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कच्चातिवु विवाद : इंदिरा सरकार के फैसले को चुनौती देने वाले ब्रिज खंडेलवाल का खुलासा

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1974 में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपने का निर्णय अब लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्य मुद्दा बनता जा रहा है

कच्चातिवु विवाद : इंदिरा सरकार के फैसले को चुनौती देने वाले ब्रिज खंडेलवाल का खुलासा
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नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1974 में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपने का निर्णय अब लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्य मुद्दा बनता जा रहा है। यह द्वीप श्रीलंका में नेदुनथीवु और भारत में रामेश्वरम के बीच स्थित है और पारंपरिक रूप से इसका दोनों पक्षों के मछुआरों द्वारा उपयोग किया जाता रहा है।

तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने आरटीआई के जरिए प्राप्त जानकारी के आधार पर कांग्रेस और द्रमुक पर सांठगांठ कर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपने का आरोप लगाया। इसको लेकर साल 1974 में श्रीलंका के साथ तत्कालीन केंद्र सरकार के इस समझौते के खिलाफ आईएएनएस से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार ब्रिज खंडेलवाल ने अदालत में याचिका दाखिल की थी।

25 नवंबर, 1974 को ब्रिज खंडेलवाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के रूप में इस याचिका की तब खूब चर्चा हुई थी। अब जबकि कच्चातिवु द्वीप का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है तो ऐसे में ब्रिज खंडेलवाल एक बार फिर से चर्चा में हैं। उनकी याचिका को उस समय यह कहकर अदालत ने खारिज कर दिया था कि इससे उनका हित किसी तरह से प्रभावित नहीं होता है। सरकार के इस समझौते से दो देशों के बीच संबंध बेहतर होंगे।

ऐसे में उस समय ब्रिज खंडेलवाल ने जो याचिका कच्चातिवु द्वीप को लेकर डाली थी और अभी हालात जो बने हैं, उस पर अपनी राय रखी।

आईएएनएस के साथ खास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार ब्रिज खंडेलवाल ने कहा कि 1973-74 में थोड़ा सा विवाद हुआ था। मुझे पता चला कि इंदिरा गांधी की सरकार ने एक छोटा सा टापू जो रामेश्वरम के करीब है। भारतीय तटीय सीमा से 25 किलोमीटर की दूरी पर ही है, उसको दान देने का मन बना लिया था और सरकार ने 1974 में समझौता करके इस कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया। मुझे इसको लेकर बुरा लगा, क्योंकि किसी भी देश का एक अभिन्न अंग आप किसी को कैसे दान दे सकते हैं।

संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता है कि आप अपने देश का कोई भी हिस्सा किसी को दे दें। आप तो जानते हैं कि पूरा महाभारत इसको लेकर हो गया कि एक सुई के नोक के बराबर भी जमीन कौरवों ने पांडवों को देने से इनकार कर दिया। हमने इतनी दरियादिली दिखाई कि अपने देश का एक टुकड़ा ऐसे ही दान में दे दिया। मुझे तब लगा कि यह गलत है, असंवैधानिक है।

ब्रिज खंडेलवाल ने आगे कहा कि आज तो भले हमारे संबंध श्रीलंका से बेहतर हैं लेकिन कल जब हमारे संबंध कभी उससे खराब हो जाएंगे तो आप सोच भी नहीं सकते हैं कि सामरिक दृष्टि से यह टापू हमारे देश के लिए कितना खतरनाक हो सकता है। अगर यह किसी दुश्मन देश के हाथ में आ गया तो क्या होगा।

उन्होंने कहा कि इसी से परेशान होकर मैंने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें यह मांग की कि इस समझौते को रोका जाए और इस पूरी प्रक्रिया को गैरकानूनी करार देते हुए खारिज किया जाए। क्योंकि भारत का एक हिस्सा किसी को देने का किसी को कोई हक नहीं है।

इस पर अदालत में बहस भी हुई और परेशानी तब आई, जब बात आई कि इससे आपके हित कैसे प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि तब मैंने अदालत में बताया कि मैं सेक्युलर आदमी हूं जगह-जगह पूजा करने जाता हूं। ये मेरा मौलिक अधिकार है। ऐसे में मेरा मौलिक अधिकार इससे प्रभावित हो रहा है। अदालत ने इस दलील को नहीं माना। इसके पीछे की वजह यह थी कि आपातकाल लागू था और मौलिक अधिकार खारिज किए गए थे। मामला यहां रफा-दफा हो गया।

उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि ये टापू वापस से इंडिया में आए। क्योंकि इसका श्रीलंका के पास होने का कोई औचित्य नहीं है, हमारे मछुआरे आए दिन पकड़े जा रहे हैं। जिससे उनकी स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है। यह कदम मेरी नजर में उस समय असंवैधानिक था, तो इसे दुरुस्त किया जाए।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस की उस समय यह चूक नहीं थी बल्कि यह देश के साथ विश्वासघात था। क्योंकि, आप देश का एक टुकड़ा कैसे दान दे सकते हैं। आप एक तरफ चीन और पाकिस्तान के द्वारा कब्जाए हिस्से को वापस लेने की सोच रहे हैं और दूसरी तरफ जो आपका ही हिस्सा है, उसे किसी को दान दे रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह जो मुद्दा बनाया गया है वह बिल्कुल सही मुद्दा है। क्योंकि इसके साथ हमारा भावनात्मक जुड़ाव रहा है। दक्षिण भारत का इससे जुड़ाव है। तमिल मछुआरे आए दिन पकड़े जा रहे हैं। इसके लिए सरकार को चाहिए कि श्रीलंका की सरकार से बातचीत करके कुछ भी हो जाए ये द्वीप हमें वापस लेना चाहिए।

दरअसल, पाक जलडमरूमध्य में 280 एकड़ में फैला कच्चातिवु द्वीप जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। यह 1976 तक भारत का हिस्सा था। इसे इंदिरा गांधी की सरकार ने श्रीलंका को एक समझौते के तहत सौंप दिया था। आरटीआई से मिली जानकारी जिसे के. अन्नामलाई ने साझा किया, उसकी मानें तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1974 में श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ एक समझौता किया था।

इस समझौते के तहत श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था। इसको लेकर बताया गया कि तमिलनाडु में लोकसभा अभियान को देखते हुए इंदिरा गांधी ने यह समझौता किया था। ऐसे में संसद के आधिकारिक दस्तावेजों और रिकॉर्ड से यह स्पष्ट पता चलता है कि किस तरह भारत इस द्वीप पर अपने नियंत्रण की लड़ाई एक छोटे देश से हार गया।


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