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कलावती को कपिल मिश्रा ने बनाया उम्मीदवार, अंर्तात्मा की आवाज पर विधायक भरवाएं पर्चा

आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा के लिए कुमार विश्वास और आशुतोष का पत्ता क्या काटा विरोध के सुर पार्टी के बाहर-भीतर मुखर होने लगे

कलावती को कपिल मिश्रा ने बनाया उम्मीदवार, अंर्तात्मा की आवाज पर विधायक भरवाएं पर्चा
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नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा के लिए कुमार विश्वास और आशुतोष का पत्ता क्या काटा विरोध के सुर पार्टी के बाहर-भीतर मुखर होने लगे। पार्टी विधायक कपिल मिश्रा पहले तो सुबह राजघाट पर मौन व्रत करने गए फिर आप की दिवंगत नेता संतोष कोली की मां कलावती को उम्मीदवार बताते हुए कहा कि सात विधायक अनुमोदित करने के लिए शुक्रवार को नामांकन केंद्र पर आएं और अंर्तात्मा पर कलावती को समर्थन देंकर विजयी बनाए। उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने गरीबों के भरोसे का मजाक उड़ाया है, उम्मीदें तोड़ी हैं, सपने कुचले हैं। रामलीला मैदान में आये हर एक व्यक्ति की पीठ पर अरविंद केजरीवाल ने छुरा भोंका है।

अभिनेता, भाजपा सांसद शत्रुघन सिन्हा ने भी ट्वीट कर आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लिया और कहा कि केजरीवाल से ये उम्मीद नहीं की थी। उन्होंने कहा कि, ''हमने अपनी पार्टी सहित सभी राजनीतिक पार्टियों की तरफ से राज्यसभा चुनाव में जनशक्ति पर धनशक्ति के प्रभाव को देखा है। हालांकि आम जनता और सिद्धांत वाली पार्टी और सिद्धांतों और विश्वसनीयता के आदमी अरविंद केजरीवाल से ये उम्मीद नहीं की थी।’’

याद दिला दें कि बिहार चुनाव से पहले शत्रुघन सिन्हा केजरीवाल के आवास पर विशेष रूप से गए थे। अब उन्होंने कहा कि मित्र, कवि, सामाजिक कार्यकर्ता, बेहद सक्षम कुमार विश्वास के लिए खेद है। बौद्धिक पत्रकार आशुतोष का नाम नहीं देखने पर आश्चर्यचकित हूं।

अलका लांबा ने भी ट्विटर पर कहा कि ईमानदारी काबिलियत से चयन होना चाहिए, लेकिन कुछ घंटे बाद कहा कि फैसले से नाराजगी जरूर हो सकती है, पर पार्टी और अरविंद केजरीवाल की ईमानदारी पर मेरे जैसों (जो सब कुछ छोड़ कर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल हुए)को कतई भी किसी भी तरह का शक नही हो सकता। मुझे आज भी पार्टी और केजरीवाल की ईमानदारी पर पूरा भरोसा है,तभी साथ भी खड़ें हैं।

इससे पहले उन्होंने लिखा था कि मैं गुस्सा थी,वह खमोश थे, खामोश रह कर भी वह मेरे हर प्रश्न का जवाब देते रहें, वो उस तरफ थे, फिर भी आंखों-आंखों में साथ होने का एहसास हर बार देते रहें। ना वो ख़ुश थे, ना मैं खुश थी, ना ही फैसले सुनाने वाले ही खुश थे, तसल्ली बस इस बात की थी कि अंत में हम सब फिर एक साथ थे।


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