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कभी फिल्म नगरी और कभी बेहतर रोजगार की चाहत खींच लाती है पाकिस्तानियों को इस ओर

पाकिस्तान और पाक कब्जे वाले कश्मीर से आने वाले सिराज, शरीफ, रफीक और न जाने कितनों की दास्तानें एक जैसी ही हैं

कभी फिल्म नगरी और कभी बेहतर रोजगार की चाहत खींच लाती है पाकिस्तानियों को इस ओर
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जम्मू। पाकिस्तान और पाक कब्जे वाले कश्मीर से आने वाले सिराज, शरीफ, रफीक और न जाने कितनों की दास्तानें एक जैसी ही हैं। अगर 16 साल का सिराज भारतीय अभिनेत्री अवनीत कौर से मिलना चहता था तो 18 वर्षीय रफीक ने जम्मू सेक्टर के रणवीर सिंह पुरा इलाके में कांटेदार तार से परिपूर्ण सीमा को पार करने की हिम्मत मात्र बालीवुड जा कर अपन चहेते भारतीय एक्टरों से मिलने की खातिर दर्शाई थी तो शरीफ के इस ओर आने का कारण भी आकर्षण था। पर उसका आकर्षण इस ओर आकर नौकरी पाने और अच्छी कमाई करने का था।

ताजा घटनाक्रम में जम्मू सीमा पर गिरफ्तार युवक सिराज खान (16 वर्ष) पुत्र जाहिद खान ने बताया कि वह पाकिस्तान में गांव 27 चक तहसील भलवाल, जिला सरगोधा, पंजाब (पाकिस्तान) का रहने वाला है। तलाशी में उसके पास से पाकिस्तानी 30 रुपये बरामद हुए हैं। पूछताछ में सिराज ने कहा कि वह अवनीत कौर का बड़ा प्रशंसक है। वह उसे बहुत पसंद है और उनसे मिलने के लिए ही वह सीमा पार कर आया। यह बयान भारतीय सिनेमा के प्रति पाकिस्तान में फैली दीवानगी को तो दिखाता है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इसे नरम रूप में देखने के पक्ष में नहीं हैं।

कई साल पहले रफीक को रणवीर सिंह पुरा के इलाके से उस समय पकड़ लिया गया था जब वह कांटेदार तार को पार करने की कोशिश कर इस ओर आ रहा था। असल में वह इसलिए पकड़ में आ गया था क्योंकि एक बार तो वह तारबंदी को पार कर चुका था मगर उसके चहेते भारतीय फिल्मों के हीरों और हीरोईनों की तस्वीरें तारबंदी में फंस गई थीं जिन्हें निकालने की कोशिश में फिर वह उसमें फंस गया था।

लेकिन शरीफ नियाज की दास्तान अलग ही थी। कुछ अरसा पहले करीब 32 साल के शरीफ नियाज को इस ओर आकर रोजगार तलाश करने का आकर्षण खींच लाया था। उसने पुंछ सेक्टर से नियंत्रण रेखा को लांघा था। वह पुंछ के सामने वाले पाक कब्जे वाले कश्मीर में एक रेस्तरां में काम तो करता था लेकिन कम वेतन मिलने के कारण वह उससे तंग आया तो रेस्तरां मालिक ने मजाक-मजाक मंे कह डाला कि भारतीय पुंछ इलाके में उसे अच्छा वेतन मिलेगा।

फिर क्या था। उसने तारबंदी को पार करने का जोखिम उठा लिया। उसने चुना भी तो वह इलाका जहां तारबंदी को पार करने वाले को देखते ही गोली मार दी जाती थी। शरीफ किस्मत वाला निकला था। एलओसी को पार करने पर नौकरी तो नहीं मिली लेकिन सेना के जवानों ने उसको गोली नहीं मारी और पूछताछ के बाद जब उसके बयान पर यकीन को क्रास चेक किया गया तो उसे पुनः वापस पाक कब्जे वाले कश्मीर में धकेल दिया गया।

सिराज, शरीफ और रफीक के मामले कोई पहले मामले नहीं हैं। इतना जरूर है कि सिराज, रफीक जैसे कई पाक युवा मुंबई फिल्मनगरी के आकर्षण में बंध कर इस ओर अक्सर चले आते हैं। हालत तो यह है कि जम्मू कश्मीर की सीमा पर लगाई गई कांटेदार तार भी ऐसे युवकों के कदमों को नहीं रोक पाई है जिनका तारबंदी को पार करने का एकमात्र मकसद मुंबईया हीरो-हीरोइनों से मिलना होता है। इस संदर्भ में कुछ दिन पहले दो सगे-भाइयों की घुसपैठ को भी नहीं बुला जा सकता जो तारबंदी को पार कर आए थे।

इतना जरूर है कि अभी तक सीमा पार कर इस ओर आने वालों में अगर सबसे अधिक तादाद मुंबई जाने वालों की थी तो दूसरा नम्बर घर से झगड़ा कर तथा सीमा देखने के आकर्षण में गलती से उसे पार करने वालों की संख्या थी। लेकिन शरीफ का मामला पहला ऐसा मामला है जिसमें कोई पाकिस्तानी इसलिए नियंत्रण रेखा को लांघ कर इस ओर आ गया क्योंकि उसे यह बताया गया था कि भारतीय क्षेत्रों में रोजगार के साधन भी अच्छे हैं और वेतन भी।


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