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इजराइल दुनिया को एक बड़े युद्ध में झोंकने की तैयारी में!

विज्ञान और तकनीक में प्रगति इंसान की बेहतरी के लिए। मगर आज लग रहा है कि वह विनाश के लिए है

इजराइल दुनिया को एक बड़े युद्ध में झोंकने की तैयारी में!
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- शकील अख्तर

समय आ गया है बदलाव का। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, इराक, कुवैत, कतर सब तेल के पैसों से बहुत अमीर देश हैं। मगर इजराइल की गुंडागर्दी का मुकाबला नहीं कर पाते। दुनिया के सारे आविष्कार, पैसा, अमेरिका, पश्चिमी देशों और इजराइल के पास। और इसी दम पर यह सब मिलकर 57 इस्लामिक मुल्कों को कुछ नहीं समझते।

विज्ञान और तकनीक में प्रगति इंसान की बेहतरी के लिए। मगर आज लग रहा है कि वह विनाश के लिए है। पूरी मानवता के विनाश के लिए। कुछ देशों ने उसका ऐसा ही विकास किया है।

एक समय था जब स्कूल में फिर कालेज में भी वाद-विवाद में यह विषय जरूर होता था कि विज्ञान वरदान या अभिशाप! वह समय नेहरू के साइंटिफिक टेंपर (वैज्ञानिक मिजाज) के बाद का था और देश में ही नहीं विदेशों में भी विज्ञान इंसान की जिन्दगी को आसान और खुशहाल बना रहा था।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया शांति की तलाश में थी और विज्ञान के जरिए उस शांति में सुख समृद्धि लाना चाहती थी। उसी दौर में हिटलर के अत्याचारों से एक पूरी कौम के नष्ट हो जाने की आशंका को देखते हुए दुनिया ने यहूदियों को जर्मनी से निकालकर अरब देशों के बीच एक सुरक्षित ठिकाना दिया। इजराइल नाम का एक नया देश बना। लेकिन जो पीड़ित था वह बाद में खुद दूसरों के लिए इतनी बड़ी समस्या बन जाएगा कि एक और बड़े युद्ध की आशंका दुनिया को डराने लगेगी यह किसी ने नहीं सोचा था।

पहले गजा में नरसंहार। दो साल होने जा रहे हैं। करीब 60 हजार फिलीस्तिनियों को इजराइल ने मारा। जिनमें बड़ी तादाद में बच्चे शामिल हैं। यूनिसेफ जो संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है बच्चों के लिए काम करने वाली, उसके आंकड़ों के मुताबिक जख्मी और मारे गए बच्चों की तादाद 50 हजार के करीब है। इजराइल ने गजा पहुंचने वाली सारी रसद दूध, दवाइयां बंद कर रखी है जिसकी वजह से मौत की संख्या रोज बढ़ रही है।

एक छोटा सा देश इजराइल जो चारों तरफ से अरब देशों से घिरा हुआ है किस तरह इतना अत्याचार कर पा रहा है। एक अमेरिका के समर्थन तो है मगर जिस तरह उसने नए-नए हथियार बना लिए हैं, सुरक्षा सिस्टम जिसे आयरन डोम कहा जाता है उससे वह खुद को अजेय और पूरी तरह सुरक्षित समझ रहा है।

इसी भ्रम में उसने ईरान पर हमला बोल दिया। लेकिन ईरान के जवाबी हमले ने उसके आयरन डोम से सुरक्षा की खुशफहमी को तोड़ दिया। मीडिया सारा पश्चिमी है। वह मुख्यत: इजराइल का साथ दे रहा है। इजराइल के हमले से ईरान को कितना नुकसान हुआ यह तो बढ़ा चढ़ाकर बता रहा है। मगर ईरान ने उसका कितना नुकसान किया इस पर कहता है कि ईरान के दावे हैं मगर इजराइल खंडन करता है।

यह मीडिया रुस-युक्रेन युद्ध में युक्रेन को उकसा रहा था। भारत से भी सारे न्यूज चैनलों को युक्रेन ले जाया गया था। यह पश्चिमी मीडिया अमेरिका के हितों को देखकर काम करता है। हमारे यहां भी लोग इसके प्रभाव में आ जाते हैं।

मगर भारत-पाक के बीच अभी हुए सीमित युद्ध में हम लोगों को इस पश्चिमी मीडिया ने झटका दिया। चूंकि अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था तो उसका मीडिया भी पाकिस्तान के पक्ष में प्रचार कर रहा था।

हमें अपनी विदेश नीति देश हित के अनुरूप रखना चाहिए। मगर मोदी जी द्वारा इसे अपनी व्यक्तिगत छवि बनाने के लिए उपयोग करने से दुनिया में हम अकेले पड़ गए। सच को सच कहने के साहस की वजह से विश्व में हमारा सम्मान था। मगर अब हम बचने लगे। अभी संयुक्त राष्ट्र महासभा में गजा में संघर्ष विराम के लिए हुई वोटिंग से हम दूर हट गए। मतलब हमने संघर्ष विराम के पक्ष में वोटिंग नहीं की। संदेश गया कि भारत शांति नहीं चाहता। 193 सदस्यीय महासभा में युद्ध विराम के पक्ष में 149 वोट पड़े। विरोध में केवल 12 और 19 देश जिनमें भारत भी था ढुलमुल। भारत ऐसा कभी नहीं था। वह तो इनमें से 120 देशों का नेतृत्व करता था। गुटनिरपेक्ष आंदोलन। नेहरू इसके नेता थे।

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने बहुत तगड़ा हमला किया। पूछा कि क्या आज युद्ध और नरसंहार के खिलाफ भी खड़े होने की मोदी सरकार में हिम्मत नहीं है? कांग्रेस ने कहा यह शर्मनाक है। भारत हमेशा शांति न्याय और मानवीय गरिमा के पक्ष में खड़ा रहा है।

मोदीजी भूल रहे हैं कि पिछले दिनों बिहार चुनाव के समय उन्होंने जिन दिनकर को याद किया था। उन्होंने लिखा था कि 'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध!' और उनके ही गुजरात सूरत के शायर वसीम मलिक ने इसे और आगे बढ़ाते हुए कहा है कि - -
'इसलिए जिन्दा हूं कि मैं बोल रहा हूं
दुनिया किसी गूंगे की कहानी नहीं लिखती!'

खैर मोदी जी को कौन समझा सकता है। अचानक सीज फायर पर तो भाजपा और संघ भी उन्हें नहीं समझा पाए। अब तो वक्त ही उन्हें समझाएगा। मगर बात हम कुछ दूसरी कर रहे थे। लेकिन आजकल आप बात कोई करो मोदी जी ने इतना निराश कर दिया है कि बात उन तक आ ही जाती है।

बात थी दुनिया पर मंडराते एक बड़े युद्ध के खतरे की। जिसे इजराइल ने शुरू किया है। जिस देश से सीमा नहीं मिलती, बीच में कई देश आते हैं, ढाई हजार किलोमीटर दूर है उस पर हवाई हमले करके। उसकी आबादी केवल 90 लाख है। ईरान की 9 करोड़। भूभाग इजारइल का केवल 22 हजार वर्ग किलोमीटर है और ईरान का 16 लाख वर्ग किलोमीटर से ज्यादा। मतलब 70 गुना ज्यादा क्षेत्रफल और 10 गुना ज्यादा आबादी।

और एक तथ्य बताते हैं इजराइल चारों तरफ से अरब देशों से घिरा हुआ है। और दुनिया में 57 इस्लामिक कंट्री हैं। जो खुद को फिलिस्तीनियों के अधिकारों का समर्थक बताते हैं। इनका एक संगठन भी है इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) लेकिन गजा में नरसंहार के दो साल होने जा रहे हैं यह संगठन अभी तक इसे रोकने की कोई ठोस पहल नहीं कर पाया। इसमें सउदी अरब जैसे अमेरिका के कई निकटतम मित्र देश हैं। मगर अमेरिका गजा में युद्ध विराम नहीं होने देता और उसके साथ बहुत मधुर संबंध रखने वाले इस्लामिक देश जिनमें पाकिस्तान भी शामिल है उससे कुछनहीं कह पाते।

समस्या क्या है? वही, जो हमने शुरू में कही। विज्ञान और तकनीक का उपयोग तरक्की के लिए करना। इस्लामिक देशों ने इस नजरिए से कभी सोचा ही नहीं। मार्डन एजुकेशन साइंस और टेक्नोलाजी में वे इजराइल से बहुत पीछे रह गए। इसलिए इतना छोटा देश अपने जन्म के बाद से इस्लामिक मुल्कों को लगातार चैंलेज कर रहा है। हमने ऊपर ही लिखा कि विज्ञान को विनाश तक ले जाने के बहुत दुष्परिणाम होंगे। इजराइल वही कर रहा है।

ईरान परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है। ढाई हजार किलोमीटर जाकर उस पर हमला करने को वह या कोई भी देश स्वीकार नहीं कर सकता। और वह भी उससे आबादी और क्षेत्रफल दोनों में बहुत छोटा।

मगर ईरान सहित दूसरे सभी इस्लामिक मुल्क जिन्हें इजारइल लगातार 1948 से अपनी स्थापना के बाद से चैलेंज कर रहा है इसलिए उससे अभी तक नहीं जीत सके कि साइंस टेक्नालाजी एजुकेशन अर्थव्यवस्था किसी में भी वह सब मिलकर भी इजराइल के बराबर नहीं हैं।

समय आ गया है बदलाव का। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, इराक, कुवैत, कतर सब तेल के पैसों से बहुत अमीर देश हैं। मगर इजराइल की गुंडागर्दी का मुकाबला नहीं कर पाते। दुनिया के सारे आविष्कार, पैसा, अमेरिका, पश्चिमी देशों और इजराइल के पास। और इसी दम पर यह सब मिलकर 57 इस्लामिक मुल्कों को कुछ नहीं समझते। बस इनके शेख अमेरिका के राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें दुनिया के महंगे जहाज से लेकर और दूसरे महंगे-महंगे तोहफे देकर खुश हो जाते हैं।
लेकिन यह नहीं समझते कि इजराइल के मुकाबले अमेरिका इन्हें कभी बचाएगा भी नहीं। मार्डन एजुकेशन, साइंस, टेक्नालाजी में पैसा खर्च करें। तड़क-भड़क दिखाने में नहीं। इस समय सब आपसी विवाद भूलकर साथ खड़े होने का मौका है।

गजा में पूर्ण युद्ध विराम और ईरान पर हमले रोकना तत्काल जरूरी है। और अगर सारे इस्लामिक कंट्री साथ खड़े हो जाएं तो अमेरिका को यह करना पड़ेगा। बेवकूफियों में इन्होंने बहुत बर्बाद कर दिया है। और ईरान पर हमले के बाद भी नहीं चेते तो फिर कोई इज्जत नहीं बचेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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