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लोकतंत्र में  केवल जय—जय नहीं पराजय भी

हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने नारा दिया था, अबकी बार 75 पार यानि प्रदेश की 90 सीटों पर बड़ी जीत हासिल करना

लोकतंत्र में  केवल जय—जय नहीं पराजय भी
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कुमार पंकज

नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने नारा दिया था, अबकी बार 75 पार यानि प्रदेश की 90 सीटों पर बड़ी जीत हासिल करना। लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। वहीं महाराष्ट्र में साल 2014 की जीत से बड़ी जीत भी पार्टी हासिल नहीं कर पायी। दोनों ही राज्यों के चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया कि लोकतंत्र में केवल जय—जय नहीं पराजय भी है। दूसरी ओर विपक्षी दल भी भाजपा के राष्ट्रवाद के मुद्दे की हवा में ज्यादा मेहनत नहीं कर पाए। जिसका नतीजा चुनाव परिणामों पर साफ तौर पर दिख रहा है।

चुनाव पूर्व भाजपा के पक्ष में राजनीतिक पंडितों ने दावा किया था कि परिणाम एकतरफा होंगे लेकिन जनता ने बता दिया कि लोकतंत्र में केवल जय—जय नहीं हो सकती। इसके लिए जमीन पर उतरकर काम करने की जरूरत है। परिणाम केवल भाजपा के लिए नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए भी सबक है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष को बदलकर रणनीतिक बदलाव किया। लेकिन राज्य में कांग्रेस नहीं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भाजपा से सीधा मुकाबला कर रहे थे। राज्य में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का उत्साह भी नजर नहीं आ रहा था। रोचक तथ्य तो यह है कि राज्य में कांग्रेस के जो 40 स्टार प्रचारकों की सूची थी उसमें आधे से अधिक तो प्रचार करने के लिए ही नहीं गए। वहीं दूसरी ओर भाजपा भले ही राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव का माहौल अपने पक्ष में करने में जुटी रही लेकिन पार्टी के नेताओं ने जी तोड़ मेहनत करने में कोई कमी नहीं की।

कुछ ऐसा ही दृश्य महाराष्ट्र में भी रहा जहां सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा नेता जी—तोड़ करते नजर आए वहीं कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सहित राज्य के कई वरिष्ठ नेताओं की कोई दिलचस्पी नहीं दिखी। राज्य में कांग्रेस के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठबंधन था और गठबंधन की ओर से अकेले दम पर राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार ताल ठोंकते नजर आए। चुनाव के दौरान राज्य के कई इलाकों के दौरे के दौरान कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने वाला कोई बड़ा नेता भी नहीं दिख रहा था। फिर भी राज्य की जनता ने कांग्रेस के पक्ष में जो माहौल बनाया है उसका संदेश साफ तौर पर है कि अगर शीर्ष नेताओं ने मेहनत की होती तो शायद आंकड़ा और बेहतर हो जाता।


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