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रईसी की मौत के बाद ईरान

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की आकस्मिक मौत से वैश्विक समीकरणों में होने वाले बदलाव से लेकर ईरान की अंदरूनी राजनीति में मची हलचल को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं

रईसी की मौत के बाद ईरान
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ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की आकस्मिक मौत से वैश्विक समीकरणों में होने वाले बदलाव से लेकर ईरान की अंदरूनी राजनीति में मची हलचल को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं। गौरतलब है कि इब्राहिम रईसी रविवार को पूर्वी अज़रबैजान प्रांत में एक बांध का उद्घाटन करके लौट रहे थे तभी उनका हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया था। उनके साथ ईरान के विदेश मंत्री भी हेलीकॉप्टर में सवार थे। सोमवार को इस हादसे के शिकार सभी लोगों की मौत की पुष्टि कर दी गई। उसके बाद से ही सवाल उठने लगे थे कि अब ईरान किस राह पर आगे बढ़ेगा, अमेरिका के साथ उसके संबंधों पर इसका क्या असर पड़ेगा

ईरान के साथ यह विडंबना रही है कि उसके इस्लामिक रिपब्लिक बनने के 45 वर्षों के दौरान उसके मौजूदा सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई को छोड़कर सभी राष्ट्राध्यक्ष किसी न किसी मुसीबत का शिकार हुए। किसी की आकस्मिक मौत हुई, किसी को राजनैतिक निशाने पर लिया गया, तो कोई पद से बेदखल कर दिया गया। इब्राहिम रईसी मोहम्मद अली राज़ई के बाद, दूसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनका कार्यकाल किसी घातक दुर्घटना के कारण समाप्त हुआ है। राज़ई की मौत 1981 में प्रधानमंत्री कार्यालय में हुए एक विस्फोट में हो गई थी।

इब्राहिम रईसी एक कट्टरपंथी नेता थे। 2021 में उन्होंने राष्ट्रपति पद संभाला था और उनके शासनकाल में लिए गए फैसलों या घटनाओं में कम से कम पांच ऐसे थे, जिनसे पता चलता है कि ईरान को वे कट्टरपंथ और रुढ़िवादिता के साथ ही आगे ले जाना चाहते थे। इसलिए उन्हें अयातुल्लाह अली खामेनेई के उत्तराधिकारी के तौर पर सर्वथा योग्य माना जा रहा था। रईसी के सत्ता में आने के बाद ईरान ने सबसे पहले अपने परमाणु कार्यक्रम को दोगुना कर दिया, जिससे पश्चिमी देश नाराज हुए। इसके बाद दूसरा बड़ा फैसला रूस और यूक्रेन युद्ध में पश्चिम के विरोध के बावजूद रूस का समर्थन करने का फैसला लेना। रईसी ने नाटो के विस्तार की ईरान के लिए भी खतरे के रूप में व्याख्या की। रईसी के कार्यकाल में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाला तीसरा बड़ा फैसला हिजाब को लेकर था। 2022 के आखिरी महीनों में हिजाब के खिलाफ युवतियों ने ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन शुरू किया था, इसी दौरान सितम्बर में महसा अमीनी नामक युवती की मौत ईरान की मॉरल पुलिस के कारण हुई थी। इस घटना ने देश भर में युवतियों को गुस्से में भर दिया था। रईसी के शासनकाल में चौथा बड़ा फैसला इजरायल से सीधे टकराव का था। इजरायल और फिलीस्तीन के बीच अक्टूबर से चल रहे संघर्ष में पिछले महीने ही सीरिया में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर इजरायली हमला हुआ था, जिसमें एक शीर्ष ईरानी जनरल की मौत हुई थी। इसके बाद ईरान ने इजरायल पर सीधा हमला बोला। ईरान ने सैकड़ों किलर ड्रोन और मिसाइलों की इजरायल के ऊपर बौछार कर दी। और इब्राहिम रईसी के कट्टरपंथी शासन की पांचवी पहचान तीन चरमपंथी संगठनों हिजबुल्लाह, हूती और हमास को सक्रिय समर्थन से मिलती है।

ईरान की अंदरूनी राजनीति के साथ-साथ अन्य देशों के साथ उसके संबंध पर इन पांचों फैसलों का गहरा असर पड़ा। और इन फैसलों ने रईसी को एक विवादास्पद नेता भी बनाया। इब्राहिम रईसी की उनके पहले लिए फैसलों के कारण आलोचना होती रही है। रईसी ईरान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और लंबे समय तक शीर्ष अभियोजक रहे थे। वे 1980 में बनी उस कमेटी के सदस्य थे, जिसमें खामेनेई के फतवे के बाद हजारों राजनैतिक विरोधियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस कमेटी को डेथ कमेटी कहा जाने लगा। इसके अलावा जनवरी 2020 में यूक्रेन के एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान पर निकले विमान को ईरान की रिवॉल्युशनरी गार्ड कोर ने मार गिराया था। जिसमें 167 नागरिकों की मौत हो गई थी। बाद में इसे गलती करार दिया गया, लेकिन इसके असल दोषियों को सजा नहीं मिली, ऐसा पीड़ितों के परिजनों का आरोप है।

अतीत की इन घटनाओं के साथ-साथ मौजूदा वक्त के अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक हालात रईसी के लिए चुनौतीपूर्ण थे, और इन चुनौतियों के बीच ही उनकी आकस्मिक मौत हो गई। जिस हेलीकॉप्टर पर वे सवार थे, अब उस पर सवाल उठने लगे हैं। साथ ही उनकी मौत के पीछे किसी बड़ी साजिश के कोण भी तलाशे जा रहे हैं। इब्राहिम रईसी की मौत का हादसा ऐसे समय में हुआ है जब पश्चिम एशिया गहरे संघर्ष में उलझा हुआ है। पिछले सात महीनों से इजरायल ने गजा में युद्ध छेड़ रखा है। वहीं, लेबनान में मौजूद ईरान समर्थित हिजबुल्लाह ने इजरायल के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। ईरान ने पहले भी अपने शीर्ष अधिकारियों की हत्या के लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है। इसलिए इस बार भी शक की सुई स्वाभाविक तौर पर इजरायल की ओर घूमी है, हालांकि अब तक की रिपोर्ट यही बता रही हैं कि ये एक दुखद घटना है और इसमें कोई साजिश अभी तक सामने नहीं आई है।

सोमवार को इब्राहिम रईसी की मौत की पुष्टि के बाद ईरान के प्रथम उपराष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर को इस्लामी गणराज्य का कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया है। इसके बाद 50 दिनों के भीतर नए राष्ट्रपति के लिए चुनाव होंगे। इससे पहले मार्च में जो संसदीय चुनाव हुए थे, उसमें रिकार्ड स्तर पर कम मतदान हुआ था। जो इस बात का संकेत देता है कि ईरान के लोगों में कहीं न कहीं कट्टरपंथ को लेकर एक निराशा का भाव बढ़ा है। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि लगभग दो महीने बाद होने वाले चुनावों में क्या कोई परिवर्तन होता है या फिर ईरान पुराने रास्ते पर ही बढ़ता है। इस बीच नीतियों को लेकर यह तय है कि कोई भी फैसला पहले की तरह सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ही लेंगे। रविवार को ही खामेनेई ने कह दिया था कि ईरान के लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। सरकार बिना किसी व्यवधान के काम करेगी।

इस आकस्मिक हादसे के बाद नई दिल्ली और तेहरान के बीच संबंधों पर भी बातें हो रही है। कुछ दिन पहले ही भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह के संचालन को लेकर ऐतिहासिक सौदा हुआ है। जिससे भारत को चाबहार के संचालन का अधिकार अगले 10 सालों के लिए मिल गया है, जो उसे अफगानिस्तान और मध्य एशिया में व्यापार के लिए पहुंच देगा। इस सौदे के बाद अमेरिका ने भारत को प्रतिबंधों की चेतावनी दी थी, जिसमें भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि यह बंदरगाह पूरे क्षेत्र को लाभान्वित करेगा और अमेरिका को इस मामले में संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए। उम्मीद है कि भारत और ईरान के बीच पूर्ववत सौहार्द्रपूर्ण संबंध बने रहेंगे, लेकिन अमेरिका क्या ईरान पर नए सिरे से दबाव बनाने की कोशिश करेगा, क्या ईरान अमेरिका को पहले की तरह जवाब देता रहेगा, ये आने वाला वक्त बताएगा।


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