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नशेड़ी पिता और मां की बेवफाई ने....3 मासूमों को बना दिया यतीम

खंडवा ! शराब की बुरी लत जहां कई परिवारों को उजाड़ चूकि हैं तो कई लोग इस आदत में अपनी जिन्दगी गवा चूके हैं।

नशेड़ी पिता और मां की बेवफाई ने....3 मासूमों को बना दिया यतीम
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खंडवा ! शराब की बुरी लत जहां कई परिवारों को उजाड़ चूकि हैं तो कई लोग इस आदत में अपनी जिन्दगी गवा चूके हैं। वहीं देशभर में सबसे बड़े मानव निर्मित जलाशय और पावर हब के लिये पहचाने जाने वाले खंडवा जिले के नर्मदानगर के रहने वाले तीन मासूम बच्चे इसी शराब रूपी जहर के चलते माता-पिता के जीवित होते हुये भी अनाथों जैसा जीवन जीने को मजबूर है। ये है नर्मदा नगर का त्रिलोक जिसकी उम्र लगभग 11 वर्ष है यह यू तो कक्षा 5वीं का छात्र है परन्तु इसे अपने पिता की शराब की लत और उसी लत से परेशान होकर माँ के तीन वर्ष पूर्व किसी ओर के साथ भाग जाने के बाद से अपने दो छोटे भाई बहनों की देख रेख और अपने साथ ही उन दो मासूमों के लिये स्कूल छोड़ कर भीख मांगना पड रहा है। त्रिलोक और उसके दो छोटे भाई-बहन की कहानी एक बार फिर समाज को शराब जैसे नशे के दुष्परिणामों का उदाहरण दिखा रही है। बताया जाता है कि त्रिलोक का पिता परशराम उर्फ पप्पू शराब का आदी है। उसने बसंती बाई से विवाह कर तीन बच्चे भी पैदा कर लिये त्रिलोक 11 वर्ष, आराधना 8 वर्ष व ओमप्रकाश 4 वर्ष है। पहले परशराम दीहाड़ी मजदूरी करता था और शराब पिता था बाद में उसकी शराब की लत और बड़ गई और इसी शराब के नशे में वह पत्नि के साथ मारपीट करता रहता था, पति के नशे की लत और रोजाना की प्रताडना से तंग आकर उसकी पत्नि बसंती बाई तीन वर्ष पूर्व किसी बस कंडेक्टर के साथ भाग गई। जिस समय बसंती बाई गई उस समय छोटे बेटे ओमप्रकाश की उम्र मात्र 1 वर्ष थी। दूध मुहे बच्चे के छोटे होने के चलते कुछ समय तक तो पड़ोसियों ने उसे संभाला बाद में थोड़ा बड़ा होते ही उन्होंने उसे बड़े भाई बहन के सुपूर्द कर दिया। पिता के नशे और माँ बेवफाई से अनाथ हुये यह बच्चे सुबह से लेकर शाम तक नगर में घूमते रहते है। कभी होटल पर जाकर नाश्ता मांगते है तो कभी किसी के परिवार वाले को दया आ जाती है तो उन्हें घर का बचा हुआ खाना दे देते है। जिससे उनका आधा अधूरा पेट भर जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि इनका पिता परशराम नशे का इतना आदी है कि वह थोड़ी बहुत मजदूरी कर जो कमाता है वह उसकी शराब के शौक में ही खर्च हो जाता है।
पहले बच्चे उसी के घर में रहते थे वह शराब पीकर आने के बाद बच्चों से मारपीट कर प्रताडित करता था और उन्हें अपनी माँ की औलाद बताकर खुद पर बोझ बताता था। रोज-रोज की मारपीट और पिता की प्रताडना से तंग आकर इन बच्चों ने घर जाना छोड़ दिया। वैसे भी घर के नाम पर बिना दिवार और छत के टाट और कपड़ो को बांधकर कुछ लकडियों के सहारे बनाया गया टूटा-फूटा झोपड़ा ही है जिसमें न तो बरसात के समय पानी रूकता है और न ही ठंडी के समय चलते वाले शीत लहर की हवाएं। उसे घर कहना तो घर शब्द का मजाक उड़ाने जैसा होगा। त्रिलोक बताता है कि जब तक माँ थी तो घर को सूधार कर रखती थी। उसके जाने के बाद तो पहले से बंधी हुई टाट की बोरिया भी कम होती गई। नगर के जैन मंदिर परिसर में बनी छतरी के नीचे जाकर सो जाते है क्योंकि वहां मंदिर परिसर में लगे लाईट का उजाला रात भर रहता है साथ ही यहां उन्हें पीने के लिये पानी भी मिल जाता है,सर्दी-गर्मी के मौसम में तो जैसे तैसे यह मासूम यहां अपनी राते काटते है परन्तू बरसात के मौसम में इन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मासूम बच्चों की भूख को मिटाने का सबसे सुलभ साधन स्कूलों में पढने वाले बच्चों को दिया जाने वाला माध्यान भोजन है। शाला लगने वाले दिनों में दोपहर का भोजन तो इन्हें स्कूल पहुंचने पर मिल जाता है। कन्या प्राथमिक शाला की प्रधान पाठक शशि साधन एवं बालक प्राथमिक शाला की श्रीमती सुधा रानी लाड़ ने बताया कि बालक त्रिलोक व आराधना पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद स्कूल नहीं आ पाते है हम लोग प्रयास करते है कि वे रोजाना शाला आकर पढ़ाई करे। इसी लिये हम लोग स्वयं खर्चे से उनके लिए कपड़े आदि की व्यवस्था भी करते है शाला लगने वाले दिनों में उन्हें माध्यान भोजन मिल जाता है हम उन्हें रात के लिये भी अलग से खाना दिला देते है। परन्तु अवकाश के दिनों एवं गर्मी के अवकाश के समय इन बच्चों के खाने की व्यवस्था कहा से होगी। यह भय हमे भी परेशान करता है।


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