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आतंक और दहशत का पर्याय है दिल्ली हमले में शामिल जैश-ए-मुहम्मद

आत्मघाती हमलों में मानव बम का नया मोड़ देने व कश्मीर और देशभर में फैले आतंकवाद के इतिहास में नए मोड़ लाने वाला जैश-ए-मुहम्मद दिल्ली बम विस्फोट के बाद फिर से सर्वत्र चर्चा में है

आतंक और दहशत का पर्याय है दिल्ली हमले में शामिल जैश-ए-मुहम्मद
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जम्मू। आत्मघाती हमलों में मानव बम का नया मोड़ देने व कश्मीर और देशभर में फैले आतंकवाद के इतिहास में नए मोड़ लाने वाला जैश-ए-मुहम्मद दिल्ली बम विस्फोट के बाद फिर से सर्वत्र चर्चा में है।

चर्चा में आखिर हो भी क्यों न। पठानकोट एयरबेस पर हमला करने वाले और इससे पहले संसद भवन जैसी अति सुरक्षित समझे जाने वाली इमारत की सभी सुरक्षा व्यवस्थाओं को नेस्तनाबूद कर सारे देश को हिला देने वाले संगठन की चर्चा आज कश्मीर में ही नहीं बल्कि विश्वभर में हो रही है, जिसने अपने गठन के मात्र दो सालों के दौरान जितनी कार्रवाईयों को अंजाम दिया था कि उसने लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया था।

अल-कायदा से प्रशिक्षण प्राप्त और ओसामा-बिन-लादेन की शिक्षाओं पर चलने वाले जैश-ए-मुहम्मद के संस्थापक आतंकवादी नेता मौलना मसूद अजहर के लिए वे ’क्षण बहुत ही अनमोल’ थे जब उसे जम्मू की जेल से इसलिए रिहा कर दिया गया था क्यांेकि भारत सरकार को अपने 154 विमान यात्रियों को रिहा करवाना था। तब उसकी रिहाई के परिणामों के प्रति नहीं सोचा गया था।

अपनी रिहाई और संगठन के गठन के बाद तीन महीनों तक खामोश रहने वाले जैश-ए-मुहम्मद ने 19 अप्रैल 2000 को सारे विश्व को चौंका दिया था। कश्मीर की धरती को हिला दिया था। पहला मानव बम हमला किया था जैश-ए-मुहम्मद ने कश्मीर में। जैश-ए-मुहम्मद की ओर से बादामी बाग स्थित सेना की 15वीं कोर के मुख्यालय पर मानव बम का हमला करने वाला कोई कट्टर जेहादी नहीं था बल्कि 12 वीं कक्षा में पढ़ने वाला 17 वर्षीय मानसिक रूप से तथा कैंसर से पीड़ित युवक अफाक अहमद शाह था।

इसके उपरांत मानव बम हमलों की झड़ी रूकी नहीं। क्रमवार होने वाले आत्मघाती हमलों में प्रत्येक आतंकवादी मानव बम की भूमिका निभाने लगा। यह सब करने वाले थे जैश-ए-मुहम्मद के सदस्य। उन्होंने इस्लाम की उन हिदायतों को भी पीछे छोड़ दिया था जिसमें कहा गया था कि आत्महत्या करना पाप है। लेकिन वे इसे नहीं मानते और कहते हैंः’जेहाद तथा धर्म की रक्षा के लिए अपने शरीर की कुर्बानी दी जा सकती है।’

इस तथाकथित ’कुर्बानी’ का एक नया चेहरा फिर नजर आया प्रथम अक्तूबर 2001 को। कश्मीर विधानसभा की इमारत पर मानव बम हमला करने वालों ने 47 मासूमों की जानें ले ली। अभी विधानसभा पर हुए हमले के धमाके की गूंज से कानों को मुक्ति मिल भी नहीं पाई थी कि सारा विश्व स्तब्ध रह गया। दिन था 13 दिसंबर का और निशाना था भारतीय संसद भवन। कोई सोच भी नहीं सकता था। लेकिन जैश-ए-मुहम्मद ने यह ’हिम्मत’ दर्शाई थी और यह साबित कर दिया था कि सुरक्षा व्यवस्थाओं में कितने लूप होल हैं। और उसके ताजा हमलों की लिस्ट में पठानकोट एयरबेस पर हुआ हमला भी था और अब दिल्ली में हुआ कार बम विस्फोट भी जुड़ गया है।

सच में कश्मीर में करगिल युद्ध के बाद आरंभ हुए आत्मघाती हमलों, जिन्हें दूसरे शब्दों मे फिदाइन हमले भी कहा जाता है, को नया रंग,रूप और मोड़ दिया है जैश-ए-मुहम्मद ने। उस जैश-ए-मुहम्मद ने जो आज आतंक और दहशत का पर्याय बन गया है सारे देश में। चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि करगिल युद्ध के बाद के चार चार सालों के दौरान कश्मीर में जिन 165 के करीब आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया गया था उनमें से 144 जैश-ए-मुहम्मद के खाते में गए थे जिनमें से 32 में मानव बमों ने हिस्सा लिया था।


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