मेहराज मलिक को जिस कानून के तहत जेल भेजा गया, देश का सबसे बेरहम कानून
डोडा के आप पार्टी के विधायक मेहराज मलिक को जिस कानून के तहत हिरासत में लेकर जेल भेजा गया है उसे देश का सबसे बेरहम कानून माना जाता है। इस कुख्यात कानून का नाम है जम्मू कश्मीर सुरक्षा अधिनियम अर्थात पीएसए

बेरहम कानून के तौर पर कुख्यात है जम्मू कश्मीर सुरक्षा अधिनियम
जम्मू। डोडा के आप पार्टी के विधायक मेहराज मलिक को जिस कानून के तहत हिरासत में लेकर जेल भेजा गया है उसे देश का सबसे बेरहम कानून माना जाता है। इस कुख्यात कानून का नाम है जम्मू कश्मीर सुरक्षा अधिनियम अर्थात पीएसए। जिसका स्वाद डा फारूक अब्दुल्ला भी चख चुके हैं जबकि सच्चाई यह है कि इस कानून को उनके अब्बाजान शेख अब्दुल्ला ने लागू किया था।
यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि जम्मू कश्मीर में पीएसए को पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने वर्ष 1978 में लागू किया था। उस समय इसे जंगलों के अवैध कटान में लिप्त तत्वों को रोकने के लिए आवश्यक बताया गया था। बाद में समय बीतने के साथ ही इसका इस्तेमाल असामाजिक तत्वों, आतंकियों, कानून व्यवस्था के लिए संकट बनने वाले तत्वों और कई बार सत्ताधारी दल द्वारा अपने विरोधियों पर भी कथित तौर पर किया गया।
जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम को 8 अप्रैल, 1978 को जम्मू कश्मीर के राज्यपाल से मंज़ूरी प्राप्त हुई थी। इस अधिनियम को शेख अब्दुल्ला की सरकार ने इमारती लकड़ी की तस्करी को रोकने और तस्करों को प्रचलन से बाहर रखने के लिये एक सख्त कानून के रूप में प्रस्तुत किया था। यह कानून सरकार को 16 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना दो साल की अवधि हेतु बंदी बनाने की अनुमति देता है।
जम्मू और कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम को 8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से मंज़ूरी प्राप्त हुई थी। इस अधिनियम को शेख अब्दुल्ला की सरकार ने इमारती लकड़ी की तस्करी को रोकने और तस्करों को प्रचलन से बाहर रखने के लिये एक सख्त कानून के रूप में प्रस्तुत किया था।
यह कानून सरकार को 16 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना दो साल की अवधि हेतु बंदी बनाने की अनुमति देता है। यदि राज्य सरकार को यह आभास हो कि किसी व्यक्ति के कृत्य से राज्य की सुरक्षा को खतरा है तो उसे 2 वर्षों तक प्रशासनिक हिरासत में रखा जा सकता है और यदि किसी व्यक्ति के कृत्य से सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो उसे 1 वर्ष की प्रशासनिक हिरासत में लिया जा सकता है।
पीएसए के तहत हिरासत के आदेश संभागीय आयुक्तों या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किये जा सकते हैं। पीएसए अधिनियम की धारा 22 अधिनियम के तहत अच्छे विश्वास में की गई किसी भी कार्रवाई के लिये सुरक्षा प्रदान करती है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लिये गए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई मुकदमा, अभियोजन या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी।
इसे अक्सर बेरहम कानून के रूप में जाना जाता है। हालांकि शुरुआत से ही कानून का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया गया और वर्ष 1990 तक तत्कालीन सरकारों द्वारा राजनीतिक विरोधियों को हिरासत में लेने के लिये इसका उपयोग किया गया। जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद राज्य में व्यापक अशांति फैल गई थी, जिसके बाद सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कसने के लिये पीएसए को (विस्तार योग्य हिरासत अवधि के साथ) लागू किया। अगस्त 2018 में राज्य के बाहर भी पीएसए के तहत व्यक्तियों को हिरासत में लेने की अनुमति देने के लिये अधिनियम में संशोधन किया गया था।


