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बस्तर के पत्रकार संतोष यादव की सशर्त रिहाई

कांकेर ! लगभग डेढ़ साल बाद बस्तर के पत्रकार संतोष यादव पिता बुधराम यादव 30 वर्ष को कंडीशनल जमानत मिलने पर कांकेर जेल से गुरूवार को सशर्त रिहा किया गया,

बस्तर के पत्रकार संतोष यादव की सशर्त रिहाई
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कांकेर ! लगभग डेढ़ साल बाद बस्तर के पत्रकार संतोष यादव पिता बुधराम यादव 30 वर्ष को कंडीशनल जमानत मिलने पर कांकेर जेल से गुरूवार को सशर्त रिहा किया गया, उन पर नक्सलियों को सहयोग करने व सुरक्षाबलों पर हुए हमले में शामिल होने का आरोप है, जिसे बस्तर पुलिस ने 29 सितम्बर 2015 को एसटीएफ के कमांडर महंत सिंह के बयान के आधार पर गिरफ्तार किया था, उनके अनुसार संतोष यादव को 21 अगस्त 2015 को नक्सलियों के साथ देखा गया था, जिसके बाद उन्हे सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए रिहा किया है साथ ही बस्तर में रहने और थाने में रोज हाजरी देने की बात कही है। जेल से छूटने के बाद पत्रकारों से चर्चा के दौरान संतोष यादव का कहना है कि बस्तर में कानून व्यवस्था है ही नही,वंहा के पत्रकारों को दबाने का प्रयास किया जा रहा हैं। 29 सितंबर को 2015 को दरभा के स्कुल में चल रहे बैठक से वे लौट रहे थे कि उसी दौरान बस्तर के तात्कालिक आईजी एसआरपी कल्लूरी ने उन्हें बुलाया और अपने साथ गाड़ी में बैठाकर जगदलपुर लेकर आ गये जंहा उनपर झूठे मामले बनाकर फंसाकर जेल भेजा दिया गया, जबकि उनके नक्सलियों से उनका कोई संबंध नही है और न ही वे उस घटना के वक्त वहां पर मौजूद रहे। गिरफ्तारी के बाद बोला गया कि उन्हे तीन दिन मेें छोड़ दिया जायेगा, जमानत के लिए कई बार प्रयास करने के बाद भी जमानत नही मिली । दो बार जमानत याचिका खारिज हो चुकी थी, पुलिस ने उन पर भादवि की धारा 302, 307 जैसे गंभीर अपराधों के साथ साथ छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम के तहत भी कार्यवाही की थी, अंतत:28 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई, लेकिन उनके परिजनों के अनुसार उन्हे किसी ने जमानत के लिए जमीन के पट्टे नही दिए जिसके कारण उन्हे जेल से रिहा होने में देरी हुई, वही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई जमानत में संतोष यादव को 20 हजार रूपए के मुचलके और रोज थाने में उपस्थिति दर्ज कराने की शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया है। रिहा होने के बाद संतोष समाज सेवा में अपना योगदान देने की बात कह रहे है।
संतोष यादव ने बताया कि उन्हें जेल में प्रताडि़त किया गया।जगदलपुर जेल में शिक्षा व भोजन में सुधार की मांग की और धरना दिया जिसको लेकर उनपर लाठीचार्ज किया गया था। वे 2008 से पत्रकारिता से जुड़े हुये है,समाचार पत्रों व इलेक्ट्रानिक मिडिया में कार्य कर चुके हैं। जब पत्रकार के साथ इस प्रकार का व्यवहार हो सकता है तो आम आदमी के साथ क्या नही होता होगा अंदाजा लगाया जा सकता हैं।


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