एक-एक इंच काम करना कठिन था, बना ली 9.4 किमी सड़क
जिले की सबसे दुर्गम और नक्सल चुनौती से ग्रसित लिमऊटोला-मलैदा-जुरलाखार सड़क का सपना जल्द ही पूरा होने जा रहा है

गाड़ा रवान चमचमाती सड़क मेें तब्दील
राजनांदगांव। जिले की सबसे दुर्गम और नक्सल चुनौती से ग्रसित लिमऊटोला-मलैदा-जुरलाखार सड़क का सपना जल्द ही पूरा होने जा रहा है। विषम भौगोलिक स्थिति तथा नक्सल चुनौती के दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में सड़क के लिए एक-एक इंच काम करना कठिन था लेकिन पुलिस और अर्धसैनिक बल के जवानों की जागरूक सुरक्षा में तथा इंजीनियरों एवं श्रमिकों के कठिन परिश्रम से 9.40 किमी का काम पूरा कर लिया गया है।
बारिश के दिनों में शेष दुनिया से चार महीने कटे रहने वाले दस गाँवों के लोगों के लिए यह सड़क जीवनरेखा साबित हो रही है। खैरागढ़ और छुईखदान ब्लाक के इन गांवों के लिए पहले कोई रास्ता नहीं था केवल बैलगाड़ी जाने का पैसेज था जिसे छत्तीसगढ़ी में लोग गाड़ा रवान कहते थे। सांसद अभिषेक सिंह से जब इन गाँवों के लोग मिलें तो उन्होंने आश्वस्त किया कि कैसी भी विषम परिस्थिति हो, इन गाँवों को जोड़ने का कार्य आरंभ किया जाएगा। इसके बाद तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल ने आईएपी तथा बीआरजीएफमद से 6.30 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति इस कार्य के लिए दी।
कलेक्टर भीम सिंह ने डीएमएफ से 4.22 करोड़ रुपए की राशि डामरीकरण (डब्ल्यूएमएम प्लस बीटी) के लिए दी। पीएमजीएसवाय के कार्यपालन अभियंता बलवंत पटेल ने बताया कि बरसात में और शेष महीनों में भी इन गाँवों तक पहुँचना बेहद कठिन है। सड़क बनने से लोगों की बुनियादी दिक्कतें दूर होंगी। पटेल ने बताया कि कलेक्टर भीम सिंह एवं एसपी प्रशांत अग्रवाल हर सप्ताह सड़क की प्रगति की जानकारी ले रहे हैं एवं इनके मार्गदर्शन में कार्य निरंतर प्रगति पर है।
ग्रामीणों के लिए सड़क का सपना जल्द पूरा हो। सड़क निर्माण के दौरान सुरक्षा पुख्ता हो। किसी तरह की तकनीकी दिक्कत आने पर प्रशासनिक स्तर पर समन्वय किया जा सके। इसके लिए हर महीने कलेक्टर भीम सिंह एवं एसपी प्रशांत अग्रवाल ने निर्माण कार्य से जुड़े अधिकारियों की समीक्षा बैठक ली। समीक्षा बैठक में अधिकारियों ने जो परेशानियाँ रखीं, उस पर तुरंत एक्शन लिए गए और काम के प्रभावी रूप से चलते रहने का रास्ता बनाया गया।
यह इतना दुर्गम इलाका है कि जब पहली बार इंजीनियर इन गाँवों में सर्वे के लिए पहुँचे तो भटक गए। फिर काफी मशक्कत के बाद वे लिमऊटोला तक पहुँचे। बरसात में जब नाले अपने उफान पर होते हैं तो जुरलाखार तक पहुँचना लगभग असंभव है। केवल 9.40 किमी के रास्ते में ही 25 पुल बनाये गए इसमें 2 पुल तो 25 मीटर के हैं। कई स्थलों पर घाटकटिंग का मुश्किल कार्य किया गया।


