Top
Begin typing your search above and press return to search.

जुलूस का औचित्य

अब वह दिन गये जब हम तमाम रैलियों में कूदते फांदते चला करते थे

जुलूस का औचित्य
X

- संतोष श्रीवास्तव 'सम'

आज जब मैं एक चौराहे पर एक पान की दुकान जो कि मेरे पुराने एक मित्र का है, खड़ा हुआ था, तो कुछ पुरानी यादें ताजा हो आई थी। मित्र ने एक बात कही कि आज रामनवमी पर कांकेर में निकलने वाली रैली में तुम शिरकत नहीं कर रहे।
मैंने तपाक से कहा-

अब वह दिन गये जब हम तमाम रैलियों में कूदते फांदते चला करते थे। अब वह उम्र नहीं रही। उम्र का वह पड़ाव गया। अब तो ज्यादा दूर चला ही नहीं जाता।
मित्र ने कहा- तुम सही कहते हो। वह दिन कुछ और थे, जो हम रैलियों में शिरकत किया करते थे।

तभी मैंने उसे अपनी बीती एक रैली संबंधी घटना बताई।जो अचानक यादों के पहर में अनायास सामने आ गई थी। मैंने उससे कहा उस लच्छू को जानते हो ना। कैसे वह हमारी एक शराबबंदी वाली रैली में बड़े जोर-जोर के नारे लगाते चल रहा था।

शराबबंदी की एक रैली में वह बड़े जोश के साथ आगे आगे चल रहा था। वह एक हाथ में झंडा लेकर शराब पीया हुआ मदहोश होकर चिल्लाया जा रहा था कि शराबबंदी लागू हो। तब हमारी हंसी का ठिकाना नहीं रहा।

उसका शराब बंदी के लिए नारा लगाना और उसका स्वयं ही शराब में मदहोश हुआ रहना, हमारे लिए हास्य का विषय बना हुआ था।

गांव में लच्छू एक मेहनती, ईमानदार, सहयोगी प्रवृत्ति का था। हमारे तमाम आयोजन में वह सहयोगी भाव लेकर हमारी मदद करता। वह पूरे गांव में जाना जाता था। हर आयोजन में वह स्व प्रेरणा से झंडे बाँधता, बैनर लगाता, सबके लिए वह पानी की व्यवस्था तक करता। हर सहयोग प्रदान करता पर शराब बंदी का मतलब नहीं समझता और खुद ही शराब में मदहोश रहा करता। यही उसकी बुराई थी।
आज उस घटना क्रम को याद कर हम खूब हँसे थे।

तभी एक दूसरे मित्र से वहीं भेंट होती है। जो रामनवमी के जुलूस में जाने वाला था। मैंने उससे कहा इतनी रात होने को है। क्या अभी रामनवमी का जुलूस निकलेगा। रामनवमी के जुलूस को रात में निकालने का औचित्य क्या है। दिन के उजाले में आम जनता के बीच जब यह जुलूस निकलता तो आम जनता देखकर कितनी खुश होती। और बच्चे से लेकर वृद्ध तक बिना किसी परेशानी के रामनवमी का जुलूस देख पाते। इतनी रात होने को है, जब जुलूस अभी निकलेगा तब तो यह परेशानी ही खड़ा करेगा। और फिर दंगे फसाद भी तो रात में संभव है। उस मित्र ने कहा- किसका डीजे कितना अधिक तेज बजता है, सवाल यह है।
मैंने कहा- क्या मतलब।

उसने कहा - यह प्रतियोगिता का युग है। कौन कितना प्रभावी अपने आप को कर सकता है।

सचमुच भक्ति भाव की कोई कीमत ही नहीं। सिर्फ दिखावे का जमाना है। बिना किसी डीजे के यदि मधुर भजन एक स्वर में गाते हुए दिन में यह जुलूस निकाला जाता तो शायद ज्यादा आकर्षक एवं प्रभावी होता। और इसका औचित्य भी सार्थकता को प्राप्त होता। उसने कहा- भक्ति भाव कहांँ रह गया है। यह तो दिखावे का जमाना है। किसकी फोटो कितनी बार सामने आई है। किसका डीजे धूम मचाया है, इन सारी चीजों का प्रदर्शन न हो तो ऐसे आयोजन का भला क्या।
मैंने अपना माथा पकड़ लिया।

जब उस लच्छू की वह बात याद आती है कि वह शराब पीकर झंडा लहराता हुआ कह रहा है कि शराबबंदी लागू करो, तो इधर यह भक्ति भाव के बिना सिर्फ हो हल्ला करते जुलूस समाज को संदेश कैसा देंगे। एक अहम सवाल मेरे सामने मुंँह बांया खड़ा था।
बरदेभाटा, कांकेर,
छत्तीसगढ़ - 494334
मो. 9993819429


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it