जम्मू कश्मीर : किसका बनेगा मुख्यमंत्री बड़ा सवाल!
भाजपा को चमनलाल गुप्ता की याद है? जम्मू कश्मीर में चुनाव है और यह पहला विधानसभा चुनाव है जब भाजपा वहां गंभीरता से सरकार बनाने की सोच रही है

- शकील अख्तर
1992 की लाल चौक तक की यात्रा को मोदी जी बहुत याद करते हैं और यात्रा के नेता मुरली मनोहर जोशी को भुला देते हैं। जम्मू में उस यात्रा की सफलता का पूरा श्रेय चमनलाल गुप्ता का था। जम्मू के आगे तो एयर फोर्स के विमान से जोशी जी और मोदी जी को भेजा गया था। जहां तिरंगा फहराकर वे कुछ ही देर में वापस जम्मू आ गए थे।
भाजपा को चमनलाल गुप्ता की याद है? जम्मू कश्मीर में चुनाव है और यह पहला विधानसभा चुनाव है जब भाजपा वहां गंभीरता से सरकार बनाने की सोच रही है। प्रधानमंत्री मोदी का हर कदम उसी दिशा में उठता हुआ है। उन्होंने बहुत सारे काम किए। जिन्हें वे पहली बार कहते हैं। जैसे 2014 के बाद देश को सम्मान दिलाने का भी! ऐसे बहुत सारे दावे हैं। मगर एक काम जो वे करना चाहते हैं और जो बहुत मुश्किल है वह है- जम्मू कश्मीर में भाजपा का पहला मुख्यमंत्री बनाना।
उप मुख्यमंत्री वे बना चुके हैं। दो सरकारों में शामिल रह चुके हैं। प्रधानमंत्री बनते ही पहली बार मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार में और फिर मुफ्ती की बेटी महबूबा मुफ्ती की सरकार में।
लेकिन कभी भाजपा के वहां मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं आया। इसलिए याद कर रहे हैं भाजपा को यहां तक लाने वाले उसके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे चमनलाल गुप्ता को।
आज शायद भाजपा के नए नेताओं में उन्हें जानने वाले भी कम होंगे। मोदी जी के आने के बाद भाजपा में एक नई प्रथा चली है अपने पुराने नेताओं को भूलने की। जो केवल नींव के पत्थर ही नहीं थे बल्कि भाजपा के महल को ऐसा बनाया कि जहां बैठकर मोदी जी शासन कर सकें। मोदी जी शासन तो कर रहे हैं। मगर उन सब को भुलाकर जिन्होंने मोदी जी शासन के लिए महल बनाया।
1992 की लाल चौक तक की यात्रा को मोदी जी बहुत याद करते हैं और यात्रा के नेता मुरली मनोहर जोशी को भुला देते हैं। जम्मू में उस यात्रा की सफलता का पूरा श्रेय चमनलाल गुप्ता का था। जम्मू के आगे तो एयर फोर्स के विमान से जोशी जी और मोदी जी को भेजा गया था। जहां तिरंगा फहराकर वे कुछ ही देर में वापस जम्मू आ गए थे।
कश्मीर में आतंकवाद 1989 से शुरू हुआ। सबसे पहला हमला राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हुआ। राज्य सरकार भंग हो गई। राज्यपाल शासन लागू हो गया। पाकिस्तान चाहता था राजनीतिक शून्य की स्थिति। पोलिटिकल वैक्यूम! आतंकवाद के लिए वह सबसे आदर्श स्थिति होती है। जनता किसी के पास जा नहीं सकती। जगमोहन ने इसे नहीं समझा था। वे प्रशासन के जरिए राज करने की कोशिश करने लगे। जनप्रतिनिधियों का विकल्प ब्यूरोक्रेट नहीं हो सकते।
केन्द्र ने वहां रॉ ( रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के प्रमुख रहे गिरीशचन्द्र सक्सेना को भेजा। राज्यपाल की जिम्मेदारी संभालने के साथ उन्होंने जो हमें पहला इंटरव्यू दिया उसमें राजनीतिक प्रक्रिया की जरूरत बताई। वह राजनीतिक प्रक्रिया वहां बहुत चुनौतीपूर्ण थी। सबसे बड़े दल के नेता फारूख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर लंदन चले गए थे। नेशनल कांफ्रेंस नेतृत्वविहीन थी। सबसे से ज्यादा उसके लोग मारे जा रहे थे।
ऐसे में जिन लोगों ने राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लिया उनमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गुलाम रसूल कार, सीपीआईएम के युसूफ तारिगामी, भाजपा के चमनलाल गुप्ता और उस समय राजनीति में नहीं आए थे मगर सामाजिक रूप से सक्रिय और लेखक की भूमिका में आतंकवाद के सवालों को उठाते हुए डॉ जितेन्द्र सिंह जो केन्द्र में मंत्री हैं वे और भाजपा के ही वैद्ध विष्णुदत्त का नाम प्रमुख है।
खासतौर से भाजपा का जिक्र आज हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इस चुनाव में मोदी जी भाजपा का पहला मुख्यमंत्री बनाने की पूरी कोशिश करेंगे। चुनाव पूर्व सारी तैयारियां इसी दिशा में हुई हैं। विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्गठन किया गया। परिसीमन में जम्मू की सीटें बढ़ाकर 43 कर दी गईं। पहले यह 37 थीं। 6 सीटें बढ़ा दी गईं। उधर कश्मीर में केवल एक सीट बढ़ाई गई। पहले 46 थीं जो अब 47 कर दी गईं। राज्य का विभाजन कर दिया गया।
लद्दाख को अलग केन्द्र शासित राज्य का दर्जा दे दिया गया। जम्मू कश्मीर को भी। राज्यपाल का पद घटाकर उप राज्यपाल कर दिया। मगर उसकी शक्तियां बढ़ा दी गईं। 370 खत्म करके एक भावनात्मक माहौल बनाने की कोशिश हुई। मगर उसका फायदा शेष भारत में तो दिखा नहीं। 370 हटाने से पहले भाजपा की लोकसभा में 303 सीटें थीं। जो 370 हटाने के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव 2024 में घटकर 240 रह गईं। बहुमत की संख्या 272 से कम।
अब 370 हटाने के बाद जम्मू कश्मीर में पहला विधानसभा चुनाव है। भाजपा इसका फायदा जम्मू में देखना चाह रही थी। मगर जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी घटनाओं के बढ़ने, सेना के कई अफसरों के शहीद होने से मैसेज यह गया कि जिस तरह नोटबंदी से आतंकवाद खत्म करने का दावा किया गया था वैसे ही 370 हटाने से आतंकवाद खत्म करने का दावा भी खोखला निकला। जम्मू में बाकी समस्याएं भी वैसी की वैसी ही रहीं। उल्टे बेरोजगारी की और बढ़ गई। जम्मू से युवा बड़ी तादाद में सेना में जाते थे। मगर अग्निवीर ने उनके रोजगार का यह साधन भी छीन लिया।
पिछली बार 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अब तक की सर्वोच्च 25 सीटें जीती थीं। लेकिन दस साल बाद हो रहे विधानसभा चुनाव में अब बीजेपी कितनी और कैसी सफलता हासिल करेगी यह मुख्य सवाल है। विधानसभा 90 सीटों की है। 46 का बहुमत।
कश्मीर में बीजेपी को सबसे बड़ी उम्मीद गुलामनबी आजाद से है। मोदी उनका हर तरह से ध्यान इसीलिए रख रहे हैं। राज्यसभा में उनकी तारीफ की। पद्म सम्मान दिया। दिल्ली, जम्मू, श्रीनगर तीनों जगह सरकारी मकान। राज्यसभा समाप्त होने पर प्रधानमंत्री कार्यालय से संबद्ध केन्द्रीय राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने उनके लिए अपने घर भोज का आयोजन सब किया। मगर आजाद के पास है क्या देने को?
एक एक करके सब पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। लोगों को पार्टी का नाम भी याद नहीं। चुनाव की घोषणा हो गई आजाद का कहीं जिक्र भी नहीं। इसलिए एक नया शिगुफा शुरू करवाया कि वापस कांग्रेस में जा रहे हैं। फिर खंडन करवाया कि नहीं जा रहे। किसी तरह चर्चा में तो रहें। अब ऐसे कमजोर आजाद के भरोसे मोदी जी कश्मीर में क्या कर पाएंगे। मगर ऐसे दूसरे कई हैं। जिन्हें वहां लड़वाया जाएगा।
जम्मू कश्मीर में कहा जाता है कि सरकार उसी की बनती है जिसकी केन्द्र सरकार चाहती है और केन्द्र में जब मोदी जी जैसा प्रधानमंत्री हो जो सत्ता के लिए कुछ भी कर सकता हो तो जम्मू कश्मीर के चुनाव की स्थिति समझ जाना चाहिए। दो प्रमुख क्षेत्रीय दल हैं। एनसी और पीडीपी। दोनों भाजपा के साथ सरकार में शामिल रह चुके हैं। वाजपेयी सरकार में एनसी के उमर अब्दुल्ला विदेश राज्य मंत्री थे। और मुफ्ती सईद और महबूबा मुफ्ती दोनों की राज्य सरकारों में भाजपा शामिल थी।
चुनाव के नतीजों के बाद कु छ भी हो सकता है और चुनाव से पहले भी यह बड़ा सवाल है कि क्या इंडिया गठबंधन एक होकर लड़ पाएगा? लोकसभा की 5 सीटों में से पीडीपी एक सीट मांग रही थी। मगर दो पर कांग्रेस लड़ गई और तीन पर एनसी। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को अनंतनाग से हार का सामना करना पड़ा। यह उनका गृह लोकसभा क्षेत्र है यहां से वे पहले लोकसभा सदस्य रह चुकी हैं। इस हार का जख्म गहरा है।
जम्मू कश्मीर के इस चुनाव के कई शेड हैं। देखना है कौन किस तरह मैनेज करता है। भाजपा के लिए मुख्यमंत्री बनाने का पहला मौका और इंडिया गठबंधन से कौन बनेगा मुख्यमंत्री का बड़ा सवाल! साथ ही क्या मिलकर लड़ पाएंगे तीनों दल! पीडीपी नेशनल कान्फे्रंस और कांग्रेस।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


