विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा जिला चिकित्सालय
जांजगीर ! एक ओर प्रदेश के मुखिया गांव-गांव की गली पहुंच लोगों की समस्या जानने सुराज अभियान में जुटे है,

आपात मरीजों को ईलाज के लिए दूसरे जिले रिफर करने की परम्परा अब तक नहीं टूटी
जांजगीर ! एक ओर प्रदेश के मुखिया गांव-गांव की गली पहुंच लोगों की समस्या जानने सुराज अभियान में जुटे है, वहीं जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं पिछले 10 वर्षों में ज्यादा परिवर्तन देखने को नहीं मिल रहा है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में तो डॉक्टरों के साथ-साथ संसाधन कम है ही, जिला चिकित्सालय में भी स्थिति ऐसी ही बनी हुई है। जहां 10 साल पुराने सेटअप के अनुरूप भी स्टाफ की पोस्टिंग नहीं हो सकी है। जबकि आबादी बढऩे के साथ ही अस्पताल भी 100 बिस्तर की जगह 150 बिस्तरों का हो चुका है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के चलते गंभीर व आपात मरीजों को समय पर चिकित्सा उपलब्ध करा पाना अस्पताल के बस में नहीं है। इस दिशा में जनप्रतिनिधियों व जिला प्रशासन की तमाम कोशिशें अब तक राजधानी में अनसुनी की जा रही है।
दस साल पुराने सेटअप के अधार पर जिले का सबसे बड़ा अस्पताल संचालित हो रहा है। यहां सुविधाओं और संसाधनों का विस्तार तो कर दिया गया है, लेकिन सरकार द्वारा कर्मचारियों का सेटअप आज तक नहीं बढ़ाया गया है। सुविधाओं के विस्तार होने के कारण मरीजों की संख्या में भी वृद्धि हो गई है। 100 बिस्तरों वाला अस्पताल में मरीजों की सेवा के लिए मात्र 8 वार्ड ब्वॉय और 3 आया ही पदस्थ हैं। स्टाफ की कमी के कारण दो -दो वार्ड ब्वॉय और एक आया की तीन अलग-अलग शिफ्ट में ड्यूटी लगाई जाती है। डाक्टरों और कर्मचारियों की कमी के कारण मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जिला अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड, जनरल वार्ड, कैजुअल्टी वार्ड, आर्थो वार्ड सहित अलग-अलग प्रकार के करीब 15 वार्ड है।
जहां औसतन प्रतिदिन 70 से 80 मरीज भर्ती रहते हैं। जिला अस्पताल अब 150 बिस्तरों का हो गया है, लेकिन 100 बिस्तर के पुराने सेटअप पर ही काम चलाया जा रहा है। जिला अस्पताल में मरीजों की सुविधा के लिए सुविधायुक्त ओपीडी है। आंतरिक सुविधा में यहां पैथोलैब, एक्सरे, ईसीजी, सोनोग्राफी की सुविधा उपलब्ध है, इसके साथ ही ब्लड बैंक शुरू हो चुका है। एसएनसीयू वार्ड भी लगभग तैयार है। इस हिसाब से यहां जो कर्मचारियों की संख्या है वह नहीं के बराबर है। सरकार ने दस साल पहले 2007 में जिला अस्पताल के लिए जो सेटअप भेजा था। उस हिसाब से यहां 10 वार्ड ब्वॉय और 3 आया पदस्थ किए गए थे। इनमें से दो वार्ड ब्वॉय पदोन्नत हो गए है। अब यहां केवल 8 वार्ड ब्वॉय है। जिनकी प्रतिदिन तीन-तीन शिफ्ट में ड्यूटी लगाई जाती है। इसी प्रकार स्टाफ नर्स के 36 पद स्वीकृत है जिसमें से 31 कार्यरत है वहीं 5 पद आज तक रिक्त है।
रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने से जैसे-तैसे होता है काम
जिला अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ की कमी है। इसकी वजह से यहां बच्चों में होने वाली बड़ी बीमारियों का इलाज नहीं हो पाता है, केवल सामान्य सर्दी, खासी और बुखार का ही इलाज हो पाता है। जबकि लाखों रुपए खर्च कर एसएनसीयू वार्ड का निर्माण कराया जा रहा है। निश्चेतना विशेषज्ञ का काम ऑपरेशन के दौरान मरीज को बेहोश करने का होता है। विशेषज्ञ नहीं होने के कारण यह काम चिकित्सा अधिकारी से लिया जाता है। जिला अस्पताल में रेडियोलाजिस्ट का पद भी खाली है। रेडियोलॉजिस्ट का काम सोनोग्राफी और एक्स-रे करना होता है। अनुभवी चिकित्सक नहीं होने के कारण टेक्नीशियन से सोनोग्राफी और एक्सरे कराया जाता है।
विशेषज्ञ चिकित्सकों के 9 पद रिक्त
जिला अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों की पदस्थापना सेटअप के अनुसार आज तक नहीं हो सकी है। यहां वर्तमान में सिविल सर्जन सहित विशेषज्ञ चिकित्सकों के 10 पद रिक्त हैं। विशेषज्ञ डाक्टरों में मेडिकल विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ, निश्चेतना विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, अस्थिरोग विशेषज्ञ, मनोरोग विशेषज्ञ की कमी के चलते जिला अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को भटकना पड़ता है।


