Top
Begin typing your search above and press return to search.

झाबुआ की आदिवासी महिलाएं बनीं 'पैड वूमैन',रोगों से उन्हें दूर रखने के टिप्स भी दे रही​​​​​​​

सैनिटरी पैड जागरुकता को लेकर अक्षय कुमार ने भले ही अब फिल्म बनाई हो

झाबुआ की आदिवासी महिलाएं बनीं पैड वूमैन,रोगों से उन्हें दूर रखने के टिप्स भी दे रही​​​​​​​
X

झाबुआ। सैनिटरी पैड जागरुकता को लेकर अक्षय कुमार ने भले ही अब फिल्म बनाई हो, पर मध्यप्रदेश के आदिवासीबहुल झाबुआ जिले की बेहद कम पढ़ी लिखी आदिवासी महिलाएं हजारों महिलाओं को रोगों से बचाने के लिए पिछले दो साल से 'पैड वूमैन' की भूमिका निभा रही हैं।

जिले के एक छोटे से आदिवासी गांव आंबाखोदरा की दस आदिवासी महिलाएं सैनिटरी नैपकिन बनाने का स्वरोजगार कर रही है।

इससे ये महिलाएं न केवल अपनी आजीविका चला रही हैं, बल्कि गांव की महिलाओं को शिक्षित करते हुए इनका उपयोग करना और रोगों से उन्हें दूर रखने के टिप्स भी दे रही हैं।

इन महिलाओं को एक स्वयंसेवी समूह आजीविका परियोजना संस्था ने यह काम सिखाया। इन महिलाओं को इस काम में उतरने के पहले ग्रामीणों के गुस्से का सामना भी करना पड़ा, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी।

संस्था ने करीब साढ़े तीन लाख रुपए की लागत से महिलाओं को सामान और मशीन दिलाकर प्रशिक्षण दिया, अब ये महिलाएं सफलतापूर्वक काम कर रही हैं।

पैड वूमैन बनीं हेमलता और जमुना ने बताया कि इस काम से उन्हें हर महीने करीब एक हजार रूपये की आमदनी हो रही है और ग्रामीण महिलाओं को बीमारियां भी नहीं हो रहीं।

गांव की महिलाओं के बीच भी अब सैनिटरी पैड को लेकर जागरुकता बढ़ रही है।

आजीविका परियोजना के विमल राय ने बताया कि उनकी संस्था जिले भर में ऐसे 17 समूहों का संचालन कर रही है।
इसमें लगभग दो सौ महिलाएं प्रशिक्षण लेकर काम कर रही है।

अक्षय कुमार की इस विषय पर बनाई गई फिल्म पैडमैन के पहले देश भर में सैनिटरी पैड को लेकर जागरुकता आ रही है।

आज प्रदर्शित हो रही यह फिल्म अरुणाचलम मुरुगनाथनम की बॉयोपिक है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे मुरुगनाथनम ने दुनिया भर का विरोध सहते हुए अपनी पत्नी के लिए सैनेटरी पैड बनाए।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it