2 सेकंड में 700 किमी/घंटा: चीन की मैगलेव ने फिर रचा कीर्तिमान, स्पीड का बनाया नया विश्व रिकॉर्ड
वीडियो में ट्रेन इतनी तेज नजर आती है कि वह पलक झपकते आंखों से ओझल होती प्रतीत होती है और पीछे धुंध जैसी लकीर छोड़ जाती है।

नई दिल्ली: चीन ने जेट विमान की रफ्तार से दौड़नेवाली ट्रेन का परीक्षण किया है। दावा किया गया है कि इस ट्रेन ने दो सेकेंड में ही 700 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पकड़ ली। ये कुछ ऐसा है, जैसे दिल्ली से पटना की दूरी डेढ़ घंटे से भी कम समय में पूरी कर ली जाए। परीक्षण का वीडियो सामने आने के बाद यह प्रयोग दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया है।
वीडियो में ट्रेन इतनी तेज नजर आती है कि वह पलक झपकते आंखों से ओझल होती प्रतीत होती है और पीछे धुंध जैसी लकीर छोड़ जाती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ डिफेंस टेक्नोलाजी (एनयूडीटी) के शोधकर्ताओं ने 400 मीटर लंबे विशेष मैगलेव ट्रैक पर लगभग एक टन वजनी सुपरकंडक्टिंग इलेक्ट्रिक मैगलेव वाहन का परीक्षण किया। इसे सुरक्षित तरीके से उच्चतम रफ्तार पर पहुंचाने के बाद नियंत्रित ढंग से रोका भी गया।
10 साल से चल रहा था काम
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एक्सीलरेशन प्रणाली का इस्तेमाल किया गया है। परियोजना से जुड़े प्रोफेसर ली जी ने कहा कि यह उपलब्धि चीन में अल्ट्रा-हाई-स्पीड मैगलेव परिवहन के अनुसंधान और विकास को नई गति देगी। इस टीम ने पिछले 10 वर्षों से इस तकनीक पर काम किया है और इसी साल जनवरी में 648 किमी प्रति घंटा की गति हासिल की थी।
हाइपरलूप परिवहन को भी मिलेगा बल
विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी तेज गति वाली मैगलेव तकनीक से भविष्य में दूर-दराज के शहरों को कुछ ही मिनटों में जोड़ा जा सकेगा। इसके अलावा, यह तकनीक हाइपरलूप जैसी अवधारणाओं को भी व्यावहारिक रूप देने में सहायक हो सकती है, जहां वैक्यूम ट्यूब के भीतर ट्रेनें अत्यंत तेज गति (लगभग 1000 किमी प्रति घंटा) से चलेंगी। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एक्सीलरेशन का उपयोग राकेट और विमानों के प्रक्षेपण में भी किया जा सकता है, जिससे ईंधन की खपत और लागत कम होने की संभावना है।
अचानक कैसे इतनी रफ्तार पकड़ती है ट्रेन
मैगलेव ट्रेन की स्पीड को बढ़ाने के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एक्सीलरेशन कहा जाता है। इस परीक्षण में हासिल किया गया इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एक्सीलरेशन लगभग 97 मीटर प्रति सेकंड स्क्वायर था, जो लगभग 9.9 जी बल के बराबर है। इतना अधिक बल इंसान की सहन क्षमता से परे माना जाता है। यहां तक कि लड़ाकू विमानों के पायलटों को भी 9 जी तक की ही ट्रेनिंग कराई जाती है और वह भी बेहद कम समय के लिए। बताया जा रहा है कि इस ट्रेन का एक्सीलरेशन इतना ज्यादा पावरफुल है कि यह राकेट को भी लांच करने की क्षमता रखता है। इससे ईंधन की खपत कम होती है और लागत भी घटती है।
हवा से बातें करती है मैगलेव तकनीक
मैगलेव तकनीक में ट्रेन सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट का इस्तेमाल करके ट्रैक के ऊपर तैरती है, जो इसको बिना पटरियों को छुए ऊपर उठाती है और आगे धकेलती है। घर्षण लगभग शून्य हो जाता है। इसी कारण यह पारंपरिक ट्रेनों की तुलना में कहीं अधिक तेज, शांत और किफायती मानी जाती है। सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट बेहद कम तापमान पर काम करते हैं और बहुत मजबूत चुंबकीय क्षेत्र पैदा करते हैं, जिससे उच्च गति संभव होती है।
दुनिया में इन देशों के पास है मैगलेव तकनीक
मैगलेव तकनीक पर चीन, जापान और जर्मनी अग्रणी देश माने जाते हैं। चीन ने शंघाई में पहले ही वाणिज्यिक मैगलेव ट्रेन चला रखी है और अब अल्ट्रा-हाई-स्पीड श्रेणी में बढ़त बना रहा है। जापान की एल0 सीरीज मैगलेव ने 600 किमी प्रति घंटा से अधिक की गति का रिकार्ड बनाया है और टोक्यो-नागोया रूट पर परियोजना निर्माणाधीन है। जर्मनी ने ट्रांसरैपिड तकनीक विकसित की थी, हालांकि वहां फिलहाल व्यावसायिक संचालन सीमित है। दक्षिण कोरिया और अमेरिका भी अनुसंधान के स्तर पर इस तकनीक पर काम कर रहे हैं।


