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20 साल बाद भी, कश्मीर के सीमावर्ती गांव भूकंप के जख्मों से ग्रस्त

एलओसी से सटे एक गांव में रहने वाले 80 वर्षीय गुलाम नबी खान आज भी सरकारी मदद से पुनर्निर्मित एक घर में रहते हैं, लेकिन उस दिन का दर्द आज भी उनके जहन से नहीं गया है

20 साल बाद भी, कश्मीर के सीमावर्ती गांव भूकंप के जख्मों से ग्रस्त
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जम्मू। एलओसी से सटे एक गांव में रहने वाले 80 वर्षीय गुलाम नबी खान आज भी सरकारी मदद से पुनर्निर्मित एक घर में रहते हैं, लेकिन उस दिन का दर्द आज भी उनके जहन से नहीं गया है। 20 साल पहले 8 अक्तूबर के दिन, उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की करनाह घाटी में एक विनाशकारी भूकंप आया था, जिसमें 150 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी, हजारों घर, पशुधन और जरूरी बुनियादी ढांचे तबाह हो गए थे, और पहाड़ों और खेतों पर गहरे निशान रह गए थे।

खान याद करते हुए बताते थे कि करनाह को तबाह और हिला देने वाले उस घातक भूकंप को 20 साल हो गए हैं, फिर भी यहां के लोगों के जहन में आज भी उस दिन की ताजा यादें ताजा हैं। वे कहते थे कि इस त्रासदी में लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया, और जिस दर्द ने हमें महीनों तक जगाए रखा, वह आज भी हमें सताता है।

वे बताते थे कि हम खेतों में व्यस्त थे जब धरती जोर से हिलने लगी। मैं घर की ओर भागा तो देखा कि छत ताश के पत्तों की तरह ढह रही है। मेरे दो पोते अंदर खेल रहे थे। वे जिंदा बाहर नहीं आ पाए। जब भी मैं आंखें बंद करता हंू, मुझे उनके चेहरे दिखाई देते हैं।

आज, खान अपने घर के पास एक छोटे से बाग की देखभाल करते हैं। वे कहते थे कि मैं रोज काम करता हूं, लेकिन घर का सन्नाटा मुझे याद दिलाता है कि मैंने क्या खोया है। खान के बकौल, यह एक प्राकृतिक आपदा थी; इसे कोई नहीं रोक सकता था, लेकिन हमने कल्पना से परे कष्ट सहे।

इसी तरह से स्थानीय लोगों ने बताया कि टंगधार, टीटवाल और अन्य सीमावर्ती इलाके सबसे ज्घ्यादा प्रभावित हुए हैं। मिट्टी और ईंटों से बने लगभग सभी कच्चे घर ढह गए, खासकर निचले इलाकों में जहां 90ः से ज्यादा इमारतें नष्ट हो गईं थीं। यहां तक कि सैन्य प्रतिष्ठान, पुल और पुलिया भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। भूस्खलन के कारण सड़कें, जिनमें महत्वपूर्ण करनाह-टंगधार मार्ग भी शामिल है, अवरुद्ध हो गईं, जिससे घाटी कई दिनों तक अलग-थलग रही।

68 वर्षीय फातिमा बेगम भूकंप से पहले ही विधवा हो गई थीं, लेकिन आपदा में उन्होंने अपने बेटे और कई पड़ोसियों को खो दिया। वे बताती थीं कि मैं झरने से पानी भर रही थी कि तभी धरती कांपी। जब तक मैं घर पहुंची, सब कुछ गिर चुका थां। और अंदर फंसा मेरा बेटा। कई दिनों तक, वह दूसरों के साथ मलबे में खोजती रही, किसी चमत्कार की उम्मीद में जो कभी हुआ ही नहीं। अब, फातिमा अपनी बेटी के साथ टंगधार में रहती हैं।

35 वर्षीय ज़ुबीदा की 2005 में नई-नई शादी हुई थी और वह आशा से भरी हुई थीं। वे बताती थीं कि हमने अभी-अभी अपना मिट्टी का घर बनाना समाप्त किया था कि भोर में भूकंप आया। दीवारें हिल गईं और फिर हमारे आस-पास सब कुछ गिर गया। मैंने अपने पति का हाथ कसकर पकड़ लिया और हम बच निकले, लेकिन हमारा घर तबाह हो गया। तब से, ज़ुबीदा एक सामुदायिक स्वयंसेवक बन गई हैं और आपदाओं के बाद महिलाओं को आजीविका फिर से बनाने में मदद करती हैं। उन्होंने बताया कि मैं चाहती हूँ कि युवा महिलाएं ऐसी कठिनाइयों का सामना करने के लिए सशक्त हों, और उम्मीद न खोएं, जैसा कि हमने लगभग खो ही दिया था।

मुश्ताक अहमद, जो अब 28 साल के हैं, सिर्फ आठ साल के थे जब भूकंप ने उनके स्कूल को तबाह कर दिया था। वे बताते थे कि मुझे कक्षा का हिलना, धूल और गिरे हुए बीमों के नीचे फंसें दोस्तों की चीखें याद हैं। कुछ तो बच नहीं पाए। अहमद ने याद किया कि बचपन में उन्हें लगता था कि दुनिया का अंत हो गया है, क्योंकि उनके आस-पास की हर चीज जोर से हिल रही थी और इमारतें जमीन पर गिर रही थीं।

करनाह में लगभग 1,700 परिवार भूकंप के बाद अस्थायी आश्रयों में रहने को मजबूर हो गए, जहां उन्हें कई दिनों तक बिजली, पानी या संचार के बिना रहना पड़ा। भूस्खलन के कारण सड़कें अवरुद्ध हो गईं, जिससे घाटी अलग-थलग पड़ गई।


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