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क्या रूस पर भारत का रुख बदल रहा है? दुनियाभर में मोदी के बयान की चर्चा

उज्बेकिस्तान की राजधानी में नरेंद्र मोदी के दिए बयान की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है.

क्या रूस पर भारत का रुख बदल रहा है? दुनियाभर में मोदी के बयान की चर्चा
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शनिवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मौजूदगी में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह वक्त युद्ध का नहीं है. मोदी ने कहा, "मैं जानता हूं कि यह युग युद्ध का नहीं है और हमने पहले भी कई बार आपसे फोन पर कहा है कि लोकतंत्र, कूटनीति और बातचीत ऐसी चीजें हैं जिनसे दुनिया प्रभावित होती है." जब मोदी यह बात कह रहे थे तब पुतिन ने अपने होंठ दबाए, भारतीय प्रधानमंत्री की ओर देखा और फिर अपने सिर के पीछे बालों को ठीक किया.

इस बयान के कुछ ही घंटे बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र में उस प्रस्ताव पर रूस के खिलाफ मतदान किया जिसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को अगले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने की इजाजत की बात थी.

इन दोनों ही घटनाओं को भारत के अब तक रूस को लेकर रहे रुख में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है. फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से भारत रूस की आलोचना करने से बचता रहा है. उसने संयुक्त राष्ट्र में एक के बाद एक कई प्रस्तावों पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया जिसे रूस का समर्थन माना गया. अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देश लगातार भारत से कहते रहे हैं कि रूस की आलोचना करे लेकिन भारत ने इसे यूरोप का मसला बताते हुए खुद को इससे अलग बनाए रखा. यहां तक कि उसने रूस से कारोबार बढ़ा दिया और पहले से ज्यादा तेल व अन्य साज-ओ-सामान खरीदा.

बदला हुआ रुख

शनिवार को उज्बेकिस्तान में शंघाई कोऑपपोरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक में चीन, पाकिस्तान, रूस, तुर्की और ईरान के साथ जब भारत शामिल हुआ तो पुतिन और मोदी के हाव-भाव एक-दूसरे के बरक्स बदले हुए नजर आए. एससीओ के पहले ही दिन पुतिन ने चीन की उसकी "निष्पक्षता" के लिए तारीफ की. इससे पहले भी चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक दूसरे के साथ दोस्ती को "असीमित" बताया था.

एससीओ के दौरान शी ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बदलने का वक्त है. उन्होंने कहा कि अब धड़ों की राजनीति और इस तरफ या उस तरफ की कूटनीति को खत्म करने का वक्त है. पुतिन ने भी पश्चिमी दुनिया के बाहर के देशों के बढ़ते प्रभाव का जिक्र किया. उन्होंने कहा, "एक-दूसरे के साथ सहयोग करते सत्ता के नए केंद्रों की बढ़ती भूमिका लगातार स्पष्ट होती जा रही है."

जब रूस और चीन के नेता पश्चिमी दुनिया के समक्ष नए सत्ता केंद्र खड़े करने की बात कर रहे थे, तब मोदी का बयान उस आग पर पानी डालने जैसा था. पुतिन को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, "हमें कोई रास्ता खोजना होगा और इसमें आपको भी मदद करनी होगी."

यूक्रेन युद्ध से भारत का फायदा

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद जब अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंध लगाए तो भारत ने उसके साथ व्यापार बढ़ा दिया और खूब मुनाफा कमाया है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर एक रिपोर्ट में लिखा है भारत ने कम से कम 35 हजार करोड़ रुपये बचाए हैं.

चूंकि यूरोपीय देशों और अमेरिका ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया था तो भारत ने सस्ते दाम पर उससे कच्चा तेल खरीदा. अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा और चीन के बाद रूस का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार बन गया. फरवरी में यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले भारत अपने कुल आयात का सिर्फ एक फीसदी रूस से खरीद रहा था. पिछले सात महीने में यह बढ़कर 12 प्रतिशत हो गया है.

जुलाई में सऊदी अरब के बाद रूस भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक बन गया था. हालांकि अगस्त में रियाद वापस दूसरे नंबर पर आ गया लेकिन रूस अब भी तीसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर लिखा है कि अप्रैल से जुलाई के बीच भारत ने रूस से बीते साल की इसी अवधि के मुकाबले आठ गुना ज्यादा यानी 11.2 अरब डॉलर का तेल आयात किया.

अपनी कुल ऊर्जा जरूरतों का 83 प्रतिशत आयात करने वाले भारत के लिए यह बड़ा फायदा था क्योंकि रूसी तेल उसे कम दाम पर मिल रहा था. इसी महीने की शुरुआत में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि रूस से तेल आयात करना मुद्रस्फीति पर नियंत्रण की ही एक नीति थी और अन्य देश भी ऐसा कर रहे हैं.


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