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गलत कारणों से सुर्खियां बटोरता रहा है जेएनयू

दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक माना जाता है, मगर विश्वविद्यालय ने 2016 में गलत कारणों से राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थीं।

गलत कारणों से सुर्खियां बटोरता रहा है जेएनयू
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नई दिल्ली । दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक माना जाता है, मगर विश्वविद्यालय ने 2016 में गलत कारणों से राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थीं। जेएनयू परिसर में नौ फरवरी 2016 को एक कार्यक्रम के दौरान कथित रूप से राष्ट्र विरोधी नारे लगाए गए थे। इस टुकडे-टुकडे प्रकरण ने विशेष तौर पर मीडिया का भी ध्यान आकर्षित किया था।

उस दिन विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को मौत की सजा सुनाए जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

यह आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और कुछ अन्य वाम दलों से जुड़े पदाधिकारियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया था।

इस कार्यक्रम से संबंधित वीडियो वायरल हो गए थे, जिसके बाद इसमें शामिल हुए प्रतिभागियों के खिलाफ कार्रवाई हुई।

कन्हैया और एक अन्य छात्र नेता उमर खालिद को बाद में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर देशद्रोह का आरोप लगाया।

इस घटना ने एक राजनीतिक मोड़ ले लिया और विपक्षी दलों ने इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर हमला किया।

यह मुद्दा बाद में राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक परि²श्य से काफी हावी रहा, जो अभी तक भी जारी है।

यहां तक कि जेएनयूएसयू चुनावों में यह मुद्दा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के अभियान में भी प्रमुखता से उभरा।

इस प्रकरण के तुरंत बाद हालांकि एबीवीपी जेएनयूएसयू चुनावों में एक भी पद नहीं जीत सकी। मगर इसने परंपरागत रूप से वामपंथियों के गढ़ रहे जेएनयू में भाजपा के सहयोगी छात्र संघ को अपना आधार बनाने के लिए एक मुद्दा जरूर दे दिया।

पिछले चुनावों में जेएनयूएसयू चुनावों में वाम दलों के एकजुट होने के बाद एन. साई बालाजी की जीत हुई, लेकिन चुनाव में एबीवीपी एक शक्तिशाली दावेदार था।

इस साल के चुनाव विवादों में है, जिसके कारण दिल्ली हाई कोर्ट ने 17 सितंबर तक परिणाम घोषित करने पर रोक लगा दी है।

दो छात्रों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और जेएनयूएसयू के चुनावों के दौरान लिंगदोह कमेटी के नियमों की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगाया गया।

छात्र संघ चुनाव के लिए छह सितंबर को वोटिंग हुई थी और आठ सितंबर तक नतीजे आने की उम्मीद थी।


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