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आएगा वो दिन महिलाएं स्वतंत्र निर्णय ले पाएगीं!

जांजगीर ! पूरे विश्व में आज महिला दिवस मनाया जावेगा। महिला दिवस के अवसर पर कई जगह कार्यक्रम भी आयोजित किये जायेंगे। इसको लेकर महिलाओं में भी उत्साह तो है

आएगा वो दिन महिलाएं स्वतंत्र निर्णय ले पाएगीं!
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कानून बन जाने के बावजूद समाज में महिलाओं की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं

जांजगीर ! पूरे विश्व में आज महिला दिवस मनाया जावेगा। महिला दिवस के अवसर पर कई जगह कार्यक्रम भी आयोजित किये जायेंगे। इसको लेकर महिलाओं में भी उत्साह तो है ही साथ ही अभी भी महिला आरक्षण व महिला सुरक्षा जैसे बिल संसद में नहीं पास हो पाना महिलाओं के लिए चिंता का विषय है। इसी तरह प्रदेश भर में पंचायत विभाग द्वारा महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत सीट आरक्षित तो किया गया है, मगर आज भी ग्राम पंचायतो में महिला सरपंच स्टाम्प पेड तक ही सीमित होकर रह गयी है। ऐसे में महिलाओं को आगे लाने एवं स्वतंत्र निर्णय लेने की छुट पाने में अभी भी काफी कुछ करने की आवश्यकता बनी हुई है।
महिलाएं अब घर की चार दिवारी से बाहर निकल कर अपनी काबिलियत को दिखा रही है। हर क्षेत्रों में महिलाएं अब पुरूषो के साथ कंधे-कंधे मिलाकर समाज में चल रही है। महिला सशक्तिकरण को मजबूत बनाने सामाजिक सोच में बड़े बदलाव की आवश्यकता है। स्थानीय नगरीय व पंचायत चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। परिणाम स्वरूप अधिकांश ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत तथा जिला पंचायतों में महिलाओं का कब्जा होने से कुछ हद तक महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है, फिर भी इन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को प्रोत्साहित कर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की छुट अभी भी नहीं मिल सकी है, पुरूष प्रधान समाज अभी भी इनके निर्णय व सोच को प्रभावित कर रहे है जो चिंता का विषय है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन तभी सफल होगा जब इनके लिये बनायी गयी योजनाओं का सफल क्रियान्वयन के लिए जमीनी स्तर पर काम होगा। अक्सर योजनाएं तो बनती है मगर इनके क्रियान्वयन व मॉनिटरिंग को लेकर गंभीरता नहीं दिखायी जाती जिसके चलते उसका लाभ नहीं दिखता। महिलाओं के बारे में भी यह लागू होता है जिसके लिए योजनाएं तो बनायी जाती है मगर इन योजनाओं का लाभ मिलता नहीं खासकर पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी तो सुनिश्चित हुई है मगर महिलाएं आज भी स्टाम्प पेड के रूप में देखी जा सकती है। जिनके ज्यादातर निर्णय पुरूष प्रधान बने हुए है। हांलाकि पूरे देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार नजर नहीं आ रहा है। भले ही भारत 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुकी है। लेकिन महिलाओं के जीवन स्तर में आशातित सुधार नहीं आ पाया है। भारत के रानी लक्ष्मी बाई, इंदिरा गांधी, कल्पना चांवला, शाईना लेहवान, सुनीता विलमियम्स जैसे कई महिलाएं भारत का नाम विदेशो में नाम रोशन किया है। इनके अलावा भारत के राजनीतिक में भी महिलाओं की भूमिका बड़ी महत्व पूर्ण है। यहां तक की कई राज्यों में महिला ही कमान संभालने हुए है। भारत सरकार में विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज, केन्द्रिय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी, बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी, राजस्थान के मुख्यमंत्री श्रीमती वंसुधरा राजे सिंधे, लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन समेत महत्वपूर्ण राजनीतिक पदो पर महिलाएं कमान संभाले हुई है।
कंधे से कंधा मिलाकर मनरेगा में काम रही महिलाएं
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाया जा रहा है। पुरूषों के साथ महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर महात्मा गांधी नरेगा, स्वच्छ भारत मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन सहित अन्य योजनाओं में बढ़-चढक़र अपनी हिस्सेदारी निभा रही हैं। उनके श्रम एवं कठिन मेहनत से ही हर क्षेत्र में कार्य करना संभव हो रहा है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी जितनी भी सराहना की जाए कम है। जिले में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लगातार बदलाव आ रहा है, इसके पीछे मुख्य कारण है कि ग्राम स्तर पर महिलाओं की अधिक से अधिक भूमिका। जिला पंचायत, जनपद एवं ग्राम पंचायत में महिलाओं के चुनकर आने से लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी अजीत वसंत ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के इस मौके पर कहा कि महिलाओं के सशक्त होने से विकास अधिक तेजी से होगा। उन्होंने कहा कि सभी मिलकर काम करें तो अशिक्षा, कुपोषण, गरीबी, बेराजगारी जैसी बुराईयों को दूर किया जा सकता है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके, इसके लिए उन्हें बेहतर रोजगार उनके गांव में ही दिया जा रहा है। महिलाएं भी बढ़-चढक़र मनरेगा के कार्यों में अपनी हिस्सेदारी निभा रही है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में 91 हजार 854 महिलाओं ने कार्य किया है। तो वहीं स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव में स्वच्छता की अलख जगाने के लिए महिलाएं आगे आ रही है। घरों में शौचालय निर्माण की पहल महिलाओं के द्वारा किए जाने से जिला जल्द से जल्द खुले में शौच मुक्त बन रहा। मालखरौदा विकासखण्ड सहित अधिकांश ओडीएफ ग्राम पंचायतों में कार्यरत महिला सरपंच की भूमिका अहम रही है। 631 ग्राम पंचायत में से 206 ग्राम पंचायतें खुले में शौच मुक्त हुई है, इनमें 93 ऐसी ग्राम पंचायतें हैं जिसमें महिला सरपंच है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं के स्व सहायता समूह गठित कर गांव में ही स्वरोजगार दिया जा रहा है। जिले में 3 हजार 325 स्व सहायता समूह कार्य कर रहे हैं।
महिला सरपंच के प्रयास से ओडीएफ ग्राम बना करमंदी
कहते हैं कि कुछ करने की मन में हो और उसे सोच लिया जाए तो वह सब कुछ किया जा सकता है जो मुश्किल है। यही करके दिखाया विकासखण्ड नवागढ़ के करमंदी ग्राम पंचायत की महिला सरपंच निर्मला बिंझवार ने। स्वच्छता का संकल्प लिया और अपने गांव को जिले का पहला ओडीएफ ग्राम पंचायत बनाने का गौरव प्राप्त किया। आज भी स्वच्छता की अलख जगाए हुए है, और लोगों को स्वच्छता के प्रति लगातार प्रेरित कर रही हैं। महिला सरपंच श्रीमती बिंझवार बताती हैं, कि गांव को खुले में शौच मुक्त कराने की दिशा में कुछ परेशानियां जरूर आई, लेकिन इन परेशानियों से लड़ते हुए यह ठान लिया था कि बस गांव को अब इससे मुक्ति दिलाना है। लगातार महिलाओं के साथ बैठक करते हुए स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक किया। धीरे-धीरे लोगों की समझ में आने लगा कि खुले में शौच जाने से कितनी समस्याएं आती है। ओडीएफ होने के पहले गांव में 315 परिवारों में महज 58 शौचालय ही बने हुए थे, लेकिन अब हर घर में शौचालय का निर्माण हो गया है।


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