्ध किसान नेता राकेश टिकैत ने एक बार फिर ऐलान किया है कि केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में चल रहा किसान आंदोलन तब तक समाप्त नहीं होगा जब तक कि ये कानून वापस नहीं ले लिये जाते। उन्होंने साफ किया कि अब यह आंदोलन भारत की जनता का हो गया है और किसी व्यक्ति या एक संगठन का नहीं रह गया है। जो लोग इसे छोड़कर जाना चाहें, वे जा सकते हैं परन्तु किसान अगले तीन साल तक दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहेंगे। महात्मा गांधी के बताये हुए रास्ते पर चलते हुए आंदोलन के भविष्य में भी शांतिपूर्ण और अहिंसक बने रहने का भरोसा जतलाते हुए टिकैत ने दावा किया कि हाल ही में सम्पन्न पश्चिम बंगाल के विधानसभा और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार का प्रमुख कारण उनके समेत किसानों नेताओं द्वारा वहां जाकर भाजपा का किया गया विरोध था। अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले राज्य के चुनावों में भी किसानों की ताकत दिखने के संकेत किसान नेता ने दिये।
26 मई को आंदोलन के 6 माह पूरे होने जा रहे हैं। इस अवसर पर किसान आंदोलन के मुख्य प्रवक्ता टिकैत ने ये बातें शनिवार को देशबन्धु प्रकाशन समूह के सहयोगी चैनल ‘डीबी लाईव’ के ‘न्यूज़ प्वाईंट’ कार्यक्रम में सम्पादकीय पैनल से चर्चा में कहीं। प्रधान संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव द्वारा संयोजित ‘किसानों ने फिर भरी हुंकार’ शीर्षक कार्यक्रम से हजारों की संख्या में दर्शक जुड़े। श्रीवास्तव के साथ देशबन्धु के कार्यकारी सम्पादक जयशंकर गुप्त एवं ऑनलाईन सम्पादक अमलेन्दु उपाध्याय के सवालों का टिकैत ने विस्तार से जवाब देते हुए आंदोलन के अनेक पहलुओं को बेबाकी से रखा और भावी रूपरेखा पर प्रकाश डाला। अनेक दर्शकों ने कार्यक्रम की सराहना की और किसान आंदोलन की सफलता की कामना की। उल्लेखनीय है कि दिल्ली की सीमाओं पर ठंड, बरसात, कोरोना, टिड्डी दलों द्वारा फसलों का नुकसान, पराली जलाने के नाम पर दमन की कोशिशें, पुलिस अत्याचार आदि को झेलते हुए कृषि आंदोलन सतत जारी है। केन्द्र सरकार और किसानों के 40 आंदोलनकारी संगठनों के साथ एक-दो नहीं वरन 11 वार्ताएं हुईं लेकिन गतिरोध इसलिये खत्म नहीं हो सका क्योंकि सरकार इसे वापस लेने तैयार नहीं है और किसान इसे पूरी तरह से वापस लेने से कम कुछ भी स्वीकार करने से इंकार कर चुके हैं। इस साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी को किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकालकर देश-दुनिया के समक्ष बड़ा दम दिखाया। हालांकि सरकार और भाजपा के उकसावे पर इसे बदनाम करने की भी भरपूर कोशिशें हुईं लेकिन किसानों ने दिल्ली की गाजीपुर, टिकरी और सिंघु बॉर्डरों को नहीं छोड़ा है। हजारों की संख्या में ट्रैक्टर और ट्रालियों ने दिल्ली को घेरे रखा है।
अपनी लम्बी वार्ता में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने बताया कि 26 मई को किसान संगठन काला दिवस मनाया जा रहा है क्योंकि सरकार न बातचीत कर रही है और न ही किसानों की सुन रही है। एक तरह से उसने किसानों को अकेला छोड़ दिया है। इसलिये 26 मई को किसान व आंदोलन के समर्थक अपने वाहनों और घरों पर काले झंडे लगायेंगे। कोरोना के कारण वे लोग एकत्र तो नहीं होंगे लेकिन गांवों में अपने वाहनों, ट्रैक्टरों, ट्रालियों पर काले झंडे लगाकर चक्कर लगाएंगे, खेतों में सरकार का पुतला फूंकेंगे और सोशल मीडिया पर काले झंडों के साथ अपनी फोटो डालेंगे। विरोध जताना मूल उद्देश्य है।
यह ध्यान दिलाने पर कि जिस प्रकार पिछले साल नये नागरिकता कानूनों के खिलाफ चल रहे शाहीन बाग आंदोलन को सरकार ने खत्म करा दिया वैसे ही इस साल किसानों पर कोरोना फैलाने के आरोप लगाकर किसान आंदोलन को भी समाप्त कराने की कोशिशें हो रही हैं, टिकैत ने कहा कि आंदोलनकारी किसान कोरोना के प्रति पूरी सावधानी बरत रहे हैं और हमारे आंदोलन से कोरोना के प्रसार का कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि कई भाजपा नेताओं, मंत्रियों, पत्रकारों, अधिकारियों आदि की संक्रमण से मौत हुई है। वे तो हमारे आंदोलन का हिस्सा कभी नहीं रहे हैं। सरकार को जो भी आरोप लगाने हैं, वह लगायेगी पर हम कहते हैं कि यह एक बीमारी है और जो बीमार होगा वह अस्पताल जायेगा। अस्पताल की जिम्मेदारी तो सरकार की है। वह पूरी करे। किसान का रास्ता संसद और बीमार का अस्पताल को जाता है। दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं। टिकैत सवाल करते हैं- “ क्या आंदोलन खत्म होने से कोरोना खत्म हो जायेगा? ” उन्होंने कहा कि आंदोलन स्थल हमारे घर-गांव हैं। यहां सब लोग सुरक्षित हैं। सफाई, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, फॉगिंग का ध्यान रखा जाता है। उल्टे, शहरों में ही कोरोना की समस्या है।
टिकैत ने कहा कि यह सब कुछ सरकार का बहाना है पर वह इस गलतफहमी को अपने मन से निकाल दे कि किसान यहां से कहीं जायेगा या यह कोई शाहीन बाग है। यह किसान है जो कहीं नहीं जायेगा, जब तक कि सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेती। एमएसपी, अन्य मुद्दों पर चर्चा होने तक किसान यहीं रहेंगे। सरकार कान खोलकर सुन ले कि देश भर का किसान तैयार बैठा है। सरकार की हैसियत ऑक्सीजन बांटने की भी नहीं है। जो मदद करते हैं उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है। क्या सरकार लोगों को मारने का ठेका लिये बैठी है।
इस प्रश्न पर कि पहले आप आंदोलन को 2 अक्टूबर तक चलाने का कह रहे थे और अब तीन वर्ष की चेतावनी दे रहे हैं, तो बयान में यह फर्क क्यों है, टिकैत ने कहा कि 2 अक्टूबर, 2018 से किसान क्रांति की शुरुआत हुई थी जब हम पर गोलीचालन हुआ था और आंसू गैस छोड़ी गयी थी। जहां तक तीन वर्ष की बात है, इनकी (नरेन्द्र मोदी की) सरकार 2024 तक की है। तब तक घर वापसी नहीं करने का निर्णय किसानों ने ले लिया है। देश की आजादी का आंदोलन 90 साल चला था। तब लोग फांसी चढ़ते थे। अब वह तो नहीं है, हां इनका आईटी सेल है, इनके गुंडा तत्व हैं जो जान से मारने की धमकी देते हैं, पिटवाते हैं, हमले करवाते हैं। गलत वीडियो डालते हैं। पुलिस प्रशासन कुछ नहीं करता पर ये फांसी तो नहीं दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि टिकैत को दो दिन पूर्व ही फोन पर धमकी भरे संदेश आये हैं।
जयशंकर गुप्त के इस सवाल पर कि पिछले चुनावों में किसानों ने मोदी का समर्थन किया था। वे अब क्या सोचते हैं और अब किसान मोदी के इस वादे पर क्या सोचते हैं कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जायेगी जबकि अभी खाद के दाम बढ़ गये हैं, राकेश टिकैत ने कहा कि खेती की लागत बढ़ रही है तो आय बढ़ने का सवाल ही नहीं है। सरकार ने कहा था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के संबंध में वह स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट और सी2 प्लस का फार्मूला क्रियान्वित करेगी। हम इसी के लिये बैठे हैं कि हमारे मसले वह सुने। यह पूछने पर कि आप अपने जनप्रतिनिधियों, विधायकों, मंत्रियों से बातें नहीं करते, किसान नेता ने कहा कि हमने की है और वे लोग कहते हैं कि हम तो कक्षा में बैठे छात्र हैं। जो शिक्षक कहता है वह हम करते हैं। क्या छात्र की हिम्मत है कि वह टीचर का विषय बदल दे। उनसे सवाल किया गया कि “क्या किसानों को ऐसी कक्षाओं का बहिष्कार नहीं कर देना चाहिये जैसा जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में किया गया था?” जवाब मिला- “आने वाले समय में यह भी हमारे आंदोलन का हिस्सा बनेगा। इसकी रणनीति बनेगी। जैसा अभी उप्र के पंचायत चुनाव में हुआ वैसे ही जनता खुद इन्हें सबक सिखायेगी। वहां 3050 सीटों में उसे (भाजपा) 600 के आसपास सीटें मिलीं। 200 बेईमानी से जीतीं।”
इस सवाल पर कि क्या आंदोलन द्वारा बातचीत की तैयारी दर्शाने वाली चिट्ठी का कोई भी जवाब आया और 11 राउंड की बैठकों में कभी भी लगा कि सरकार कोई निर्णय लेगी, टिकैत ने कहा कि अभी तो कोई जवाब नहीं आया है लेकिन जो भी मंत्री बैठक में सरकार की ओर से शामिल हो अगर उसे निर्णय लेने का अधिकार होगा तभी कोई समझौता हो सकता है। यदि बैठक में शामिल व्यक्ति किसी और से बातकर जवाब देगा तो समझौता संभव नहीं है। यहां चेहरा कोई है और निर्णय कोई और लेता है। पहले प्रधानमंत्री अपने आप को एक फोन कॉल की दूरी पर बताते थे इसलिये हमने पत्र लिखा था। इस पूरक प्रश्न पर कि क्या अब आपकी मांग ऐसे व्यक्ति को बैठक में रखने की होगी जो निर्णय ले सके, किसान नेता ने कहा कि हमने कहा है कि बात वहीं से शुरू होगी जहां पर छूटी थी। अगर सक्षम व्यक्ति बैठता है तो हम ज़रूर बात करेंगे। हमें देशवासी कहते थे, इसलिये हमने पत्र लिखा है। अगर वे बात करें तो ठीक है वरना हम छह माह से बैठे हैं और भी रह लेंगे। हम खेत का भी काम करेंगे और आंदोलन भी।
राजीव रंजन के इस सवाल पर कि संयुक्त किसान मोर्चे की पंचायतों से क्या आंदोलन मजबूत हुआ है, राकेश टिकैत ने दावा किया कि देश भर के किसानों का अच्छा समर्थन मिला है। किसान, छात्र, व्यापारी, पत्रकार- सभी ने कहा कि अब यह केवल किसानों का ही नहीं बल्कि देश का आंदोलन है जो नई क्रांति लायेगा। सरकार जिस तरह से तानाशाह हो रही है, उसका मुकाबला आप लोग ही कर सकते हैं क्योंकि आप दिल्ली के नजदीक हैं। बाहर का आदमी यहां आंदोलन नहीं कर सकता क्योंकि उसे दिल्ली का रास्ता नहीं मालूम। किसानों ने अपने खेतों से दिल्ली का रास्ता देख लिया है। आजादी के बाद यह पहला मौका है कि 300 किलोमीटर के दायरे के किसानों के ट्रैक्टर दिल्ली की सड़कों को पहचान गये हैं। वे संसाधन लेकर आ गये हैं। जिन 10 साल पुराने ट्रैक्टरों को दिल्ली में घुसने की मनाही थी वह आज यहां खड़े हैं। 26 जनवरी को 3.5 लाख ऐसे ही पुराने ट्रैक्टर थे जिन्होंने दिल्ली की चमचमाती सड़कों पर परेड की। इसलिये हमने चिट्ठी लिखी, महापंचायतें कीं और प. बंगाल में जिस मकसद से गये थे उसमें हमें कामयाबी मिली।
अमलेन्दु उपाध्याय के इस सवाल पर कि अगर स्वयं प्रधानमंत्री बैठक में बैठें क्योंकि वे ही सक्षम हैं, पर वे भी कानून वापस न लें तो?, टिकैत ने कहा- हम कौन सा घर वापसी कर रहे हैं। प्रश्न- “क्या आंदोलन पीएम के इस्तीफे की ओर आगे बढ़ेगा?” इसके जवाब में उन्होंने कहा- “अभी तो हम उधर नहीं बढ़े हैं। अभी तो हम कानून वापसी की बात कर रहे हैं, सत्ता की वापसी की नहीं।” उपाध्याय यह भी जानना चाहते थे कि “अगर 2024 के पहले सरकार इन कानूनों को वापस ले लेती है तो किसानों का क्या रुख होगा”, उन्होंने कहा कि “वे ज्योतिषी नहीं हैं सो कह नहीं सकते। यह जनता को देखना है कि किसे वोट देने से उसका क्या नफा या नुकसान है।” हां, अगर सरकार ने बात नहीं मानी तो उत्तर प्रदेश के चुनावों में भाजपा सरकार हारेगी।
उन्होंने बताया कि कोरोना काल के बाद हम जनता के बीच जायेंगे व लोगों को इससे जोड़ेंगे। हम इसे वापस ले भी नहीं सकते क्योंकि अब यह जनता का आंदोलन बन गया है, उसकी सम्पत्ति है। जिसे हटना है वह चलता बने। यह वैचारिक क्रांति है जो एक व्यक्ति से नहीं चलती। वह वैचारिक परिवर्तन के बाद ही ठहरेगी। वह डंडे, गोली या एक व्यक्ति से खत्म नहीं होगी। इसमें 40 संगठनों के प्रतिनिधि हैं। यह जनांदोलन का रूप लेगा जिसमें सभी वर्ग शामिल होंगे। इसे जाति-धर्म के आधार पर भी तोड़ना नामुमकिन है क्योंकि इसमें सारे किसान हैं। इसमें शामिल लोगों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी आदि बताने के दांव भी नाकाम हो गये हैं। इसे किसान बर्दाश्त नहीं करेगा।
टिकैत के मुताबिक यह सरकार अंबानी-अदानी की है और उनका नुकसान हुए बिना यह सरकार नहीं चेतेगी। कृषि कानूनों के आने के पहले ही उनके गोदाम बन जाते हैं और कई जगह उन्होंने बड़ी जमीनें हथिया ली हैं। साथ ही वे लगातार समृद्ध होते जा रहे हैं। यह मोदी सरकार के ही कारण है। सरकार अन्य व्यापारियों की ओर ध्यान नहीं दे रही है। सभी ऐसी कंपनियों की जांच होनी चाहिये।
इस प्रश्न पर कि पहले गाजीपुर की बॉर्डर और आपको आंदोलन की कमजोर कड़ी माना जाता था कि आप कभी भी हट सकते हैं परन्तु आपकी भावुक अपील के बाद दृश्य बदल गया, क्या पहले आप कमजोर थे और अब मजबूत हो गये हैं इसलिये आपको धमकियां मिल रही हैं, टिकैत ने कहा कि हमारे परिवार का 500 साल का इतिहास है और हम धमकियों से इसलिये नहीं डरते क्योंकि मौत से अधिक कुछ भी नहीं है। जेल जा चुके हैं, जमीनें चली गयी हैं पर हम किसानों को छोड़कर नहीं जायेंगे। जब गांधी के हत्यारों की पूजा करने वालों की सरकार है तो हम किसी भी स्थिति के लिये तैयार हैं। समाधान के बिना नहीं लौटेंगे।
टिकैत ने इस बात पर दुख जताया कि 400 किसानों की शहादत हो गयी पर पीएम ने आंसू नहीं बहाये क्योंकि उन्हें किसानों से कुछ लेना-देना नहीं है। वे किसी भी मुद्दे पर लोगों की भावनाएं भड़काकर वोट लेते हैं। उन्होंने देश बेचने का काम किया है। संस्थाएं बेच दीं तब नहीं रोये। उन्होंने कोरोना में लोगों को सहयोग देने की भी विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि ऑक्सीजन से होने वाली मौतों की जांच होने चाहिये। उन्होंने गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की वकालत की।


