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शीतकाल के लिये बंद केदारनाथ और यमुनोत्री के कपाट

केदारनाथ में इस मौके पर बद्री-केदार मंदिर समिति ने केदारनाथ मंदिर को चारों ओर से 10 क्विंटल फूलों से सजाया था और कपाट बंद होने के अवसर पर कुल 1785 श्रद्धालु मौजूद थे

शीतकाल के लिये बंद केदारनाथ और यमुनोत्री के कपाट
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देहरादून। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक उत्तराखंड के हिमालय पर्वत की कन्दरा में स्थित बाबा केदारनाथ धाम और पवित्र यमुना नदी के उद्गम स्थल पर स्थित मां यमुनोत्री धाम के कपाट शीतकाल के लिए पूजा-अर्चना के बाद आज बन्द कर दिये गये।

आज यम द्वितीया (भैया दूज) पर वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच सुबह बाबा केदारनाथ को फूलों से सजी डोली में स्थापित किया गया।

केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद अब शीतकाल के छह माह में भोले बाबा की पूजा-अर्चना ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में जबकि मां यमुना के दर्शन उनके मायके खुशीमठ (खरसाली) में किये जा सकेंगे।

कपाट बंद होने से पूर्व पुजारी ने मंदिर के गर्भगृह में तड़के तीन बजे से विशेष पूजा-अर्चना शुरू कर दी। भागवान को भोग लगाने के उपरान्त भक्तों ने केदारबाबा के दर्शन किए।

इसके बाद भगवान को समाधि पूजा के बाद गर्भगृह के कपाट बंद कर दिए गए। अंत में मंदिर के मुख्य कपाट सुबह ठीक आठ बजकर 30 मिनट पर बंद कर दिए गए।

कपाट बंद होने के बाद भगवान की पंचमुखी उत्सव डोली सेना के जेकलाई रेजीमेंट के बैंड की धुनों के साथ अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर के लिए रवाना हो गयी। केदारनाथ की उत्सव डोली रामपुर में रात्रि विश्राम करेगी।

इसके बाद उत्तरकाशी स्थित विश्व प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम के कपाट मध्याह्न 12.15 मिनट पर बंद कर दिए गए। मां यमुनोत्री को लेने के लिए खरसाली से शनिदेव की डोली यमुनोत्री पहुंची।

शनिदेव की इस डोली के साथ मां यमुना की डोली खरसाली पहुंचेगी। शीतकाल में पर्यटक और यात्री मां यमुना के दर्शन उनके मायके एवं शीतकालीन प्रवास खुशीमठ (खरसाली) में कर सकेंगे।

गौरतलब है कि यमुनोत्री धाम के कपाट भैयादूज के अवसर पर विधिवत हवन पूजा-अर्चना के साथ बंद किए जाते हैं। शुक्रवार सुबह शनिदेव अपनी बहन को लेने के लिए खरसाली से यमुनोत्री धाम के लिए डोली से रवाना हुए। पूर्वाह्न् 10 बजे शनिदेव की डोली यमुनोत्री धाम पहुंची।

विधिवत पूजा- अर्चना के बाद दोपहर बाद सवा बारह बजे मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। इसके बाद बहन (यमुना) की अगुवायी करते हुए शनिदेव की डोली वापिस खरसाली को चल पड़ी।


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