जम्मू-कश्मीर : भाजपा की नीतियों और समझौतों पर संशय
नए जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा की 90 सीटों पर चुनावी गतिविधियां चरम पर हैं

- प्रदीप मिश्र
नई सरकार के स्वरूप के राजनीतिक के अलावा सांविधानिक कारण भी हैं। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून के अनुसार विधानसभा की 90 सीटों पर सीधा चुनाव होगा। पांच विधायकों का मनोनयन उपराज्यपाल करेंगे। दो सीटें कश्मीरी विस्थापितों और एक सीट पीओजेके विस्थापित के लिए आरक्षित है। कश्मीरी विस्थापितों में एक सीट महिला के लिए आरक्षित रहेगी।
नए जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा की 90 सीटों पर चुनावी गतिविधियां चरम पर हैं। अपनों की सरकार बनाने के लिए जम्मू के प्रवेश द्वार लखनपुर से कश्मीर के कंगन तक का अवाम उत्साहित है। नई सरकार में सुरक्षा, स्थिरता, समान विकास और समरसता ज्यादातर मतदाताओं का सपना है। सियासी दल इससे दबाव मेंं हैं। सोच को साकार करने और सरोकार पूरा करने के लिए समीकरण साधे जा रहे हैं। सीमाएं समझते हुए संभावनाओं के हिसाब से कई खुले और गुप्त समझौते हो चुके हैं। एक ही विचारधारा के संगठनों में सहमति बन रही है। बावजूद इसके घोषित-अघोषित गठबंधन अपने-अपने हित में बहुमत की सरकार चाहते हैं। फिर भी नई सरकार के स्वरूप, केंद्र से समन्वय, संतुलन, स्थिरता और स्थानीय स्तर की स्वायत्तता को लेकर संशय हैं। संकल्पों, गारंटियों और घोषणाओं को पूरा करने के लिए सीमित संसाधन जहां सावधान करते हुए आने वाले दौर की समस्याओं का इशारा कर रहे हैं, वहीं पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने से समाप्त पूर्ण राज्य के दर्जे की वापसी के केंद्र सरकार के आश्वासन पर क्रियान्वयन के सही समय का सवाल भी सहज और स्वाभाविक है।
भाजपा ने संकल्प के रूप में 25 सरोकार बताए हैं। इनमें पांच लाख नौकरियां, विद्यार्थियों को लैपटॉप, यात्रा के लिए तीन हजार रुपये और कोचिंग के लिए 10 हजार रुपये देने के अलावा मेडिकल कॉलेजों में एक हजार सीटें बढ़ाने का मंतव्य बेरोजगारी की समस्या पर ध्यान खींचता है। साथ ही मुफ्त पानी और बिजली के अलावा गरीबों को पांच मरला (125 गज) जमीन मुफ्त देने के अलावा किसानों को 10 हजार रुपये देने का वादा भी लुभावना है। वादों की आड़ में बड़े-बड़े दावे भी किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेेके) पर दावा मजबूत किया गया है। यहां भुलाने की कोशिश की गई कि 22 फरवरी, 1994 को पीवी नरसिंह राव की सरकार में संसद में पीओके को भारत का अभिन्न अंग बनाने का सर्वसम्मत संकल्प पारित किया गया था, जिसे 30 साल हो चुके हैं। इसी क्रम में जम्मू से कश्मीर का सफर 14 घंटे से चार घंटे में बताया जा रहा है। तथ्य यह कि सड़क मार्ग से जम्मू से श्रीनगर पहुंचने में पहले आठ घंटे लगते थे। अब यह यात्रा लगभग पांच घंटे में पूरी हो रही है।
इंडिया गठबंधन के घटक नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का चुनाव पूर्व गठबंधन है। दोनों के क्रमश: 51 और 32 उम्मीदवार मैदान में हैं। नेकां के घोषणापत्र में अनुच्छेद 370 और 35्र की बहाली के साथ पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कराने समेत 12 गारंटियां हैं। राजनीतिक कैदियों की रिहाई, जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) निरस्त करने, छह महीन में एक लाख नौकरियां देने और भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत की पहल करने की बात कही गई है। महत्वपूर्ण बात यह भी कि यदि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया तो सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
जानना जरूरी है कि अनुच्छेद 370 हटाने से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी राज्य का दर्जा छीनने पर सवाल उठाए थे। शीर्ष अदालत ने ही 30 सितंबर तक चुनाव कराने का निर्देश दिया था। कांग्रेस की गारंटियों में पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना तो है ही, एक लाख खाली सरकारी पद भरने, हर नागरिक का 25 लाख रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा के अलावा कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की योजना को आगे बढ़ाने का वादा है। 2014 के बाद भाजपा के साथ सरकार बना चुकी पीडीपी ने 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली, पानी पर टैक्स खत्म करने, गरीबों को रसोई गैस के 12 सिलेंडर देने की घोषणा की है।
जाहिर है कि नई सरकारों के लिए अपने वादों को अमली जामा पहनाने के लिए बड़ी धनराशि की जरूरत होगी। केंद्र शासित प्रदेश के संसाधन सीमित हैं। जम्मू-कश्मीर में आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने के सरकार के दावे के उलट यहां देनदारियां बढ़ी हैं। संसद द्वारा स्वीकृत 2024-2025 के बजट में बताया गया है कि केंद्र शासित प्रदेश की देनदारियां 2019-2020 में 83,573 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 1,12,797 करोड़ रुपये हो गई हैं। 2020-2021 में देनदारियां 92,953 करोड़ रुपये थीं, जो 2021-2022 में 1,01,462 करोड़ रुपये और 2022-2023 में 1,12,797 करोड़ रुपये तक पहुंच गईं। हालांकि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा प्रदेश के कर्ज मुक्त होने का दावा कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि कर्ज और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के बीच उचित अनुपात बना हुआ है। दूसरी ओर जानकार मानते हैं कि नई सरकार बनने के बाद होने वाले खर्च से सरकारी खजाने पर अचानक बोझ बढ़ेगा और आमदनी के साधन इसी तरह से नहीं बढ़ाए जा सकेंगे, क्योंकि लोकप्रियता के लिए सरकारें कर्ज लेने से परहेज नहीं करतीं हैं।
नई सरकार के स्वरूप के राजनीतिक के अलावा सांविधानिक कारण भी हैं। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून के अनुसार विधानसभा की 90 सीटों पर सीधा चुनाव होगा। पांच विधायकों का मनोनयन उपराज्यपाल करेंगे। दो सीटें कश्मीरी विस्थापितों और एक सीट पीओजेके विस्थापित के लिए आरक्षित है। कश्मीरी विस्थापितों में एक सीट महिला के लिए आरक्षित रहेगी। इसके अतिरिक्त सदन में उचित प्रतिनिधित्व नहीं होने पर दो और सीटों पर महिलाओं को मनोनीत किया जाएगा। मुख्य संशय दिल्ली और पुडुचेरी मॉडल को लेकर है।
दिल्ली में विधानसभा की 70 सीटें हैं। मनोनयन नहीं होता। पुडुचेरी में 30 सीटों पर चुनाव जबकि तीन सदस्य मनोनीत होते हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में प्रशासन का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 239 में है। 239ए के अनुसार विधानमंडल सर्वोच्च है। सदन उपराज्यपाल से ऊपर है। हालांकि मद्रास उच्च न्यायालय व्यवस्था दे चुका है कि एलजी सदन में पारित विधेयकों को रोक सकते हैं। दिल्ली में 239एए के प्रावधान लागू होते हैं। दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में सरकार के लिए वित्तीय मामलों, टैक्स लगाने, छूट देने, बदलने बगैरह में उपराज्यपाल की सहमति आवश्यक होती है। जुलाई में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पुनर्गठन कानून की धारा 55 में संशोधित नियमों को अधिसूचित किया था। इसमें उप राज्यपाल को विस्तारित शक्तियां देने वाली नई धाराएं जोड़ी गई हैं। इसके बाद राजनीतिक हल्कों में अटकलें लगीं कि पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने में देर लगेगी।
यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट से जमानत पाने वाले बारामुला के निर्दलीय सांसद इंजीनियर रशीद ने अपनी अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) और प्रतिबंधित होने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ रही जमात-ए-इस्लामी के साथ तालमेल कर लिया है। पहले चरण की 24 सीटों पर मतदान के ठीक पहले हुए इस समझौते को नए समीकरणों का संकेत माना जा रहा है। राष्ट्रवादी इसे संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। चुनाव के पहले रशीद की रिहाई केंद्र सरकार से उनके सहयोग के भरोसे का नतीजा माना जा रहा है। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को अपने प्रभाव क्षेत्र वाले इलाकों में मात देने की नीयत से चाल चली गई है। एआईपी कश्मीर घाटी की 35 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
लोकसभा चुनाव में रशीद ने 18 में से 14 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की थी। अनजान सी पार्टी के इतनी सीटों पर उम्मीदवार उतारने से आश्चर्य है। कहा जा रहा है कि 2014 में पीडीपी की तरह ही 2024 में एआईपी-जमात गठबंधन से भाजपा का चुनाव पश्चात समझौता संभव है। घाटी की 47 में से 28 सीटों को खाली छोड़कर भाजपा ने इस संभावना के सशक्त होने का संदेश दिया है। अल्पमत से बचने और बहुमत की सरकार बनाने के लिए भाजपा 62 सीटों पर लड़ कर 50 सीटें जीतने पर जोर लगा रही है।
(लेखक जम्मू-कश्मीर में पत्रकार रह चुके हैं।)


