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सुरंग में फंसा इंसाफ

उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग हादसे की जांच रिपोर्ट सामने आ गई है

सुरंग में फंसा इंसाफ
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उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग हादसे की जांच रिपोर्ट सामने आ गई है। जिसमें प्रारंभिक तौर पर कई खामियों और कमियों का जिक्र किया गया है। इन गड़बड़ियों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा, और सजा का निर्धारण कैसे होगा, ये तो बाद के सवाल हैं। लेकिन अभी ये देखकर आश्चर्य हो रहा है कि इस सुरंग में काम फिर से शुरु हो गया है।

23 दिसंबर को प्रकाशित द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार इस बार सुरंग के दूसरे छोर यानी बड़कोट की ओर काम शुरू हुआ है। करीब 40 मजदूरों ने सुरंग पर काम शुरू कर दिया है और बीते 21 दिसंबर की सुबह ऑगर मशीन, स्लरी मशीन और बैकहोज समेत भारी उपकरण काम पर लगाए गए थे। इस खबर से एक बात फिर तय हो गई कि भारतीय समाज की स्मरण शक्ति बेहद कमजोर हो चुकी है। इसके साथ ही एक समाज के तौर पर हम इतने आत्मकेन्द्रित हो चुके हैं कि हमें न इंसानों की, न पशु-पक्षियों की, न प्रकृति की सुध लेने की फिक्र है।

छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य में मशीनों से जिंदा पेड़ों को काटकर जंगल की लाश बिछाई जा रही है, लेकिन चिंता की दो-चार आवाजों के अलावा हर जगह बेफिक्री दिखाई दे रही है। सदियों में तैयार हुए जंगल क्या फिर से कभी खड़े हो पाएंगे, ये सवाल समाज को परेशान नहीं कर रहा। इसी तरह उत्तराखंड हादसे के बाद भी अफसोस का कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया, बल्कि चारधाम यात्रा के लिए ऑल वैदर रोड को विकास की नयी मिसाल के तौर पर पेश किया गया। 41 मजदूरों की जान 17 दिन तक अंधेरी सुरंग में फंसी रही, अब फिर उसी सुरंग पर काम शुरु हो गया है।

गौरतलब है कि पिछले महीने नवंबर में दीपावली के दिन उत्तरकाशी के सिलक्यारा से बड़कोट के बीच बन रही सुरंग में 41 मजदूरों के फंसने की खबर सामने आई थी। पूरे 17 दिनों तक सुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने की कोशिश होती रही। विदेशों से विशेषज्ञ बुलाए गए, मशीनें बुलाई गईं। सुरंग के भीतर जाने के कई तरीके आजमाए गए। सुरंग के द्वार पर मंदिर भी बना दिया गया। लेकिन हर कोशिश नाकाम होती दिखी। हालांकि इस बीच मजदूरों से संपर्क स्थापित हो पाया और उन्हें किसी तरह भोजन पहुंचाने की व्यवस्था भी की गई। बाहर की दुनिया से संपर्क और भोजन की बदौलत फंसे हुए मजदूरों का हौसला बना रहा। फोरमैन गब्बर सिंह नेगी ने 17 दिनों तक अपने साथी मजदूरों को जिस तरह हिम्मत बंधाई, उन्हें निराश नहीं होने दिया, वह एक मिसाल ही है। प्रबंधन और नेतृत्व क्षमता के गुर किताबों के बाहर असल जीवन के ऐसे उदाहरणों से भी लिए जा सकते हैं। बहरहाल, फंसे हुए मजदूरों को निकालने में पूरी जद्दोजहद के बाद आखिरकार रैट माइनर्स की मदद से सुरंग के भीतर पहुंचने में सफलता मिली। 12 रैट माइनर्स ने जान जोखिम में डालकर हाथों से मलबे को बाहर निकालने का काम किया। जो काम महंगी मशीनों से नहीं हुआ, उसे इंसानी हाथों और हौसलों ने पूरा कर दिखाया। लेकिन इन रैट माइनर्स को 17 लोगों की जान बचाने के एवज में उत्तराखंड सरकार ने 50-50 हजार का इनामी चेक थमा दिया। जिसे रैट माइनर्स ने सरकार को यह कहते हुए वापस कर दिया है कि यह राशि उनके द्वारा उठाए गए जोखिम की भरपाई नहीं करती है।

बात सही भी है और समाज के दोहरे मापदंड वाले रवैये को भी दिखाती है। यहां करोड़ों में बिकने वाले आईपीएल खिलाड़ियों की चर्चा होती है, लेकिन जान जोखिम में डालकर दूसरों की जान बचाने वाले रैट माइनर्स को मिले मामूली इनाम पर कोई चर्चा नहीं होती। कायदे से इन्हें समाज और सरकार की ओर से सम्मानित किया जाना चाहिए। मगर गरीबों के लिए शायद यही पैमाना है कि उन्हें छोटा-मोटा इनाम देकर विदा कर दिया जाए। यही पैमाना पीड़ित मजदूरों के लिए भी है, इसलिए जिन लोगों के कारण 41 लोगों की जिंदगी दांव पर लगी रही, उन्हें किस तरह दंडित किया जाएगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।

जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि शीयर जोन के हिसाब से परियोजना का गलत अलाइनमेंट किया गया। शियर जोन स्थानीय दबाव के कारण बने विकृत, कमजोर और पतली चट्टानों के बारे में बताता है। ऐसे इलाकों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। लेकिन सिलक्यारा में शियर जोन को लेकर लापरवाही हुई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हादसों की पिछली घटनाओं से सबक लिए बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों की कमी होते हुए भी परियोजना पर काम किया गया। ठेकेदार को राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम (एनएचआईडीसीएल) द्वारा नियुक्त प्राधिकारी इंजीनियर की ओर से काम करने की पद्धति की मंजूरी नहीं मिली थी, यह भी रिपोर्ट में लिखा है। रिपोर्ट में सेंसर और उपकरणों की कमी की ओर भी इशारा किया गया है। ये सब एकबारगी तकनीकी बातें लग सकती हैं, लेकिन इनका सीधा संबंध 41 लोगों की जिंदगी से जुड़ा है।

गनीमत है कि 17 दिन सुरंग में फंसे रहने के बावजूद 41 लोगों की जान बच गई। लेकिन अगर जान की कोई हानि होती तो क्या इसे महज दुर्घटना माना जाता या फिर इसे गैरइरादतन हत्या के दायरे में रखा जाता, इस पर विचार होना चाहिए। फिलहाल सुरंग का काम फिर से शुरु हो गया है और बताया जा रहा है कि केवल 480 मीटर हिस्सा बचा है। नए साल में सुरंग का काम पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है। ऑपरेशन सिलक्यारा के बाद केंद्र सरकार की कैबिनेट बैठक में इस ऑपरेशन की सराहना की गई, ऐसा परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट में बताया गया है। इन तारीफों का तभी कोई अर्थ है, जब दोषियों के नाम और चेहरे सामने आएं और उन्हें समुचित दंड मिले। लेकिन अभी इंसाफ भी शायद किसी सुरंग में ही फंसा हुआ है।


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