Top
Begin typing your search above and press return to search.

जेएनयू प्रशासन ने शिक्षकों के आरोपों का किया खंडन

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रशासन ने शिक्षक संघ के आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि उसने विश्वविद्यालय के अध्यादेश 32 के अनुरूप यह कदम उठाया है

जेएनयू प्रशासन ने शिक्षकों के आरोपों का किया खंडन
X

नई दिल्ली। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रशासन ने शिक्षक संघ के आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि उसने विश्वविद्यालय के अध्यादेश 32 के अनुरूप यह कदम उठाया है।

जेएनयू प्रशासन ने कहा है कि उसे इस अध्यादेश के तहत यह अधिकार है कि वह 75 वर्ष से अधिक आयू के एमेरिट्स प्रोफेसर को जारी रखे या नही। उसे उसकी समीक्षा करने का भी अधिकार है। एमआईटी जैसे विश्वविद्याल भी एमेरिट्स प्रोफेसर को जारी रखने के बारे में अपना अधिकार रखते हैं।

गौरतलब है कि जेएनयू शिक्षक संघ(जनुटा) ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति की इतिहासकार रोमिला थापर को एमेरिट्स प्रोफेसर के पद पर बने रहने के लिए उन्हें सी वी(बायोडाटा) भेजने के विश्वविद्यालय प्रशासन के निर्देश दिए जाने की तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि इसके लिए जेएनयू के रजिस्ट्रार को माफी मांगनी चाहिए।

जनुटा ने रविवार को जारी एक विज्ञप्ति में कहा है कि 1993 में श्रीमती थापर जेएनयू से रिटायर हुई थी और तब उन्हें एमेरिट्स प्रोफेसर बनाया गया था और यह तत्कालीन प्रशासन का निर्णय था। लेकिन 23 अगस्त को रजिस्ट्रार ने श्रीमती थापर को पत्र लिखकर कहा कि अगर वह इस पद पर बने रहना चाहती हैं तो अपना सी वी भेजें और तब विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद इस बारे में निर्णय लेंगी।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह श्रीमती थापर जैसी विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार का अपमान है और राजनीति से प्रेरित है। इस पद के लिए कोई आवेदन नहीं किया जाता है बल्कि यह विश्वविद्यालय का खुद का निर्णय होता है कि वह इस पद पर किसकी नियुक्त करे और आज 26 साल बाद यदि प्रशासन ने नियमावली में कोई संशोधन किया है तो यह पूर्व तारीख में कैसे लागू हो सकता है। इसलिए श्रीमती थापर से सीवी भेजने की मांग करना जेएनयू की परंपरा और गरिमा के भी खिलाफ है और ऐसा करना श्रीमती थापर का भी अपमान है। इसलिए प्रशासन को अपना निर्देश वापस लेकर श्रीमती थापर से माफी मांग लेनी चाहिए।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it