एक माह बीता, अंकसूची मिली न बंटी किताबें
जांजगीर ! भीषण गर्मी के बीच नये शिक्षा सत्र का एक माह पूरा होने के साथ ही ग्रीष्म अवकाश आज के बाद शुरू होने जा रहा रहा है।

आज के बाद ग्रीष्म अवकाश अब 16 जून से लगेगी कक्षाएं
जांजगीर ! भीषण गर्मी के बीच नये शिक्षा सत्र का एक माह पूरा होने के साथ ही ग्रीष्म अवकाश आज के बाद शुरू होने जा रहा रहा है। इस एक माह में बच्चों ने क्या सीखा यह जरूर विश्लेषण का विषय है। आधी-अधूरी तैयारी के बीच सीबीएसई पैटर्न पर प्रदेश के स्कूलों में 1 अप्रैल से नये शिक्षा सत्र की शुरूआत तो कर दी गई मगर यहां पढऩे-पढ़ाने के लिए नि:शुल्क बंटने वाली किताबे हाई व हायर सेकेण्ड्री के बच्चों को उपलब्ध नहीं कराई जा सकी। वहीं आठवीं बोर्ड परीक्षा की अंकसूची अब तक नहीं बन पायी है।
शिक्षा की गुणवत्ता सुधार के तहत किये जा रहे सुधार के नाम लाखों करोड़ों खर्च किये जा रहे है मगर सरकारी स्कूलों की धरातल में व्यवस्था जस की तस बनी हुई है। इन स्कूलों में कहने को तो स्कूल का संचालन पूरे माह भर किया गया जहां पाठ्य सामग्री के बिना बच्चों ने क्या पढ़ा और क्या सीखा यह किसी से छिपा नहीं है। वहीं छोटे बच्चों को मध्यान्ह भोजन करा छुट्टीयां दी जाती रही, ज्यादातर स्कूलों की दिनचर्या लगभग ऐसी ही रही वहीं दूसरी ओर निजी शिक्षणसंस्थाओं ने अपने सिलेबस के अनुसार न सिर्फ अध्यापन कराया वरन यूनिट टेस्ट रिपोर्ट भी तैयार करा लिया। ऐसे में केवल शिक्षा सत्र बदल देने भर से शिक्षा की गुणवत्ता में आमूल-चूल परिवर्तन की सोच सरासर बेमानी लगती है। शासन सरकारी स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता सुधारने लाखों करोड़ों खर्च कर रही है। जिसमें गणवेश, नि:शुल्क किताबें वितरित करने के अलावा पदस्थ शिक्षकों को सतत् प्रशिक्षण देना शामिल है। बावजूद इसके मोटी तनख्वाह पाने वाले शिक्षक आखिर अपना शत-प्रतिशत योगदान क्यों नहीं दे पा रहे है? क्या शिक्षा विभाग का संचालन भी विभाग के पदोन्नत शिक्षकों के बजाय सीईओ के हाथों सौंपा जा सकता है ताकि प्रशासनिक कसावट लायी जा सके। वहीं मूलभूत समस्याओं से घिरे स्कूलों को सुदृढ़ बना बच्चों को स्वास्थ्य शैक्षणिक दिलाने की दिशा में भी प्रयास किया जाना आवश्यक है ताकि शिक्षा के प्रति रूझान बढ़ाई जा सके। आज भी जिले के कई स्कूलों में आहाता, शौचालय, स्वच्छ पेयजल, बिजली आदि की व्यवस्था दुरूस्त नहीं है। कई स्कूलों से सटे पान की दुकान व एकाग्रता भंग करने वाले बाजार लगे है। जिससे स्वस्थ्य शिक्षा का वातावरण छात्रों को नहीं मिल पा रहा। इसके आलावा स्कूलों में अनुशासन कायम करने का जिम्मा उठाने वाले स्वयं अनुशासित नहीं। ऐसे में केवल अध्यापन मात्र से गुणवत्ता में सुधार संभव हो ऐसा लगता नहीं। जरुरत इस दिशा में भी काम करने की है ताकि गरीब वर्ग के बच्चों को भी अच्छा वातावरण मिल सके और शिक्षा के प्रति रूझान बढ़ाई जा सके।


