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कश्मीर के मशहूर हाउसबोट खत्म होने की कगार पर, खतरे में टूरिज्म इंडस्ट्री

यह एक बुरी खबर हो सकती है कि कश्मीर के दुनिया भर में मशहूर हाउसबोट, जो कभी डल झील, निगीन झील और झेलम की खास पहचान थे, इतनी तेजी से गायब हो रहे हैं कि टूरिज्म इंडस्ट्री में खतरे की घंटी बज गई है

कश्मीर के मशहूर हाउसबोट खत्म होने की कगार पर, खतरे में टूरिज्म इंडस्ट्री
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जम्मू। यह एक बुरी खबर हो सकती है कि कश्मीर के दुनिया भर में मशहूर हाउसबोट, जो कभी डल झील, निगीन झील और झेलम की खास पहचान थे, इतनी तेजी से गायब हो रहे हैं कि टूरिज्म इंडस्ट्री में खतरे की घंटी बज गई है। उनकी संख्या लगभग 2,000 से घटकर सिर्फ 750 रह गई है, जिससे डर है कि घाटी की सबसे जानी-मानी निशानियों में से एक दस साल के अंदर गायब हो सकती है।

डल झील पर तीसरी पीढ़ी के हाउसबोट मालिक गुलाम नबी कहते थे कि बिजनेस इतना बुरा कभी नहीं रहा। उन्होंने बताया कि एक समय था जब विदेशी लोग महीनों पहले से हाउसबोट बुक कर लेते थे। आज, हम कई दिनों तक इंतजार करते हैं और कोई पूछताछ नहीं होती। हम इमोशनली और फाइनेंशियली डूब रहे हैं।

निगीन झील के एक और हाउसबोट के मालिक, फारूक अहमद कहते थे कि हाउसबोट को मेंटेन करना नामुमकिन हो गया है। उन्होंने बताया कि लकड़ी, मजदूरी, हर चीज की कीमत बढ़ गई है। लेकिन टूरिज्म खत्म होने से, हम कुछ नहीं कमाते। उनका सवाल था, हम कैसे जिंदा रहेंगे? हम इस विरासत को कैसे बचाएंगे?

कश्मीर की ट्रैवल एजेंट्स सोसाइटी के चेयरमैन, इब्राहिम सियाह कहते थे कि यह गिरावट कश्मीर की टूरिज्म पहचान के लिए एक बड़ा खतरा है। सिया ने बताया कि हाउसबोट टूरिस्ट, खासकर विदेशी यात्रियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण थे। लेकिन उनकी संख्या बहुत तेजी से घट रही है। यह बहुत चिंता की बात है। हम सरकार से तुरंत रिक्वेस्ट करते हैं कि यह खजाना हमेशा के लिए गायब होने से पहले वह अपनी हाउसबोट पालिसी को फिर से शुरू करे।

आल-कश्मीर हाउसबोट ओनर्स एसोसिएशन के चेयरमैन मंजूर पहतून के बकौल, हालात अब बहुत खराब हो गए हैं। पहतून कहते थे कि हम कागजी कार्रवाई में डूबे हुए हैं। छोटी-मोटी मरम्मत के लिए भी परमिशन में महीनों लग जाते हैं। उनका कहना था कि सिस्टम इतना सख्त हो गया है कि कई लोगों ने यह काम पूरी तरह छोड़ दिया है। हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि अगर हालात ऐसे ही चलते रहे, तो अगले पांच से दस साल में कश्मीर में कोई हाउसबोट नहीं बचेगी।

उन्होंने बताया कि टूरिज्म को लगातार लग रहे झटकों ने परिवारों को परेशान कर दिया है। उनका कहना था कि कई मालिक बेरोजगार हैं, इनकम बंद हो गई है, और लोग अपने बच्चों की स्कूल फीस भी नहीं दे पा रहे हैं। हमारी नई पीढ़ी यह काम करने से मना कर रही है क्योंकि उन्हें इसमें कोई भविष्य नहीं दिख रहा है। यह निराशा पूरे समुदाय में है।

पुराने हाउसबोट मालिक और हाउस बोट ओनर्स एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट, गुलाम रसूल सिया बताते थे कि हाउसबोट की तेजी से खत्म होती संख्या एक बड़ी चिंता की बात है। उनका कहना था कि हम पिछली सभी सरकारों से हाउसबोट को हेरिटेज घोषित करने और उन्हें बचाने के लिए एक सही पालिसी घोषित करने की अपील करते रहे हैं। तीन दशक हो गए हैं, अब तक कुछ नहीं हुआ है। बड़ी चिंता की बात यह है कि देवदार की लकड़ी अब आसानी से नहीं मिलती, और नई पीढ़ी अपने माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है। अगर सरकार हमारी मांगों पर ध्यान नहीं देती रही, तो अगले दस साल में कश्मीर में कोई हाउसबोट नहीं बचेगी। ये परेशान करने वाली बातें ऐसे समय में सामने आई हैं जब जम्मू कश्मीर 19 नवंबर से 25 नवंबर तक वर्ल्ड हेरिटेज वीक मना रहा है।

सच यह है कि जैसे-जैसे कश्मीर टूरिज्म में उतार-चढ़ाव और सख्त होते नियमों से जूझ रहा है, उसकी तैरती हुई विरासत खतरे में है। जो कभी घाटी की सुंदरता का जीता-जागता पोस्टकार्ड था, वह धीरे-धीरे अनदेखी, मुश्किल और कल्चरल नुकसान की कहानी बनता जा रहा है कृ जब तक कि अभी कोई पक्का कदम नहीं उठाया जाता।


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