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बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई पर नहीं लग पा रही रोक

जांजगीर ! जिले में इनदिनों वैवाहिक आयोजनों की धूम मची हुई है। गांव से लेकर शहरों तक प्रत्येक जगह विवाह का आयोजन चल रहा है।

बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई पर नहीं लग पा रही रोक
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जांजगीर ! जिले में इनदिनों वैवाहिक आयोजनों की धूम मची हुई है। गांव से लेकर शहरों तक प्रत्येक जगह विवाह का आयोजन चल रहा है। जिसमें कई ऐसे विवाह भी शामिल है जिसमें कम उम्र की लड़कियां भी विवाह के फेरे में बंध चुकी है। पिछले सप्ताह भर के भीतर ही तीन ऐसे प्रकरण शासन के संज्ञान में आ चुके है। जिसमें लड़कियां 18 वर्ष की उम्र पूरी नहीं कर पाई थी और विवाह के बंधन में बंधने जा रही थी। हालांकि प्रशासन ने समय पर सूचना मिलने से इस पर रोक लगाने में सफलता पा ली है। मगर इससे साफ है कि अभी भी बाल विवाह के रोकथाम के लिए जारूकता अभियान बड़े पैमाने पर चलाने की आवश्यकता है।
प्राचीन काल में बच्चों की कम उम्र में ही शादी रचाने की परम्परा रही है। जिसका असर आज भी ग्रामीण परिवेश में खासकर उन इलाकों में जहां शिक्षा व जागरूकता की कमी है। इस तरह के घटना देखी जा सकती है। युनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया 40 प्रतिशत बाल विवाह भारत में सम्पन्न होते है। इसी के मद्देनजर संसद में बाल विवाह विशेष अधिनियम 2006 पारित किया गया है। जिसके अनुसार बाल विवाह वह है जिसमें लडके या लडक़ी की कम उम्र में शादी की जाती है। यह प्रथा पुराने जमाने से हमारे देश में चली आ रही है। बच्चा एक ऐसा व्यक्ति है जो अभी 18 साल का नहीं हुआ है। एक ऐसी लडक़ी का विवाह जो 18 साल से कम की है या ऐेसे लडके का विवाह जो 21 साल से कम का है। बाल विवाह कहलाएगा ओर इसे बाल विवाह निषेध अधियिम 2006 द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। देश का आजाद हुये 7 दशक होने को है। तब आजादी के पूर्व आज की स्थिति में काफी कुछ बदलाव आया है। चाहे साक्षरता की दर हो या आम लोगों का जीवन स्तर इन सबके बावजूद आज भी कुछ प्राचीन कुप्रथाएं आज भी समाज में चली आ रही है। जिसमें बाल विवाह प्रमुख है। ग्रामीण अंचल में कमजोर परिवार के लोग अक्सर अपने बच्चों का विवाह जल्दी पूरा कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते है। ऐसे विवाह खासकर अक्षय तृतीया के आसपास सम्पन्न होती है। जिला प्रशासन वेसे तो इस पर रोक लगाने औपचारिक रूप से दिशा-निर्देश जारी करता है। मगर बावजूद इसके दर्जनों शादियां सम्पन्न हो जाती है। इसी साल पिछले सप्ताह भर के भीतर तीन प्रकरण शासन के संज्ञान में आ चुका है। जिसमें मुलमुला थाना क्षेत्र के ग्राम सिल्ली से 2 प्रकरण शामिल है। जहां पुलिस को सूचना मिलने पर प्रशिक्षु डीएसपी स्वयं गांव पहुंचकर परिजनों को समझाईश देकर विवाह स्थगित कराने में सफल हुई। इसी तरह डभरा थाना क्षेत्र छोटे कटेकोनी में भी विवाह के तैयारी जोरो पर थी। यहां भी लडक़ी के उम्र 18 वर्ष से कम होने की सूचना पर अनुविभागीय अधिकारी डभरा के निर्देश से महिला एवं बाल विकास के अधिकारियों ने गांव पहुंच दोनों पक्षों को बाल विवाह की बुराईयों से अवगत करा विवाह लडक़ी के बालिग होने तक स्थगित रखने की समझाईश दी थी। ऐसा नहीं है कि ये तीन ही मामले बाल विवाह के हुये हो। न जाने दर्जनों ऐसे ही विवाह सम्पन्न हो चुके हो, जो शासन के संज्ञान में नहीं आ पाया है। इस सामाजिक कुरीति को खत्म करने समग्र प्रयास की जरूरत है। आज लड़कियां पढ़-लिखकर पुरूषों के मुकाबले ज्यादा सफल हो रही है। ऐसे में कम उम्र में विवाह कर इनकी प्रतिभाओं का दमन रोका जाना आवश्यक है। बाल विवाह रोकने के लिए वैसे तो कानून के मुताबिक निमंत्रण कार्ड में लडक़े व लडक़ी की जन्म तिथि अंकित किया जाना अनिवार्य माना गया है। मगर इसका परिपालन नहीं हो पा रहा है।
विवाह में परिजन व पंडित भी दोषी
18 साल से अधिक लेकिन 21 साल से कम उम्र का बालक तथा 18 वर्ष से कम उम्र की लडक़ी जो विवाह करता है। जिस बालक या बालिका का विवाह हो उसके माता पिता संरक्षक अथवा वे व्यक्ति जिनके देखरेख में बालक-बालिका है। वह व्यक्ति जो बाल विवाह को सम्पन्न संचालित करे अथवा दुष्प्रेरित करे। जैसे बाल विवाह कराने वाला पंडित आदि। वह व्यक्ति जो बाल विवाह कराने में शामिल हो या ऐसे विवाह करने के लिए प्रोत्साहित करे निर्देश दे या बाल विवाह को रोकने में असफल रहे अथवा उसमें सम्मिलित हो। जैसे बाल विवाह में शामिल बाराती, रिश्तेदार आदि। वह व्यक्ति जो मजिस्ट्रेट के विवाह निषेध संबंधी आदेश की अवहेलना करे। सभी इस कानून के तहत दोषी माने जाते है।
बाल विवाह के लिए दण्ड
बाल विवाह के आरोपियों को दो साल तक का कठोर कारावास या एक लाख रूपये तक का जुर्माना अथवा दोनो एक साथ हो सकते है। बाल विवाह कराने वाले माता पिता, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित, काजी आदि भी हो सकता है। जिसको तीन महीने तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। बाल विवाह कानून के तहत किसी महिला को कारावास की सजा नहीं दी जा सकती। माता पालक को भी इस जुर्म में कैद नहीं किया जा सकता केवल जुर्माना भरना पडेगा। बालक या बालिका जिसका विवाह हुआ हो और चाहे इसमें उसकी सहमति हो या न हो ।
बाल विवाह के कुप्रभाव
कम उम्र गर्भाधान की संभावना।
समय से पहले प्रसव की अधिक घटनाये।
माताओ की मृत्यु दर में वृद्धि, गर्भपात और मृत प्रसव की उंची दर।
शिशु मृत्यु दर और अस्वस्थता दर में वृद्धि।
घरेलू हिंसा और लिंग आधारित हिंसा ।
बच्चों के अवैध व्यापार और लडकियों की बिक्री में वृद्धि ।
बच्चों द्वारा पढ़ाई छोडने की घटनाओ में वृद्धि।
बाल मजदूरी और कामकाजी बच्चों का शोषण।
लड़कियों पर समय से पहले घरेलू कामकाज की जिम्मेदारी।


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