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जामिया के प्रदर्शनकारी बोले-हरे नहीं, तिरंगे तले जुटे हैं

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों का प्रदर्शन 22वें दिन भी में बदस्तूर जारी रहा

जामिया के प्रदर्शनकारी बोले-हरे नहीं, तिरंगे तले जुटे हैं
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नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों का प्रदर्शन 22वें दिन भी में बदस्तूर जारी रहा। शुक्रवार को यहां समर्थकों की भारी भीड़ उमड़ी। प्रदर्शनकारियों ने 'पढ़ो जामिया, लड़ो जामिया' के नारे लगाए। जामिया के छात्रों ने यहां अपना विरोध जाहिर करने के लिए विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार के बाहर धरना दे रहे हैं उन्होंने यहां 6 फीट की एक काल कोठरी भी बनाई है।

प्रदर्शनकारियों को समर्थन देने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस नेता शकील अहमद, कई प्रोफेसर व सामाजिक कार्यकर्ता शुक्रवार को जामिया पहुंचे।

पूर्व राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब ने जामिया पहुंचकर छात्रों से कहा, "जेपी आंदोलन के समय हमने देखा था कि सरकार किस तरह बदलती है। जब-जब संविधान पर आक्रमण होता है, तब-तब देश के धरातल से आंदोलन की बयार चलती है।"

उन्होंने इस आंदोलन में मुस्लिमों की भूमिका पर कहा, "ये सब हरे झंडे के नीचे नहीं, तिरंगे के नीचे जमा हुए हैं। यह आंदोलन मौलानाओं के नेतृत्व में नहीं चल रहा है, बल्कि इसका संचालन छात्र कर रहे हैं।" उनकी इस बात का छात्रों ने खुलकर समर्थन किया और तालियां बजाकर इसकी तस्दीक की।

मोहम्मद अदीब ने आगे कहा, "कभी-कभी मुझे लगता है कि हुकूमत की निगाह में हमारा गांधीजी की तरफ होना गुनाह है। क्या हमने जिन्ना की तरफ ना जाकर गांधी की तरफ आकर गुनाह कर दिया है?"

उन्होंने हिंदुत्व पर सवाल उठाते हुए कहा, "हम नहीं, ये तालिबानी हिंदू देश का विनाश कर रहे हैं।" उन्होंने प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ाते हुए कहा, "आप सब गांधीजी और नेहरू का सपना पूरा कर रहे हैं, कभी कमजोर मत पड़ना।" मोहम्मद अदीब की बात पूरी होते ही छात्रों ने 'जामिया जिंदाबाद, सीएए मुदार्बाद' के नारे लगाए।

जामिया छात्रों के बीच आए प्रोफेसर अगवान ने कहा कि नए साल 2020 में सरकार और जनता के बीच 20-20 मैच शुरू हो गया है। अगवान ने युगोस्लाविया का उदाहरण देते हुए कहा कि युगोस्लाविया के राजनीतिज्ञों ने अपने नागरिकता कानूनों को बार-बार बदला। वे शुद्ध राष्ट्रवाद की संकल्पना चाहते थे, लेकिन उसके परिणाम देखिए कि आज विश्व में युगोस्लाविया का नामोनिशान नहीं है।


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