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कर्म करते रहिए आज नहीं तो कल फल जरूर मिलेगा : अशोक तिवारी

प्रवासी भारतीय सम्मान’ से सम्मानित अशोक तिवारी के साथ देशबन्धु एवं डीबी लाईव के प्रधान संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव की विशेष बातचीत-

कर्म करते रहिए आज नहीं तो कल फल जरूर मिलेगा : अशोक तिवारी
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नई दिल्ली। इंदौर में 10 जनवरी को आयोजित प्रवासी भारतीय समारोह में बिहार के सारण जिले के मशरक थाना अंतर्गत आने वाले पकड़ी गांव के निवासी अशोक तिवारी को भारत सरकार की ओर से 'प्रवासी भारतीय सम्मान' से नवाजा जा रहा है। तिवारी उज्बेकिस्तान के ताशकंद में औषधि उत्पादन के व्यवसाय में हैं। वे अपनी कंपनी शायना फार्मा के सीएमडी है। वे उज्बेकिस्तान में रहने वाले भारतीय समुदाय के अध्यक्ष भी हैं।

तिवारी ने देशबन्धु एवं डीबी लाईव के प्रधान संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव के साथ बातचीत में कहा कि वे इस सम्मान को पाकर बहुत खुश हैं। उन्होंने कहा कि मेरे 21 साल के अथक प्रयासों का परिणाम है कि मुझे भारत के राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस समय मुझे भगवद्गीता में भगवान कृष्ण की कही बात का स्मरण हो रहा है कि आप कर्म करते रहिए और फल की चिंता ना करें। कोई न कोई आपके काम को देखता रहता है और उसका प्रतिफल भी देर सबेर मिल जाता है।

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उन्होंने अपना यह सम्मान इस यात्रा में शामिल अपनी पत्नी प्रिया कुमारी, सहयोगियों तथा उज्बेकिस्तान में रहने वाले भारतीय लोगों को समर्पित किया है। अपनी संघर्ष यात्रा के बारे में उन्होंने बताया कि वे 30 वर्ष पूर्व पढ़ाई करने के लिए मास्को गये थे। 2001 में मैंने कोशिश की कि दुनिया में जहां कहीं भी रूसी भाषा बोली जाती है वहां बिजनेस शुरू करूं। उस दौरान मैं, तुर्गिस्तान, कजाकिस्तान, अजरबेजान भी गया लेकिन कहीं भी मुझे ऐसा बिजनेस पार्टनर नहीं मिला जो किसी छात्र के साथ निवेश करने को तैयार हो।

इस दौरान मैं उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद आ गया जहां एयरपोर्ट पर मुझे एक व्यक्ति मिले जिन्होंने मुझसे पूछा कि आप यहां किस सिलसिले में आए हैं। मैंने उन्हें बताया कि मैं खुद का बिजनेस शुरू करना चाहता हूं लेकिन कोई साथी नहीं मिल रहा है। उस व्यक्ति ने कहा कि ठीक है, मैं आपको रहने के लिए घर दे दूंगा लेकिन अपने व्यवसाय के लिए आपको स्वयं प्रयत्न करना होगा। उनका यह वाक्य मेरे लिए ‘डूबते को तिनके का सहारा’ जैसा था। रहने की व्यवस्था हो जाने के बाद मैं बाकी चीजों की व्यवस्था करने के लिए फ्री हो गया।

उन्होंने बताया कि 2002 में मैंने अपनी कंपनी का निर्माण किया था। आज यह कंपनी उज्बेकिस्तान में दवा उत्पादन और वितरण क्षेत्र में पांचवें स्थान पर है। उन्होंने बताया कि किसी विशिष्ट उद्योग की स्थापना का उनका उद्देश्य नहीं था। मेरी जेब भी खाली थी। उन्होंने कहा कि आसपास के क्षेत्रों के सर्वे और लोगों से बातचीत में मैंने पाया कि दवा उद्योग के माध्यम से विदेशी पैसा अर्जित किया जा सकता है।

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दवा उद्योग में काम करने वालों को सरकार से विदेशी मुद्रा मिल जाती है लेकिन अन्य उद्योगों को यह सुविधा नहीं थी। यह समझने के बाद मैंने दवा क्षेत्र में ही काम करने और आगे बढ़ने का प्रण किया। चाय और चावल का व्यवसाय करने का भी विकल्प था लेकिन देश की स्थिति को देखते हुए मैंने दवा उद्योग के क्षेत्र में काम करना तय किया।

उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी उज्बेकिस्तान में दर्द निवारक दवा के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है। कैंसर, दांत, पेट का दर्द या और किसी प्रकार के दर्द की निवारक दवा बनाने में उनकी कंपनी प्रथम क्रमांक पर है। उनकी दवा का नाम *क्यू पेन* है। तिवारी कहते हैं कि कोविड-19 के दूसरे दौर में भारत में बड़ी संख्या में मौतें हुईं। उस समय उज्बेकिस्तान में रहने वाले भारतीयों की संस्था 'इंडिया फॉर ताशकंद' में रेमडेसीविर, ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन सिलेंडर और अन्य दवाएं दो चार्टर्ड विमानों में भरकर रेड क्रॉस सोसाइटी के माध्यम से भारत में भेजी गई। पूरे विश्व में भारत सरकार को सबसे ज्यादा मदद उज्बेकिस्तान की तरफ से ही मिली थी।

*क्यू पेन* दवा के संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में श्री तिवारी ने कहा कि यह दवा काफी मात्रा में कंपनी के प्लांट में बनाई जाती है लेकिन इसका बड़ी मात्रा में भारत से आयात किया जाता है। प्रति वर्ष भारत सरकार को इससे 21 से 22 मिलियन डॉलर मिलते हैं।

भारत सरकार द्वारा सम्मानित किए जाने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि यह सम्मान मिलने का कारण प्रमुख रूप से यह है कि उन्होंने उस दौर में शायना फार्मा के माध्यम से उज्बेकिस्तान में दवा उत्पादन के क्षेत्र में प्रवेश किया था जब वहां कोई भी इस उद्योग में नहीं था। वहां विदेशी मुद्रा की इतनी कमी थी कि कोई सामान मंगा लिया जाए तो भारत सरकार पैसा नहीं देती थी। उस समय मैंने भारत से व्यावसायिक संबंध स्थापित किए। एक रिश्ता बनाया और आज उज़्बेकिस्तान में काम करने वाले अमेरिकी, ब्रिटिश, यूरोपीय, ऑस्ट्रेलियाई आदि कंपनियों के मुकाबले में उनकी कंपनी पांचवें स्थान पर है।

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यह पूछने पर कि उनके पास भारत और भारतीयों के लिए क्या कुछ करने की योजना है, तो तिवारी ने कहा कि हम गुजरात में एक दवा फैक्ट्री लगाने वाले हैं जहां नए जनरेशन की दर्द निवारक दवाएं तथा अन्य दवाओं का उत्पादन होगा यह दवा संयंत्र 2025 के अंत तक काम करना शुरू कर देगा।

यह पूछने पर कि वे अपने गृह राज्य बिहार के लिए क्यों कुछ नहीं कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि मैंने सबसे पहले बिहार का ही विचार किया था और वहां के उद्योग मंत्री से मेरी बातचीत भी हुई थी। उनसे हमने जमीन और सब्सिडी की मांग की थी लेकिन सरकार बदलने के कारण यह काम आगे नहीं बढ़ पाया।

उन्होंने कहा कि मैं बिहार में ही पैदा हुआ, बड़ा हुआ और वही पढ़ाई-लिखाई की है इसलिए वहां के लिए मैं कुछ करना चाहता हूं। तिवारी ने कहा कि बिहार का पानी आईवी सलाईन के लिए बहुत अच्छा है इसलिए वे वहां आईवी प्लांट (आम भाषा में जिसे ग्लूकोज़ कहा जाता है) लगाना चाहते हैं।

उज़्बेकिस्तान के अलावा अन्य देशों में उद्योग विस्तार की योजना के बारे में पूछे जाने पर तिवारी ने बताया कि सिंगापुर, दुबई, ताजिकिस्तान, तुर्गिस्तान, अमेरिका और फिलीपींस में उनकी कंपनी काम कर रही है और अन्य देशों में भी विस्तार की योजना है।


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