राजमार्ग बंद होने के बाद फल उत्पादकों ने सेब तोड़ना फिलहाल स्थगित किया
कश्मीर में प्रसिद्ध सेब का मौसम शुरू होते ही, निचले इलाकों के फल उत्पादक, जहां मौसम जल्दी शुरू हो जाता है, श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बार-बार बंद होने के कारण एक बार फिर संकट में फंस गए हैं। याद रहे श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग, देश के बाकी हिस्सों से कश्मीर का एकमात्र बारहमासी सड़क संपर्क है।

जम्मू। कश्मीर में प्रसिद्ध सेब का मौसम शुरू होते ही, निचले इलाकों के फल उत्पादक, जहां मौसम जल्दी शुरू हो जाता है, श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बार-बार बंद होने के कारण एक बार फिर संकट में फंस गए हैं। याद रहे श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग, देश के बाकी हिस्सों से कश्मीर का एकमात्र बारहमासी सड़क संपर्क है।
इस व्यवधान के कारण कई लोगों को सेब की तुड़ाई में देरी करनी पड़ रही है, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर उनकी उपज बाजारों तक पहुंचने के रास्ते में ही फंस गई तो उन्हें भारी नुकसान हो सकता है। कश्मीर घाटी फल उत्पादक सह विक्रेता संघ के अनुसार, उच्च घनत्व वाले सेब और नाशपाती ले जाने वाले लगभग 800 वाहन वर्तमान में राजमार्ग पर फंसे हुए हैं, जिससे हजारों परिवारों की आजीविका खतरे में है।
कई बागवान अब सरकार से रेलवे परिवहन को एक स्थायी विकल्प के रूप में तलाशने का आग्रह कर रहे हैं। पुलवामा के एक बागवान मोहम्मद यूसुफ कहते थे कि अगर मालगाड़ियों की व्यवस्था की जाए, तो फल उत्पादकों को हर साल सड़क बंद होने का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। सरकार कम से कम इसके अस्तित्व को सुनिश्चित तो कर ही सकती है।
संघ के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर कहते थे कि यह बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि हर साल, कटाई के मौसम में, फल उत्पादकों को किसी न किसी संकट का सामना करना पड़ता है। इस साल, लंबे समय तक बंद रहने से परिवहन में पहले ही देरी हो चुकी है, और हमारे जल्दी खराब होने वाले फल ऐसी स्थिति में टिक नहीं पा रहे हैं। बशीर कहते थे कि हम सरकार से मालगाड़ियों की व्यवस्था करने या मुगल रोड पर भारी वाहनों की व्यवस्था करने के लिए हस्तक्षेप करने की पुरजोर मांग करते हैं ताकि यह संकट हर मौसम में न दोहराया जाए।
उत्तरी कश्मीर के सबसे बड़े फल व्यापार केंद्रों में से एक, सोपोर के एक उत्पादक बशारत अहमद के बकौल, यह सेब और नाशपाती की शानदार किस्मों का पीक सीजन है। ष्हमारे ट्रक जितने ज्यादा समय तक फंसे रहेंगे, हमें उतना ही ज्यादा नुकसान होगा। अगर वे किसी तरह दिल्ली या दूसरे बाजारों तक पहुंच भी जाएं, तो उनकी हालत पहले जैसी नहीं रहेगी और हमें सही दाम नहीं मिलेंगे।
घाटी की लगभग 70 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बागवानी पर निर्भर है, जिसमें सेब ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कश्मीर भारत के 70 प्रतिशत से अधिक सेब का उत्पादन करता है, जो केंद्र शासित प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सालाना हजारों करोड़ रुपये का योगदान देता है।
किसानों को डर है कि अगर रुकी हुई उपज समय पर बाजारों तक नहीं पहुंची, तो फल सड़ जाएंगे, और जो फल तैयार भी हुए हैं, उनकी गुणवत्ता खराब होने के कारण उन्हें अपेक्षित दामों से बहुत कम दाम मिलेंगे।
हालांकि मुगल रोड को एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन बागवानों का कहना है कि इससे उन्हें ज्यादा राहत नहीं मिली है। मौजूदा प्रतिबंधों के तहत सिर्फ छह टायर वाले वाहनों को ही जाने की अनुमति है, जिससे फलों की ढुलाई सीमित हो जाती है। इसके अलावा, ऐसे वाहन अक्सर दिल्ली से आगे नहीं बढ़ पाते, जिससे बैंगलोर, कानपुर और चेन्नई जैसे दक्षिण और मध्य भारत के प्रमुख बाजार उनकी पहुंच से बाहर हो जाते हैं। शोपियां के एक बागवान गुलाम मोहम्मद कहते थे कि इन प्रमुख बाजारों तक पहुंच के बिना, हमारी आय की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं। इसलिए हमें एक दीर्घकालिक समाधान की जरूरत है।


