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कश्मीर में मटन के बिना स्थगित किए जा रहे थे निकाह, अब राजमार्ग खुलते ही शादी की कल्पनाओं को लगने लगे पंख

कश्मीर में मटन की कमी के कारण जो निकाह स्थगित किए जा रहे थे अब उनमें राजमार्ग के खुलते ही शादी कल्पनाओं को पंख लगने लगे हैं। कश्मीरियों को उम्मीद है अब शादियां स्थगित नहीं करनी पड़ेंगी

कश्मीर में मटन के बिना स्थगित किए जा रहे थे निकाह, अब राजमार्ग खुलते ही शादी की कल्पनाओं को लगने लगे पंख
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जम्मू। कश्मीर में मटन की कमी के कारण जो निकाह स्थगित किए जा रहे थे अब उनमें राजमार्ग के खुलते ही शादी कल्पनाओं को पंख लगने लगे हैं। कश्मीरियों को उम्मीद है अब शादियां स्थगित नहीं करनी पड़ेंगी।

यही कारण था कि नजीर अहमद ने अपनी बेटी की शादी की कल्पना महीनों से की थी। साज-सज्जा तैयार थी, वजा पहले से ही बुक हो चुका था, और रिश्तेदार अनंतनाग में जश्न मनाने के लिए देश भर से आ चुके थे। 7 सितंबर हंसी-मजाक और पुनर्मिलन का दिन होना था।

पर अभी तक घर में सन्नाटा पसरा था। शादी स्थगित कर दी गई। इसकी वजह श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग था, जो अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण बंद हो गया था और सैकड़ों ट्रक फंस गए थे। उनमें से सौ से ज्यादा लोग कश्मीर की रसोई के लिए मवेशी ले जा रहे थे। पारंपरिक वाजवान दावत का मुख्य व्यंजन मटन के बिना, जश्न शुरू नहीं हो सका।

नजीर अहमद कहते थे कि हमने दो क्विंटल मांस बुक किया था। व्यापारी डिलीवरी नहीं कर सका। मटन के बिना वाजवान नहीं हो सकता, और वाजवान के बिना शादी नहीं हो सकती। शादी के आयोजकों, परिवारों और कैटरर्स ने घाटी में इसी तरह की रुकावटों की सूचना दी। कुछ जोड़ों ने नियमित आपूर्ति के लौटने का इंतजार करते हुए अपनी रस्में पूरी तरह से स्थगित कर दीं। अन्य लोगों ने समारोहों को छोटा रखा और अपने परिवार के सदस्यों को साधारण भोजन परोसा। जबकि श्रीनगर के एक दूल्हे कामरान अहमद कहते थे कि यह साधारण व्यंजनों वाला एक साधारण निकाह था। वलीमा रद्द कर दिया गया। कोई विकल्प नहीं था।

जानकारी के लिए कश्मीर में सालाना लगभग 60,000 टन मटन की खपत होती है, जिसकी कीमत रू4,000 करोड़ से ज्यादा है, जिसमें सिर्फ शादियों का हिस्सा लगभग रू1,500 करोड़ है। लंबे समय तक राजमार्ग बंद रहने से घाटी की दिल्ली, पंजाब और हरियाणा से आयातित मांस पर निर्भरता उजागर हुई और स्थानीय पशुधन उत्पादन को बढ़ावा देने पर बहस फिर से शुरू हो गई।

मटन डीलर्स एसोसिएशन के प्रमुख खजीर मोहम्मद रेगू के बकौल राजमार्ग बंद होने के कारण 200 से ज्यादा शादियां स्थगित करनी पड़ीं। वे कहते थे कि लगभग 300 भेड़ों को कीचड़ और पहाड़ों से होकर 20 किमी से ज्यादा पैदल चलना पड़ा। परिवारों को निकाह के लिए बहुत कम भेड़ें मिलीं। वाजवान दावतें रद्द करनी पड़ीं।

इस व्यवधान का असर रसोइयों, फोटोग्राफरों और मैरिज हाल मालिकों पर भी पड़ा। श्रीनगर के एक प्रमुख रसोइये मोहम्मद शरीफ खान बताते थे कि प्रत्येक क्विंटल मटन के लिए एक वाजा की कीमत रू 15,000 से रू 20,000 तक होती है। बुकिंग रद्द होने से, व्यापार पूरी तरह से ठप हो गया है।

वाजवान के लिए छोटे मेमनों की जरूरत होती है, जो आमतौर पर 15 किलोग्राम से कम वजन के होते हैं और जिन्हें कश्मीर के बाहर से आयात किया जाता है, क्योंकि स्थानीय जानवर अक्सर बहुत बड़े या महंगे होते हैं। रसोइयों ने बताया कि बड़े जानवरों का इस्तेमाल करने से खास व्यंजन खराब हो सकते हैं, इसलिए परंपरा को बनाए रखने के लिए आयात जरूरी है।

अब श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग के फिर से खुलने से सतर्कतापूर्ण आशावाद आया है। परिवारों को उम्मीद है कि स्थगित हुई शादियों का कार्यक्रम फिर से तय होगा और घाटी में शादियों के मौसम की लय फिर से बहाल होगी।


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