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उत्तराखंड के पांच और कस्बों में दरकने लगी जमीन

जोशीमठ में जमीन धंसने के कारण विस्थापित हुए लोग अभी उसी हालत में हैं और अब पांच और कस्बों में वैसी ही दरारें दिखने लगीं.

उत्तराखंड के पांच और कस्बों में दरकने लगी जमीन
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जसवंत सिंह बुटोला के घर से चार धाम यात्रा के लिए बनाई जा रही रेलवे लाइन नजर आती है. 18 महीने पहले जसवंत सिंह बुटोला एक सुबह सोकर उठे तो उन्होंने अपने घर की दीवार में एक दरार देखी. अब वह दरार इतनी चौड़ी हो चुकी है कि 55 साल के बुटोला को डर लगने लगा है. उन्हें लगता है कि पीढ़ियों से जिस गांव मारोडा में उनका परिवार रह रहा है, वो उन्हें छोड़ना पड़ेगा.

रेलवे लाइन की ओर देखते हुए बुटोला कहते हैं, "यह विनाश है.”

यह रेलवे लाइन भारत सरकार की विशेष योजना के तहत बनाई जा रही है. सरकार ने हिमालय के भीतर स्थित कई प्रमुख तीर्थस्थलों को रेल या सड़क से जोड़ेन की महती योजना बना रखी है जिसके जरिए लाखों हिंदू व सिख श्रद्धालू इन जगहों तक आसानी से पहुंच पाएंगे. चारधाम नाम की इस योजना में वह जोशीमठ भी शामिल है जहां हाल ही में सैकड़ों घरों में दरारें पड़ीं और वहां से लोगों को हटाना पड़ा.

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इस योजना की एक रणनीतिक अहमियत भी है. चीन के साथ लगती सीमा पर यह ढांचागत विकास किया जा रहा है, जिसे भारत की सुरक्षा के लिए जरूरी समझा जाता है. इस तरह भारत इन इलाकों में अपनी पहुंच को और गहरा व मजबूत करना चाहता है.

प्रधानमंत्री ने बताया था जरूरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर में चीन सीमा से लगते एक गांव में दिए भाषण में कहा था कि ये नए रास्ते गांवों में विकास लेकर आएंगे. उन्होंने कहा था, "आधुनिक संपर्क-मार्ग राष्ट्रीय सुरक्षा की भी गारंटी हैं. देश के सीमांत क्षेत्र सर्वोत्तम और सबसे चौड़ी सड़कों के जरिए जोड़े जा रहे हैं.”

अब यह रणनीति मुश्किल में पड़ गई है. पिछले महीने जोशीमठ में कई परियोजनाओं पर काम रोकना पड़ा था क्योंकि उन्हें जमीन धंसने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा था. नागरिकों के अलावा कई विशेषज्ञों और अधिकारियों ने कहा था कि अस्थिर पहाड़ियां होने के कारण जोशीमठ में हो रही खुदाई ही इस आपदा की वजह बनी है.

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अब रॉयटर्स समाचार एजेंसी का कहना है कि दो अरब डॉलर की रेल परियोजना और डेढ़ अरब डॉलर की सड़क परियोजना के साथ लगते कम से कम पांच और गांवों और कस्बों में इमारतों में दरारें पड़ चुकी हैं. ये सारे चारधाम परियोजना के मार्ग पर स्थित हैं और कम से कम दो जगहों पर अधिकारियों ने परियोजना के काम को ही इसके लिए जिम्मेदार माना है.

मरोडा में जिला अधिकारी ने नागरिकों के नाम लिखे एक पत्र में कहा है कि रेल मंत्रालय की निर्माण कंपनी आरवीएनएल उन ग्रामीणों को अन्य जगहों पर जमीन खरीदने के लिए धन देगी जो इस परियोजना प्रभावित हो रहे हैं. हालांकि आरवीएनएल ने इस संबंध में पूछे गए सवालों के जवाब नहीं दिए.

ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक 125 किलोमीटर लंबी रेल लाइन के साथ लगते तीन गांवों के नौ निवासियों ने रॉयटर्स को अपने घर दिखाए जनमें दरारें आ चुकी हैं. इन निवासियों ने दावा किया कि ये दरारें तभी पड़नी शुरू हुई थीं जब उनके गांवों के पास गुफाएं बनाने के लिए विस्फोट होने शुरू हुए.

खतरे में जीते लोग

पर्यावरणविद रवि चोपड़ा कहते है कि परियोजनाओं और दरारों में सीधा संबंध है. वह कहते हैं, "चट्टानों को तोड़ने के लिए हों या गुफाएं बनाने के लिए, जब धमाके होते हैं तो पहाड़ हिलते हैं और अक्सर नई दरारें उभर आती.” चोपड़ा सुप्रीम कोर्ट द्वारा चारधाम राजमार्ग के आकलन के लिए गठित की गई समिति के अध्यक्ष थे.

उधर, अधिकारी इस आपदा के लिए गांव-कस्बों में हो रहे अनियमित निर्माण को जिम्मेदार बातते हैं. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन निगम के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला कहते हैं कि आबादी तेजी से बढ़ रही है और निर्माण बहुत खराब योजना के तहत किया जा रहा है जो दरारों के लिए जिम्मेदार है.


लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि मरोडा जैसे गांव तो दशकों से वैसे के वैसे हैं और वहां कोई नया निर्माण तक नहीं हुआ है. निवासी कहते हैं कि उनके यहां तो 2021 में रेलवे इंजीनियर आए और तब कोई निर्माण शुरू हुआ. नजदीकी बुटेला गांव में आठ परिवार घर छोड़कर जा चुके हैं और बाकी डर में जी रहे हैं.

बुटोला की मुन्नी देवी कहती हैं, "नीचे रात-रात भर रेलवे का काम चलता है और हमारे घर का सीमेंट उतरकर गिरता रहता है. हम बहुत खतरे में जी रहे हैं”

इस संबंध में रॉयटर्स ने रेलवे और अन्य कई मंत्रालयों के सरकारी अधिकारियों से सवालों के जवाब चाहे लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया.


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