रोकना होगा इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध
लगभग पौने दो वर्षों से दुनिया रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के रुकने का बेसब्री से इंतज़ार कर ही रही है

लगभग पौने दो वर्षों से दुनिया रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के रुकने का बेसब्री से इंतज़ार कर ही रही है, वहीं उसके सामने एक और बड़ी लड़ाई आकार लेती हुई नज़र आ रही है। फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास द्वारा शनिवार के तड़के केवल 20 मिनटों में इजराइल पर पांच हजार रॉकेट दाग दिये गये। इससे इजराइल व गाजा पट्टी में 500 लोगों के मरने की खबर है, जिनमें 26 इजराइली सैनिक हैं। दक्षिणी इजराइल के बिर्शेबा नामक शहर में 750 इजराइली नागरिक घायल हुए हैं।
अनेक बेहद गम्भीर है। इसका जवाब देते हुए इजराइल ने गाजा पट्टी के 17 फिलिस्तीनी मिलिट्री शिविरों और चार सेना मुख्यालयों पर बड़ा हमला बोल दिया। दक्षिणी लेबनान पर उसने बम बरसाए हैं। इससे करीब 200 फिलिस्तीनियों की मौत हुई तथा डेढ़ हजार से भी अधिक लोग घायल हुए हैं। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ऐलान किया है कि 'उनका देश युद्ध में शरीक हो गया है।' अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन आदि पश्चिमी देशों के साथ यूरोपियन यूनियन ने इजराइल का समर्थन किया है। दूसरी तरफ ईरान ने हमास को इस हमले के लिये बधाई देते हुए उसे आश्वस्त किया है कि इजराइल के खिलाफ लड़ाई में वह फिलिस्तीन व यरूशलम की आजादी तक उसका साथ देगा।
अरब देशों के साथ इजराइल की लड़ाई का इतिहास करीब एक सदी पुराना है, यानी इजराइल को स्वतंत्र देश बनने के भी पहले से। अनेक बार इजराइल अपने मुस्लिम बहुल 8 पड़ोसी मुल्कों से उलझता रहा है जिस दौरान इनके बीच कई जंगें हो चुकी हैं। हालांकि 1978 के मध्य में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के निमंत्रण पर तब के इजराइली पीएम मेनाकेम बेगिन एवं एक युद्धरत देश मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात के बीच कैंप डेविड में शांति समझौता हुआ था लेकिन अन्य देशों के साथ ऐसा कोई माहौल कभी नहीं बन पाया। इन देशों के साथ इजराइल के हुए अनेक छोटे-बड़े संघर्षों ने फिलिस्तीन को अपनी जमीन खोने पर मजबूर ही किया। जहां तक ताज़ा लड़ाई की बात है, तो इसके आसार इस साल के अप्रैल से बनने लगे थे जब इजराइली पुलिस ने अल अक्सा मस्जिद में ग्रेनेड फेंककर इसे अपवित्र किया था। इस धर्म स्थल पर दोनों (इजराइल-फिलिस्तीन) अपना हक जताते हैं।
यहूदी इसकी पश्चिमी दीवार को यहूदी मंदिर का अंतिम अवशेष मानते हैं तो वहीं फिलिस्तीनियों की मान्यता है कि यह अल बराक मस्जिद की दीवार है। उनके लिहाज से मक्का व मदीना के बाद यह मुस्लिमों के लिये सबसे पवित्र स्थान है। 1970 के दशक में एक समझौता हुआ था कि गैर मुस्लिम यहां आ सकते हैं परन्तु वे कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं कर सकेंगे। पिछले दिनों इसलिये विवाद भड़का क्योंकि यहां आकर कुछ यहूदियों ने पूजा करने की कोशिश की थी। हमास ने यह आक्रमण ऐसे दिन पर (शनिवार को) बोला जब यहूदियों का पवित्र त्यौहार सिमचैट टोरा मनाया जा रहा था। इजराइल इन दिनों अपने अंदरूनी विवादों में भी व्यस्त है। सरकार द्वारा न्यायपालिका के अधिकारों में कटौती करने वाले कदमों के खिलाफ वहां जन आंदोलन जारी हैं। इतना ही नहीं, 6 अक्टूबर को 1973 के युद्ध की 50वीं वर्षगांठ भी थी।
वैसे तो युद्ध की स्थिति तक पहुंचने के कई कारण हैं लेकिन इसके सम्भावित परिणामों पर विचार किये जाने की आवश्यकता है। रूस व यूके्रन के बीच युद्ध में नाटो के तहत जो तमाम पश्चिमी देश यूके्रन के साथ खड़े हैं वे इजराइल के भी साथ हैं। इसके कारण एक बार फिर से दुनिया के देश ईसाई और मुस्लिम खेमों में बंट जायेंगे। ईसाई देशों का समर्थन स्वाभाविकत: इजराइल के साथ है तो वहीं मुस्लिम देश फिलिस्तीन के साथ हैं। इसमें भी जिस प्रकार से ईरान ने खुलकर हमास द्वारा किये गये हमलों का स्वागत किया है, अगर वह फिलिस्तीन के समर्थन में बाकायदे लड़ाई के मैदान में उतर आता है तो स्थिति विकट हो सकती है। तुर्किए भी फिलिस्तीन को समर्थन दे सकता है तो वहीं चीन का झुकाव भी फिलिस्तीन की ही ओर होगा। भारत ने इजराइल के साथ एकजुटता दिखलाई है। मध्य पूर्व के इन देशों के पास खतरनाक हथियारों के ज़खीरें हैं। स्वयं हमास, जिसकी गतिविधियां संचालित करने का केन्द्र गाजा पट्टी है, ड्रोन और रॉकेटों से हमले करने में सक्षम है।
यूके्रन की लड़ाई बहुत लम्बे समय तक न चलने के अनुमान लगाए गए थे लेकिन अब इस लड़ाई को पौने दो वर्ष होने को आए हैं, तो भी कोई संकेत दिखलाई नहीं पड़ रहे हैं कि यह थमेगा। इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कैसा पड़ा है- यह सभी देख रहे हैं। ऐसे में अगर दुनिया को एक और युद्ध झेलना पड़े तो वह उसे झेल नहीं पाएगा। युद्ध केवल परस्पर विरोधी देशों के सैनिकों के बीच का ही मसला नहीं होता बल्कि इससे निर्दोष नागरिकों को ज्यादा तकलीफें उठानी पड़ती हैं। हमास के व इजराइली हमलों में जनसामान्य को जान-माल की हानि उठानी पड़ी है। हमास की अंधाधुंध फायरिंग में कई लोग मारे गये तथा महिलाओं को निर्वस्त्र कर उन्हें पैरों से रौंदा गया है। बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। उनमें से कई जीवन भर के लिये अपाहिज हो सकते हैं या आजीवन शारीरिक तकलीफों से गुजरेंगे। विकास के लिये शांति ज़रूरी है और युद्ध विकास का अवरोध है। यह समग्र मानवता के खिलाफ है। युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं वरन अपने आप में समस्या है। दुनिया के सभी शांतिप्रिय देशों व नागरिकों को चाहिये कि वे इस लड़ाई को रुकवाएं। राष्ट्र संघ को तत्काल आवश्यक कदम उठाते हुए युद्धरत दोनों देशों को वार्ता की टेबल तक लाना चाहिये।


