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सिंचाई सुविधा फिर भी नहीं बढ़ा रबी का रकबा

जिले में सिंचाई सुविधा के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद किसान द्विफसली खेतों में भी एक फसल धान का लेने के बाद खेत पड़त छोड़ने को मजबूर है।

सिंचाई सुविधा फिर भी नहीं बढ़ा रबी का रकबा
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जांजगीर। जिले में सिंचाई सुविधा के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद किसान द्विफसली खेतों में भी एक फसल धान का लेने के बाद खेत पड़त छोड़ने को मजबूर है। यही वजह है कि ढ़ाई लाख हैक्टेयर कृषि भूमि वाले जिले में रबि फसल की पैदावार महज 53 हजार हैक्टेरयर में ही सिमट कर रह गया है। हांलाकि कृषि विभाग फसल चक्रीकरण व दलहन-तिलहन को बढ़ावा देने की बात बार-बार कहता आ रहा है।मगर इसमें आ रही व्यवहारिक दिक्कतों के प्रति न तो विभाग गंभीर है और न ही किसान यही वजह है कि सारी सुविधाओं के बावजूद किसानों की आर्थिक दशा जस की तस बनी हुई है।

रबी फसल के लिए कृषि विभाग द्वारा मात्र 53 हजार हेक्टेयर में खेती का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें लगभग 2 लाख हेक्टेयर जमीन खाली गई। कृषि विभाग द्वारा इस रकबे में वृद्धि नहीं की जाती विभाग किसानों को विभिन्न नए-नए पसलों की तकनीकी जानकारी देने का दावा करती है, बावजूद इसके जिले के किसान रबी का रकबा बढ़ाने जागरूक नहीं दिखते। विभागीय आंकड़ों के अनुसार जिले में 92 फीसदी जमीन सिंचित है। यहां नहरों से 2 लाख 29 हजार 520 हेक्टेयर, तालाबों से 7 सौ हेक्टेयर, नलकूपों से 30 हजार हेक्टेयर, कुओं से 120 हेक्टेयर व नालों से 3 हजार 5 सौ हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है जबकि खरीफ मौसम में 2 लाख 58 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती है।

विभागीय आंकड़ों के अनुसार जिले में रबी फसल के लिए मात्र 53 हजार 430 हेक्टेयर फसल बोआई का लक्ष्य रखा गया था। इसमें गेहू के लिए 3 हजार 250 हेक्टयर, ग्रीष्म कालीन धान के लिए 3 हजार हेक्टेयर, मक्का के लिए 1 हजार हेक्टयर, दलहन में चना के लिए 680 हेक्टेयर, मटर के लिए 800 हेक्टेयर, मंूग के लिए 800 हेक्टेयर, मसूर के लिए 100 हेक्टेयर, उड़द के लिए 200 हेक्टेयर, तिवरा के लिए 20 हजार हेक्टेयर, व तिलहन में सरसों के लिए 5 हजार 260 हेक्टेयर, अलसी के लिए 7 हजार हेक्टेयर, कुसुम के लिए 500 हेक्टेयर, सूर्यमुखी के लिए 500 हेक्टेयर, मूंगफली के लिए 800 हेक्टेयर तिल के लिए 50 हेक्टेयर व सब्जियों के लिए 9 हजार 490 हेक्टेयर भूमि पर बोआई करने का लक्ष्य रखा गया था।

तिवरा के साथ ही सरसों की कटाई काम काम पूरा हो चुका है, जबकि गेंहू तैयार होने को है। कृषि विभाग नाम मात्र के इस लक्ष्य को पूरा करने में सफल भी रहा है, मगर यहां लगभग दो लाख हेक्टेयर से अधिक सिंचित भूमि खाली रह गई। राज्य शासन द्वारा जिले के किसानों को कृषि के नए-नए तकनीकी व उन्नत फसल की जानकारी देने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन विभाग द्वारा किया जाता है। लेकिन जिले में कृषि विभाग द्वारा कुछके गांव में घूमकर खानापूर्ति कर दी है।

इसमें जिले के अधिकांश किसान योजना से वंचित हैं, हर साल जिले में एग्रीटेक कृषि मेला का आयोजन होता है। इसके बावजूद भी किसान जिले में रबी फसल का रकबा बढ़ाने में रूचि नहीं ले रहे हैं। जबकि सिंचाई के लिए पम्प कनेक्शन पर अनुदान दिया जाता है साथ ही शासन द्वारा 6 हजार यूनिट बिजली नि:शुल्क दी जाती है। इसके बावजूद भी रबी फसल पर खेतों को खाली छोड़ दिया जाता है।

कृषि प्रधान जिला होने के बावजूद किसानों को पर्याप्त जानकारी व विभाग द्वारा व्यापक प्रचार-प्रसार के अभाव में वे दलहन, तिलहन की खेती में रूचि नहीं ले रहे हैं।
मवेशियों का प्रबंध आवश्यक जिले में रबी का रकबा बढ़ाने के लिए मवेशियों को खुला छोड़ने पर प्रतिबंध भी आवश्यक है।

एक गांव के लोग अगर रबी फसल लेते हैं तो निकटवर्ती गांव के मवेशी फसल को चट कर जाते हैं। वहीं गांव में अगर गिनती के किसान दलहन, तिलहन की खेती करते हैं, तो मवेशियों को खुला छोड़ने पर प्रतिबंध नहीं लग पाता।
इससे किसान रबी फसल लेने हतोत्साहित हो रहे हैं।


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