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जापानी वैज्ञानिकों ने नई विधि से खोजी ‘सुपर अर्थ’

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने कहा है कि एक ऐसा ग्रह खोजा गया है जिसे ‘सुपर अर्थ’ कहा जा रहा है.

जापानी वैज्ञानिकों ने नई विधि से खोजी ‘सुपर अर्थ’
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वैज्ञानिकों ने ‘सुपर अर्थ' खोजी है. हमारे सौरमंडल के बाहर स्थित यानी एग्जोप्लेनेट की खोज को जीवन की परिस्थितियों के अनुकूल होने के कारण विशेष माना जा रहा है. इस ग्रह को रॉस 508बी नाम दिया गया है. इसकी खोज नई इन्फ्रारेड मॉनिटरिंग तकनीक के जरिए हुई है.

नासा ने एक ट्वीट के जरिए इस खोज की जानकारी दुनिया को दी. इस ट्वीट में बताया गया कि यह ग्रह 37 प्रकाश वर्ष दूर है. इसका एक साल पृथ्वी के मात्र 10.8 दिन जितना होता है. यह एक रेड ड्वॉर्फ सितारे रॉस 508 के चारों ओर घूमता है और अपने हैबिटेबल जोन के अंदर आता-जाता रहता है.

स्पेस डॉट कॉम ने इस बारे में खबर दी है कि रॉस 508बी का पृथ्वी के नजदीक होने का लाभ हो सकता है क्योंकि इससे वैज्ञानिकों को खोजबीन के ज्यादा मौके मिलेंगे और वे पता लगा सकेंगे कि यहां जीवन हो सकता है या नहीं.

रॉस 508बी को सबसे पहले मई में जापानी खगोलविदों ने देखा था. इस बारे में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ जिसके शीर्षक में इसे ‘सुपर अर्थ' कहा गया. शोधकर्ताओं के मुताबिक यह ग्रह अपने सितारे से इतनी दूरी पर चक्कर लगाता है कि वहां का वातावरण पानी बनने के लिए अनुकूल हो जाता है. इससे पता चलता है कि रॉस 508बी उस जोन में है जिसे जीवन लायक माना जाता है.

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शोधकर्ता बताते हैं कि इस ग्रह की खोज हवाई स्थित नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जरवेटरी ऑफ जापान के सुबरू टेलीस्कोप के जरिए हुई. सुबरू रणनीतिक कार्यक्रम 2007 में शुरू किया गया था जिसका मकसद जापान के इस विशाल सुबरू टेलीस्कोप के जरिए बड़ी वैज्ञानिक खोजें करना है. रॉस 508 बी की खोज इस मायने में भी खास है कि सुबारू टेलीस्कोप की खास इन्फ्रारेड तकनीक से खोजा गया यह पहला ग्रह है. जापान के एस्ट्रोबायोलॉजी सेंटर ने इन्फ्रारेड तकनीक आईआरडी विकसित की थी. इस तकनीक का विकास ही रेड ड्वॉर्फ स्टार खोजने के लिए हुआ है.

रेड ड्वॉर्फ सितारे और जीवन

रॉस 508 सितारा हमारे सूर्य से छोटा है इसलिए ग्रह उसके गिर्द ज्यादा तेजी से चक्कर लगाते हैं. यही कारण है कि सुपर अर्थ सितारे का चक्कर 10.8 दिन में पूरा कर लेता है. एक और खास बात है कि रॉस 508 एक कम चमकीला सितारा है. इसलिए सुपर अर्थ पर विकिरण पृथ्वी के मुकाबले 1.4 गुना है.

शोध के मुताबिक रॉस 508 का भार सूर्य से मात्र 18 प्रतिशत है. यानी अब तक ज्ञात अंतरिक्ष में यह सबसे छोटा और कम चमकीला सितारा है जिसका अपना सौर मंडल है. रॉस 508 बी इसके चारों ओर चक्कर लगाने में सिर्फ 50 लाख किलोमीटर की यात्रा करता है. यह दायरा कितना छोटा है इसका अंदाजा इस बात से हो जाता है कि हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह बुध अपने सूर्य का चक्कर लगाने के लिए छह करोड़ किलोमीटर की यात्रा करता है.

मिल्की वे या आकाश गंगा में तीन चौथाई सितारे रेड ड्वॉर्फ हैं यानी उनका आकार हमारे सूर्य से छोटा है. ये सितारे वैज्ञानिकों की विशेष दिलचस्पी का केंद्र हैं क्योंकि इनका छोटा होना इन्हें जीवन के होने लायक वातावरण देने में सक्षम बना देता है. रेड ड्वॉर्फ तुलनात्मक रूप से ठंडे होते हैं और उनकी रोशनी धीमी होती है. हालांकि इस कारण उनका अध्ययन भी मुश्किल हो जाता है.


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