'जीप से युवक को बांधने के मामले में जांच पूरी होने तक नहीं दे सकते मुआवजा'
जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने गुरुवार को कहा कि राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) के पास सेना के आचरण की जांच का अधिकार नहीं है

जम्मू। जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने गुरुवार को कहा कि राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) के पास सेना के आचरण की जांच का अधिकार नहीं है। साथ ही कहा कि 2017 में सेना के वाहन पर एक युवक को बांधकर ले जाने के मामले में युवक को मुआवजा देने का मतलब सेना के अधिकारी की बिना सुनवाई के निंदा करना होगा। मुख्यमंत्री व गृह मंत्री महबूबा मुफ्ती ने विधानसभा में नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता अली मुहम्मद सागर के लिखित सवाल के जवाब में कहा, "आवेदक के मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में कोई आरोप राज्य सरकार या इसके किसी भी अधिकारी के खिलाफ नहीं लगाया गया है।"
उन्होंने कहा, "बीरवाह पुलिस थाने में एफआईआर नंबर 38/2017 दर्ज कर राज्य सरकार ने अपने दायित्व को पूरा कर दिया है और इसके परिणामस्वरूप जांच शुरू की है।"
मुफ्ती ने कहा, "फारूक अहमद दार को मुआवजा देना, जिन्हें मेजर लीतुल गोगोई ने जीप से बांधा था, अधिकारी (मेजर) के पक्ष को सुने बिना उन्हें गलत साबित करने के समान होगा।"
दार को बडगाम में सेना के एक चलते वाहन पर बांधने का वीडियो वायरल हुआ था। घटना बीते साल नौ अप्रैल की है। इस दिन श्रीनगर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुए थे।
राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि दार को 10 लाख रुपये दिए जाने की एसएचआरसी की सिफारिश के मामले में वह 'असमर्थ' है क्योंकि आयोग के पास सेना के आचरण की जांच का कोई अधिकार नहीं है।


