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केजरीवाल ने बहुत ही बिगाड़ दी भाजपा की रणनीति

अदालत की निगरानी में प्रतिबंध लगाने का आदेश लागू है और केजरीवाल को इस अंतर का ध्यान रखना होगा कि वह क्या बोल सकते हैं और क्या नहीं

केजरीवाल ने बहुत ही बिगाड़ दी भाजपा की रणनीति
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- सुशील कुट्टी

अदालत की निगरानी में प्रतिबंध लगाने का आदेश लागू है और केजरीवाल को इस अंतर का ध्यान रखना होगा कि वह क्या बोल सकते हैं और क्या नहीं? संभावनाएं प्रबल हैं कि आप संयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री की ओर से नियम तोड़ेंगे, इससे पहले कि 25 मई को दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के लिए मतदान हो।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के तिहाड़ जेल से बाहर आने के बाद से यह और भी स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी के यह संयोजक राजनीतिक रूप से कोई 'आम आदमी' नहीं बल्कि 'खास आदमी' हैं, जैसा कि तिहाड़ जेल में बंद दोनों आप नेता पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और दिल्ली के पूर्व जेल मंत्री सत्येन्द्र जैन। भाजपा को केन्द्र की सत्ता से बाहर करने की इंडिया गठबंधन की योजना के लिए आप संयोजक बहुत ही महत्वपूर्ण शख्सियत हैं।

अरविंद केजरीवाल की पात्रता और 'खास आदमी' की स्थिति की पुष्टि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने की थी,जिसे आप संयोजक को 21 दिनों के लिए 'अंतरिम जमानत' देने के लिए आलोचना का सामना कर रहा है। आम चुनाव में प्रचार के लिए आप संयोजक को जमानत दे दी गई है। अरविंद केजरीवाल आप के स्टार प्रचारक हैं, हालांंक उन्हें बढ़चढ़कर अजीबोगरीब चुनावी वायदे करने के लिए जाना जाता है, और साथ में राजनीतिक अराजकता पैदा करने के लिए भी।

अपनी कार्यशैली के अनुरूप ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अंतरिम जमानत पर रिहा होने के बाद मैदान में उतरे। आप कार्यकर्ताओं को 11 मई को कनॉट प्लेस हनुमान मंदिर में इक_ा होना था। यह ज्ञात है कि आप संयोजक अक्सर राजनीतिक लाभ के लिए भगवान हनुमान का नाम लेते हैं। लोग यह भी भूल जाते हैं कि केजरीवाल 'बहुत चतुर राजनेताओं' की सूची में हैं और राजनीतिक विरोधी उन्हें 'चालाक' के रूप में उच्च दर्जा देते हैं।

तिहाड़ से बाहर निकलते हुए ही केजरीवाल ने मतदाताओं से 'भारत को तानाशाही से बचाने' का आग्रह किया। यह और बात है कि मीडिया अक्सर केजरीवाल को तानाशाह समझने की भूल कर बैठता है। जिन पत्रकारों ने केजरीवाल को नीचा दिखाया, उन्होंने इसकी कीमत चुकाई है और इसमें एक युवा महिला पत्रकार भी शामिल है, जिसने केजरीवाल के 'शीश महल' पर स्टोरी ब्रेक की थी। उसने सलाखों के पीछे समय बिताया और उसके मीडिया मित्रों ने 'कष्टप्रद अनुभव' पर रिपोर्ट की। केजरीवाल में एक क्रूर प्रवृत्ति भी है जिसे कोई भी केवल अपने जोखिम पर ही नजरअंदाज कर सकता है।

केजरीवाल का जेल प्रवास 2 जून को फिर से शुरू होगा। इसका मतलब है कि जब 4 जून को 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आयेंगे तो दिल्ली का यह ताकतवर नेता सलाखों के पीछे होगा। केजरीवाल की जेल कोठरी की दीवार पर एक टीवी सेट है। केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल इंडिया गठबंधन की जीत के लिए प्रार्थना कर रही होंगी। केजरीवाल गठबंधन के शीर्ष नेता हैं और दो राज्य उनकी सीधी कमान और प्रभाव में हैं।

केजरीवाल की पार्टी अक्सर डींगें हांकती रहती है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी एक आदमी से डरते हैं तो वह हैं 'सच्चे अरविंद केजरीवाल'। उस मामले में, सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय सीधे तौर पर मोदी के साथ प्रतिस्पर्धा में है, जो शीर्ष अदालत पर डर के कारण 'खास आदमी' पर नरम रुख अपनाने का आरोप लगा रहे हैं। दुर्भाग्य से, सर्वोच्च न्यायालय को अपने निष्पक्षता के ऊपर इस थोपे हुए आरोप के साथ रहना होगा।

हालांकि, लोगों को पता होगा कि जहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत की शर्तों के साथ दंडित किया गया है, वहीं आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को 21 दिनों के लिए जेल से बाहर रखा गया है। वहां एक अंतर है। अगर और जब ईडी की चार्जशीट में आम आदमी पार्टी को आरोपी बनाया जायेगा, तभी केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक के रूप में दोगुना नुकसान होगा।

तब तक कोई भी केजरीवाल को मिलने वाली सांत्वना से नाराज नहीं हो सकता। ऐसा पूछा जा रहा है कि क्या केजरीवाल के इस दावे में दम है कि उनकी गिरफ्तारी उन्हें 2024 के आम चुनावों से बाहर रखने के लिए की गई थी? शीर्ष अदालत की अंतरिम जमानत में 'हां' लिखा है। अरविंद केजरीवाल कोई मामूली प्रचारक नहीं हैं और वह राजनीतिक रूप से सभी सही कदम उठाते हैं। अंतरिम जमानत पर रिहा होने के बाद उनके पहले शब्द थे, 'हमें इस देश को तानाशाही से बचाना है और मैं इसके खिलाफ अपनी पूरी ताकत से लड़ रहा हूं।'

भारत भर में राष्ट्रीय मीडिया और समर्थकों ने इसे हाथोंहाथ लिया। भाजपा को कतई उम्मीद नहीं थी कि अरविंद केजरीवाल 21 दिन के लिए चुनाव मैदान में आ धमकेंगे। केजरीवाल के सौजन्य से, 'तानाशाही को हराना है' इंडिया गठबंधन का नवीनतम नारा है। फिर13 मई को होने वाले चौथे चरण के मतदान के साथ, केजरीवाल अंतरिम जमानत पर हैं। आप संयोजक जगह-जगह जा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विपरीत, वह सवालों के जवाब देने से नहीं डरते।

लेकिन अदालत की निगरानी में प्रतिबंध लगाने का आदेश लागू है और केजरीवाल को इस अंतर का ध्यान रखना होगा कि वह क्या बोल सकते हैं और क्या नहीं? संभावनाएं प्रबल हैं कि आप संयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री की ओर से नियम तोड़ेंगे, इससे पहले कि 25 मई को दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के लिए मतदान हो।
2014 और 2019 में भाजपा ने दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीटों पर कब्जा कर लिया था। इस बार अलग चुनावी नतीजा हो सकता है। इसलिए, केजरीवाल का डर खुला है। अगर आप दिल्ली की आधी सीटें भी जीत जाती है, तो यह प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक बड़ी हार होगी, जिनकी '400 पार' ने उनकी नसों पर बोझ डालना शुरू कर दिया है। इतना कि दबंग भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सज़ा सहना बहुत भारी हो गया है।

आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, जो खुद जमानत पर हैं, ने कहा, 'सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत है। तानाशाही खत्म होगी। सत्यमेव जयते।' 'यह नियमित जमानत नहीं है। यह एक अंतरिम जमानत है। वह प्रचार कर सकते हैं लेकिन जब भी वह प्रचार करने जायेंगे, लोगों को उत्पाद शुल्क स्कैम की याद भी दिला जायेंगे,' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पलटवार किया।

अमित शाह सही कह रहे हैं। अरविंद केजरीवाल अभी अपनी मुसीबत से बाहर नहीं हैं। आम चुनाव में भाजपा को हराना ही संकट से निकलने का एकमात्र रास्ता है। आप-कांग्रेस गठबंधन को दिल्ली की 7 लोकसभा सीटें जीतनी होंगी। क्या 4 जून को इंडिया गठबंधन विजेता बनेगा? यह लाख टके का सवाल है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ऐसे बोलते हैं जैसे जवाब पहले से ही ईसीआई की वेबसाइट पर है। अरविन्द केजरीवाल बेहतर जानते हैं। केजरीवाल बहुत ही कम समय के पट्टे पर हैं और उन्हें इस अल्पकालिक आज़ादी का अधिकतम लाभ उठाना है।


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