बदले की भावना से किया न्याय मूल चरित्र खो देता है : सीजेआई
प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने शनिवार को कहा कि न्याय कभी भी आनन-फानन में किया नहीं जाना चाहिए

जोधपुर। प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने शनिवार को कहा कि न्याय कभी भी आनन-फानन में किया नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर न्याय बदले की भावना से किया जाए तो अपना मूल चरित्र खो देता है। तेलंगाना पुलिस द्वारा पशु चिकित्सक युवती के साथ दुष्कर्म व हत्या के चार आरोपियों को एनकाउंटर में मार गिराए जाने की पृष्ठभूमि में प्रधान न्यायाधीश की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है।
कानून हाथ में लेने पर पुलिस को अब विभिन्न वर्गो से आलोचना का सामना करना पड़ा है तो देशभर में लोगों ने बड़े पैमाने पर इसका स्वागत भी किया है।
राजस्थान हाईकोर्ट के एक नए भवन का उद्घाटन करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "देश में हाल की घटनाओं ने नए जोश के साथ एक पुरानी बहस छेड़ दी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपराधिक न्याय प्रणाली को अपनी स्थिति व समय के साथ अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि न्याय कभी भी तुरंत हो सकता है। न्याय को कभी भी बदले का रूप नहीं लेना चाहिए। मैं समझता हूं कि अगर न्याय बदले की भावना से किया जाए तो ये अपना मूल स्वरूप खो देता है।"
उन्होंने कहा, "न्यायपालिका में आत्म-सुधारात्मक उपायों को लागू करने की जरूरत है, लेकिन उन उपायों को प्रचारित किया जाना चाहिए या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है। मेरा मानना है कि संस्थान को अगर जरूरत है तो उसे खुद ही अपने आपको सही करना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "हमारे पास मुकदमेबाजी में तेजी लाने के लिए उपाय हैं। ऐसे कानून हैं जो मुफ्त मुकदमेबाजी में मध्यस्थता प्रदान करते हैं। हमें सभी जिला अदालतों में अनिवार्य मुकदमेबाजी मध्यस्थता क्यों नहीं करनी चाहिए।"
उन्होंने कहा, "आश्चर्यजनक रूप से मध्यस्थता में डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त करने के लिए कोई पाठ्यक्रम उपलब्ध नहीं है। हमने पहल की है और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से इस पर काम करने के लिए कहा है।"
बोबडे ने कहा कि वह न्याय प्रणाली में सुधार के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग पर गौर कर रहे हैं।


