कश्मीर ही नहीं बल्कि लद्दाख को भी बर्फ का इंतजार, थोड़ी सी ही बर्फ गिरने से पूरी तरह से खुला है श्रीनगर-लेह राजमार्ग
सिर्फ कश्मीर ही नहीं बल्कि लद्दाख भी बर्फ का इंतजार करने को मजबूर है। यह सच है कि दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में भारी बर्फबारी का इंतजार बढ़ता जा रहा है। स्थिति यह है कि अभी तक थोड़ी सी ही बर्फ गिरने के कारण श्रीनगर-लेह राजमार्ग भी पूरी तरह से खुला हुआ है क्येंकि आसपास के पहाड़ों पर गिरने वाली मामूली सी बर्फ किसी को रोक नहीं पा रही है

अब सारी उम्मीदें चिल्ले कल्लां से क्योंकि बिना बर्फ अभी भी खुला है श्रीनगर-लेह राजमार्ग
जम्मू। सिर्फ कश्मीर ही नहीं बल्कि लद्दाख भी बर्फ का इंतजार करने को मजबूर है। यह सच है कि दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में भारी बर्फबारी का इंतजार बढ़ता जा रहा है। स्थिति यह है कि अभी तक थोड़ी सी ही बर्फ गिरने के कारण श्रीनगर-लेह राजमार्ग भी पूरी तरह से खुला हुआ है क्येंकि आसपास के पहाड़ों पर गिरने वाली मामूली सी बर्फ किसी को रोक नहीं पा रही है।
वैसे मौसम विभाग 13 से 17 दिसम्बर के बीच बर्फ गिरने की भविष्यवाणी कर रहा था पर मात्र दो इंच बर्फ से ही संतुष्टि करनी पड़ी है सब जगह पर। ऐसा भी नहीं है कि भयानक सर्दी में कोई कमी आई हो पर यह सूखी सर्दी सिर्फ बीमारियों को ही न्यौता दे रही है।
अब सारा दारोमदार चिल्ले कलां की शुरूआत पर होने वाली भारी बर्फबारी पर टिका है। पर किसी को कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि मौसम विभाग अगले कुछ दिनों तक भारी बर्फबारी की कोई आशा नहीं जता रहा है। वैसे प्रदेश में 40 दिनों की भयानक सर्दी का दौर 21-22 दिसम्बर की रात को शुरू होता है पर कितने सालों से इसकी शुरूआत अब भारी बर्फ से नहीं हो हो पा रही है।
ऐसे में जबकि सभी बर्फ से उम्मीद लगाए बैठे हैं और मौसम है कि सबको निराश करता जा रहा है। टूरिज्म से जुड़े लोगों को उम्मीद है कि बर्फ गिरेगी तो पर्यटक बर्फ देखने आएंगें तो पहलगाम हमले के उपरांत पटरी से चुका पर्यटन फिर से जिन्दा हो जाएगा। ऐसी ही आस लगाए बैठी प्रदेश सरकार अर्थव्यवस्था के लिए बर्फ को जरूरी मानती है। जबकि सुरक्षाबल खासकर सेना बर्फ की आस इसलिए लगाए बैठी है ताकि पारंपारिक घुसपैठ के दर्रे बंद हो जाएं और पाकिस्तान आतंकियों को इस ओर धकेल न पाए।
यह भी सच है कि फलहाल बर्फ की कमी के कारण भारतीय सेना को सर्दियां शुरू होते ही जम्मू क्षेत्र के ऊपरी इलाकों में ऊंचाई पर गश्त तेज करनी पड़ी है, जिसका लक्ष्य घुसपैठ की कोशिशों को रोकना, बर्फीले मार्गों की निगरानी करना और संवेदनशील इलाकों में चौबीसों घंटे निगरानी बनाए रखना है।
मौसम विज्ञानी बताते थे कि कम और कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस, सामान्य से ज्यादा तापमान के साथ मिलकर, बर्फबारी की क्षमता को कम कर दिया है और पिघलने की रफ्तार बढ़ा दी है। उनका कहना था कि कमजोर बर्फबारी, लगातार बारिश की कमी, और ज्यादा तापमान के मिले-जुले असर ने धीरे-धीरे मौसमी बर्फ कवर को कम कर दिया है। यह ट्रेंड गर्मियों और पतझड़ के महीनों में ग्लेशियर की स्थिरता और पानी की उपलब्धता के लिए गंभीर चिंताएं पैदा करता है।


