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क्या फिर से फूटने वाला है शेयर बाजार का बुलबुला?

दुनियाभर के शेयर बाजारों में पिछला एक हफ्ता नए रिकॉर्ड बनाने वाला रहा है. एआई शेयरों की लहर पर सवार है शेयर बाजार.

क्या फिर से फूटने वाला है शेयर बाजार का बुलबुला?
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दुनियाभर के शेयर बाजारों में पिछला एक हफ्ता नए रिकॉर्ड बनाने वाला रहा है. एआई शेयरों की लहर पर सवार ये शेयर बाजार कहीं एक और बबल की ओर तो नहीं बढ़ रहे?

एआई चिप बनाने वाली कंपनी की नविदिया (Nvidia) ने दुनियाभर के शेयर बाजारों में उथल-पुथल मचा रखी है. कंपनी की मार्किट कैपिटलाइजेशन 100 अरब डॉलर को पार कर गई है. पिछली तिमाही में कंपनी ने रिकॉर्ड 24 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया, जिसके बाद तमाम टेक कंपनियों के शेयरों के भाव ऊपर की ओर भागने लगे.

जापान का शेयर इंडेक्स निकेई तो 1989 के बाद के अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया. पिछले कुछ हफ्तों में जिस तरह दुनियाभर के शेयर बाजारों में ऊफान दिखा है, उससे कई विशेषज्ञों को आशंका हो रही है कि बाजार में नया बुलबुला तो नहीं बन रहा है. इसे वे एआई बबल कह रहे हैं.

एआई बबल

फॉर्च्यून पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में लंदन स्थित थिंक टैंक बीसीए रिसर्च के चीफ स्ट्रैटिजिस्ट धवल जोशी ने कहा, "हम एआई बुलबुले के भीतर हैं. कुछ (कंपनियों के) नतीजों ने हमें हतप्रभ कर रखा है.”

नविदिया के शेयर 16 फीसदी से ज्यादा चढ़ गए हैं और इस लहर पर सवार होकर अमेरिका के एसएंडपी 500 इंडेक्स, डाउ जोंस, यूरोप का स्टॉक्स 600 इंडेक्स और एमएससीआई का वर्ल्ड इंडेक्स रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. यह तकनीकी कंपनियों को लेकर उत्साह का नतीजा है.

नविदिया के संस्थापक और मुखिया जेन्सन ह्वांग ने एक बयान जारी कर कहा, "तेज कंप्यूटिंग और जेनरेटिव एआई ने एक बड़े सिलसिले की शुरुआत कर दी है. तमाम कंपनियों, उद्योगों और देशों में मांग बढ़ रही है.”

लेकिन शेयर बाजारों का इस तरह चढ़ना असामान्य लगता है क्योंकि दुनियाभर की आर्थिक हालत तंग है. ब्याज दरें कई साल बाद लगातार इतने समय तक इतनी अधिक हैं और किसी भी देश से उनके कम होने के संकेत फिलहाल नहीं मिल रहे हैं. अमेरिका, यूरोप और एशिया में बेरोजगारी घटने की खबरें आने के बावजूद केंद्रीय बैंक ब्याज दरें घटाने से परहेज कर रहे हैं क्योंकि महंगाई अभी भी काबू में नहीं आई है. दुनिया में दो बड़े युद्ध जारी हैं, जिनका सीधा असर सामान की सप्लाई पर हो रहा है. ऐसे में शेयर बाजारों का इतना चढ़ना हैरान कर रहा है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने पिछले दो साल में खूब चर्चा बटोरी है. बहुत से विश्लेषक मानते हैं कि एआई दुनिया के भविष्य का नया अध्याय लिख रही है, इसलिए यह चर्चा जायज है. न्यू यॉर्क स्थित ग्रेट हिल कैपिटल एलएलसी के चेयरमैन थॉमस हेज कहते हैं कि पिछले दो दशक से अर्थव्यवस्थाएं आगे बढ़ने के लिए जिस रास्ते को खोज रही थीं, वह एआई ने दे दिया है.

हेज कहते हैं, "नविदिया दरअसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक उत्प्रेरक का प्रतीक है. जब उत्पादकता बढ़ेगी तो महंगाई पर काबू रहेगा.”

इस भावना ने बाजार में एक उत्साह पैदा कर दिया है और तमाम निवेशक इस उत्साह की लहर पर सवार हैं. यहां तक कि वे नई-नई परिभाषाएं गढ़ रहे हैं. ‘द लेवलिंग' किताब के लेखक और वित्तीय मामलों के जानकार माइक ओ सलिवन बताते हैं कि मॉर्गन स्टेनली बैंक के एक अधिकारी ने तकनीकी कंपनियों की बढ़ती कीमत को ‘प्राइस ऑफ इनोवेशन रेश्यो' नाम दिया है.

यानी किसी कंपनी की कीमत और उसकी कमाई व रिसर्च पर उसके खर्च का अनुपात. यानी जिन कंपनियों की आय कम है वे अगर रिसर्च और डिवेलपमेंट पर भारी खर्च कर रही हैं, तो भले ही उस रिसर्च से कुछ हासिल हो या ना हो, उस कंपनी की ‘आकर्षित कीमत' बढ़ जाएगी.

फोर्ब्स पत्रिका में एक लेख में सलिवन लिखते हैं कि जब भी वित्त-बाजार के लोग कीमत आंकने के नए-नए तरीके खोजने लगें, तो उनके कान खड़े हो जाते हैं. वह लिखते हैं, "2000 के दशक में विश्लेषकों ने इंटरनेट स्टॉक्स के लिए ‘प्राइस टु क्लिक्स' का नाम दिया था. बेशक, उसका अंत बहुत बुरा हुआ.”

इतिहास गवाह है

दरअसल, सलिवन डॉट कॉम बबल की ओर इशारा कर रहे हैं, जिसके कारण 2000 के दशक का मार्किट क्रैश हुआ था. उसकी वजह इंटरनेट कंपनियों के शेयरों के अत्यधिक भाव थे, जो असल कीमत से कहीं ज्यादा था. नतीजा यह हुआ कि जब भाव गिरने लगे तो उन्हें संभलने के लिए कोई आधार नहीं मिला. उस कारण अमेरिका समेत दुनियाभर के बाजार गिरे थे और लोगों के अरबों डॉलर डूब गए थे. विश्लेषकों को आशंका है कि ठीक वैसा ही एआई बबल के साथ ना हो जाए. सलिवन लिखते हैं, "प्राइस टु इनोवेशन जैसे विचार से शेयर मार्किट बबल का डर पैदा होना जाना चाहिए, खासतौर पर एआई आधारित स्टॉक्स को लेकर. किसी बबल को परिभाषित करना मुश्किल होता है लेकिन एक मशहूर कहावत है कि ‘देखोगे तो समझ जाओगे.”

इतिहास में जब भी बाजारों के बुलबुले फूटे हैं, वे किसी नई ईजाद के कारण ही बने थे. चाहे वह 1930 में रेलवे का विकास हो या फिर 1990 के दशक में इंटरनेट का. इन नई खोजों पर आधारित चंद कंपनियां मिलकर ऐसा माहौल बनाती हैं कि उनकी वैल्युएशन ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच जाती है.

पिछले एक हफ्ते में ही कई बड़ी कंपनियों ने अपने तिमाही नतीजे जारी किए हैं और अधिकतर तकनीकी कंपनियों ने बढ़िया आय दिखाई है. लेकिन उनकी रेवन्यू ग्रोथ बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं है, जो एआई के लिए जरूरत से ज्यादा उत्साह का संकेत देती है.


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