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ज्ञानवापी और मथुरा के ईदगाह प्रकरण से देश की एकता, अखंडता को खतरा : जमीयत

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में ईदगाह मस्जिद जैसे संवेदनशील प्रकरण, देश की एकता, अखंडता, शांति और भाइचारे को नुकसान पहुंचा सकते है

ज्ञानवापी और मथुरा के ईदगाह प्रकरण से देश की एकता, अखंडता को खतरा : जमीयत
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देवबंद, इस्लामिक शिक्षा के प्रमुख केन्द्र जमीयत उलमा ए हिंद ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद में चल रहे अपने राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के मुसलमानों से हिंदी को अपनाने की अपील करते हुए चेतावनी भरे लहजे में कहा कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में ईदगाह मस्जिद जैसे संवेदनशील प्रकरण, देश की एकता, अखंडता, शांति और भाइचारे को नुकसान पहुंचा सकते है।
जमीयत ने रविवार को यहां आयोजित दो दिवसीय वार्षिक सम्मेलन के अंतिम सत्र में पारित प्रस्ताव के जरिए सरकार से कहा है कि वह सियासी दलों और धार्मिक संगठनों को अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से रोकें और संविधान के पालन पर जोर दें।
इस्लामिक शिक्षा की देवबंदी धारा के अग्रणी सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक संगठन के रूप में विख्यात जमीयत उलमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में रविवार को सम्मेलन के अंतिम सत्र में तीन प्रमुख प्रस्ताव पारित किए गए। इन प्रस्तावों में सरकार से मांग की गई है कि समान नागरिक संहिता लागू न की जाए। यह मुसलमानों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने जैसा होगा। प्रस्ताव में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 25 में देश के नागरिकों को अपनी पसंद के धर्म को अपनाने, उसका पालन एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता बुनियादी अधिकारों के रूप में प्राप्त है।
प्रस्ताव में मुसलमानों से भी अपील की गई कि वे शरीयत के निर्देशों का सख्ती से पालन करें। इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव में कहा गया कि शादी, तलाक, खुला, विरासत के मामले, नमाज, रोजा, हज की तरह धार्मिक आदेशों का हिस्सा हैं। जो कुरान और हदीस से मिले है। उसमें दखल इस्लाम में दखल होगा। जो असंवैधानिक है।
जमीयत ने देश के मुसलमानों से पुरजोर अपील की है कि भारत के मुसलमान हिंदी को अपनाए और अंग्रेजी भाषा से परहेज करे। जमीयत ने मुसलमानों से यह भी कहा कि हिंदी की तरह बंगाली, तमिल, मलयालम, पंजाबी, गुजराती, असमिया, कन्नड आदि सभी भारतीय भाषाएं है। सभी को मुसलमान दिल से इस्तेमाल करे। इस संबंध में पारित प्र्रस्ताव में कहा गया कि शेखुल इस्लाम मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने जमीयत की हैदराबाद में आयोजित 17 वीं महासभा में हिंदी के बारे में कहा था कि यह देश की अपनी भाषा है। यह अंग्रेजी की तरह सात समुंदर पार कर भारत नहीं आई है। इसे मुसलमान अपनाए और दूसरों को भी प्रोत्साहित करे।
रविवार को दारूल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी, उपाध्यक्ष मौलाना सलमान मंसूरपुरी, एआईयूडीएफ प्रमुख एवं सांसद मौलाना बदरूद्दीन अजमल, मौलाना महमूद मदनी और पश्चिम बंगाल के कैबिनेट मंत्री मौलाना सिद्दीकउल्लाह चौधरी सहित अन्य नेताआें ने संबोधित किया।
वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि आज देश जिस दौर से गुजर रहा है उसमें मुसलमानों को डर, निराशा, अलग-थलग पड़ने और उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिशें हो रही है। जिससे यह आशंका पैदा होती है कि यदि मुस्लिम किसी वजह से संयम और धैर्य छोड़ते हुए कोई अनुचित प्रतिक्रिया कर देते है तो उससे सांप्रदायिक ताकतों का हित सधेगा और फांसीवादी अपने लक्ष्यों की पूर्ति में कामयाब हो जायेंगे। इसलिए मुसलमान किसी भी प्रतिक्रिया से बचें।
तकरीरों में इस बात का भरोसा दिलाया गया कि जमीयत उनके हितों और मान-सम्मान की सुरक्षा के लिए सदैव उनके साथ खडी है। न वे डरें, न संयम छोड़ें। बल्कि, पूरे मन से अपने कामकाज में लगे रह कर देश के विकास में अपना भरपूर योगदान दें।


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