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बुद्धिजीवियों का पूंजी के लिए काम करना घातक

 गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के रजत जयंती सभागार में आज से भारत नवोन्मेष: वैभवशाली अतीत से आधुनिक अभ्युदय  तक विषय पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई

बुद्धिजीवियों का पूंजी के लिए काम करना घातक
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बिलासपुर। गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के रजत जयंती सभागार में आज से भारत नवोन्मेष: वैभवशाली अतीत से आधुनिक अभ्युदय तक विषय पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई। इस विषय पर शोध करने के बाद पोस्टर और मौखिक प्रस्तुति के लिए कई राज्यों से शोधार्थी और प्राध्यापक शामिल हो रहे हैं।

मुख्य अतिथि केंद्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री डॉ सत्य पाल सिंह ने संगोष्ठी में कहा. मैकाले का उद्देश्य था कि देश में राज करना हो तो यहां की संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करना होगा। ये संस्कृति मानव की हैए भारतीय युवा अपने इतिहास से सीख लेकर भविष्य का निर्माण करें। जो अपने पुरखों को असभ्य कहते हैं उन्हें शर्म आनी चाहिए। देश के बुद्धिजीवी जब पूंजी के लिए काम करते हैं तब सच बोलने से डरते हैंए यह देश के लिए घातक है।

छत्तीसगढ़ के उच्च शिक्षा मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने सभी विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रमों में अध्यात्मिकता और मानवता को शामिल करना चाहिएए ताकि विद्यार्थी जीवन में नैतिक शिक्षा से भी अवगत हों। हमारे देश में अविष्कार और सृजन हुए लेकिन कभी पेटेंट नहीं किया गयाए लेकिन अब ज्ञान का भी पेटेंट कर दिया गया। शिक्षकए डॉक्टर की तनख्वाह से उनकी गुणवत्ता का निर्धारण करना शिक्षा के लिए घातक है। वेस्ट ने हमारा बेस्ट लेकर अपना वेस्ट दे दिया।

इससे पहले कार्यक्रम के शुभारंभ में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषदए नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ.बीबी कुमार ने कहा. समाज विज्ञान में शोध कार्य बेहद आवश्यक है। इक्कीसवीं सदी समाज विज्ञान की हैए मैं कभी किसी छोटे समूह का अवलोकन कर बताउंगा कि शोध कार्य किस तरह होना चाहिए। हमेशा शोध कार्य समाज हित के लिए होना चाहिए। मुझे खुशी है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के मंच से अपनी बात आपसे कह रहा हूं।

आईजीएनसीएए नई दिल्ली के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि भारत किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। अपने अंदर प्रोत्साहन जगाने की आवश्यकता है और इस विषय से संबंधित पहली संगोष्ठी नागपुर में नवंबर में हुई और उसी कड़ी में ये श्रृंखला आगे बढी है। हम चाहते हैं कि इस विषय पर और भी संगोष्ठी हो ताकि दुनिया को भारत के वैभवशाली इतिहास की जानकारी हो। बतौर अतिथि पद्म भूषण और अमेरिकन वैदिक अध्ययन संस्थान, यूएसए से शामिल हुए डॉ डेविड फ्रॉले ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद भारत में नवचेतना का प्रचार शुरु हुआ। वर्तमान भारत तकनीक के अधीन है। इसके लिए समाजवादी दोषी हैं। आध्यात्मिक नवचेतना की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने पश्चिमी संस्कृति की मीमांसा की ओर कहा कि भारत सांस्कृतिक स्वावलंबन का देश है। उन्होंने ये भी कहा कि भारत में अब सांस्कृतिक असमानताएं दिखाई देती हैं।

जिन्हें समाप्त कर नये भारत का अभ्युदय होगा। इन्होंने प्राचीन संस्कृति की विरासत जैसे. योगए साधना का महत्व बताते हुए नई विधाओं से संस्कृति को समृद्ध करने की बात कही।

फ्रांस से आए विद्वान फ्रांसवा गौतिये ने भारत के पुनजागरण की आवश्यकता बताई और इसके लिए वर्तमान कालावधि को उपयुक्त बताया। अपनी विरासत से संबंध तोड़ने को सांस्कृतिक पतन का एक कारण बताया। वर्तमान भारत की चुनौतियों का विश्लेषण करते उन्होंने कहा कि भारतीय महापुरुष और गौरवशाली विरासत से सीख लेकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है। भारतीय अपने देश की आलोचना छोड़ेंए देश के प्रति कृतज्ञता का भाव रखें और प्रगति में अपना योगदान दें।

कुलपति प्रो अंजिला गुप्ता ने अध्यक्षीय भाषण में कहा. हम देश, विदेश के अतिथियों को साथ पाकर गौरवान्वित हैं। यहां आयोजित सत्र में इनके अनुभवों से सभी लाभान्वित होंगे। संगोष्ठी में अमिता शर्मा, योगिनी और छत्तीसगढ़ के अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपति भी उपस्थित थे।

संगोष्ठी में कुल 4 पोस्टर सत्र आयोजित होंगे। आज के पहले पोस्टर प्रस्तुति सत्र में लगभग 50 शोधार्थी और शिक्षक शामिल हुए। सभागार परिसर में भारत नवोन्मेष से जुड़े अनेक पहलुओं जैसे. शिक्षाए इतिहासए जनजातियां एवं धर्म से संबंधित पोस्टर लगाए गए हैं। इस अवसर पर एक स्मारिका का विमोचन किया गया। संगोष्ठी का संचालन डॉ गरिमा तिवारी ने किया। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर बीएन तिवारी ने सभी वक्ता और अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।


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