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कल्पवास करने से मन, वचन और कर्म होते हैं शुद्ध

कल्पवास करना किसी कठित तपस्या से कम नहीं होता। कल्पवासी यहां किसी सुविधा के उद्देश्य से नहीं आता।

कल्पवास करने से मन, वचन और कर्म होते हैं शुद्ध
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प्रयागराज। मोक्षदायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के विस्तीर्ण रेती पर बसे तंबुओं के आध्यातमिक नगरी “माघ मेला” में कल्पवासियों का कहना है कि कल्पवास करने से कर्म, वचन और मन तीनों की शुद्धता के साथ शरीर स्वस्थ और जीवन अनुशासित बनता है।

उनका कहना है कि कल्पवास करना किसी कठित तपस्या से कम नहीं होता। कल्पवासी यहां किसी सुविधा के उद्देश्य से नहीं आता। उसका उद्देश्य होता है कि माघ मास में जिस त्रिवेणी में देवता भी अदृश्य रूप से स्नान करने पहुंचते हैं उसी गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन जल में पुण्य की डुबकी लगाते हुए तट पर तपस्या करें। एक माह तक यहां रहकर जो आध्यात्मिक शक्ति मिलती है वह ग्यारह महीने तक ऊर्जावान रखती है।

कल्पवासियों का मानना है कि कल्पवास करने वालों की कल्पवास की प्रतीक्षा में जीवन की अभिलाषा बढ़ जाती है। मन, विचार पवित्र हो जाता है। कल्पवास करने से कई पीढियां भी तर जाती हैं। त्रिवेणी के तट पर संतों की सेवा करने का, कथा, भागवत और साधु-संतों की वाणसी से वैदिक ऋचाओं को सुनकर मन में पवित्रता का बोध होता है।

त्रिवेणी तट पर खुले आसमान के नीचे एकांत में जर्जर काया लेकिन चेहरे पर अद्भुत कांति लिए बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें खुद नहीं पता कि उनका नाम क्या है, वह कहां के रहने वाले हैं। उन्होने बताया कि जो शुकुन प्रयाग में त्रिवेणी में स्नान के बाद पूजा-पाठ का मिलता है वह अन्यत्र संभव नहीं। यहां पहुंचने वाला बहुत भाग्यशाली होता है। जिसका प्रारब्ध होता है वहीं यहां की रेती को नमन, संगम स्नान का सुख प्राप्त करता है।

मस्तक पर चंदन का लेप और तन पर राम नामी, गले में रूद्राक्ष की माला सिर पर टोपीऔर हाथ में घंटी धारण किये बाबा ने कहा यहां लाखों लोग कल्पवास करने हर साल आते हैं लेकिन उसमें कुछ ही ऐसे सच्चे होते हैं जिनका कल्पवास उनको फलित होता है। कल्पवास एक तपस्या है और तपस्या त्याग है एवं त्याग में परोपकार है। परोपकारी कभी दु:खी नहीं होता, उसकी सहायता प्रभु स्वयं करते हैं। कल्पवास मन, वचन, कर्म सभी को शुद्ध करता है।

पांच नम्बर पुल के पास कल्पवासियों के डेरे में रहने वाले अवधेश शुक्ल (60) ने बताया कि “ माघ मकरगत रवि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई” के पुण्य स्नान के साथ त्रिवेणी तट पर माघ मास का स्नान शुरू हो जाता है।

तंबुओं की नगरी में एक मास तक आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सरोकार का संगम रहता है। यहां लोग जाति-पात, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब की भावना से ऊपर उठकर एक माह की तपस्या कर अपनी मन के अहंकार, कुटिलता, चपलता आदि बुराइयों को आध्यात्मिक की आग में भस्म कर पवित्रता को प्राप्त करते हैं।

श्री शुक्ल ने बताया कि माघ मास और कल्पवास का महात्म श्रीरामचरित मानस, पुराण , महाभारतऔर अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। माघ मास में त्रिवेणी में स्नान के लिए तुलसी दास ने श्रीराम चरित मानस में लिखा है “माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई, देव दनुज किन्नर नर श्रेनी, सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी।”

मान्यता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत के दौरान मारे गये अपने रिश्तेदारों को सद्गति दिलाने के लिए मार्कण्डेय ऋषि के सुझाव पर कल्पवास किया था। उन्होने बताया कि माघ मास में प्रयाग में कल्पवास के दौरान सुबह, दोपहर और शाम को स्नान करने से जो फल मिलता है वह पृथ्वी पर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता।

संगम तट पर पिछले 20 साल से कल्पवास कर रहे सतना से आए रामनिहोर पाण्डे ने बताया कि माघ महीने ने संगम तट पर एक माह का कल्पवास का आध्यात्मिक रूप से बड़ा महत्व है। इसलिए हरसाल बड़ीदसंख्या में श्रद्धालु यहां कर एक महीने की तपस्या करते हैं। आयुर्वेद, यूनानी ओर प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में कल्पवास का खास महत्व है। कल्पवास के दौरान नियम संयम और एक समय स्वल्पाहार और भूमि पर शयन करने से शरीर की कई प्रकार की बीमारियों से निजात मिलती है। उन्होने बताया कि जीवन में नियम और संयम का बड़ा महत्व है।

श्री पाण्डेय ने बताया कि यहां जो आत्मिक शुद्धि, शांति ओर आनंद की अनुभूति मिलती है वह गृहस्थी में सुलभ नहीं है। यहां संतो की सेवा कर लोग अपना जीवन संवार लेते हैं। यहां किस रूप में नारायण मिल जाएं कोई नहीं जानता। नि:स्वार्थ सेवा निश्चित पुण्य प्रदान करती है।


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