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असुरक्षित स्त्रियां

देश में हर रोज लड़कियों के साथ हो रही अमानवीय घटनाएं इस बात का सुबूत हैं कि चांद-सितारों तक पहुंच चुके हम ऐसे समाज में रहते हैं जिसकी सोच का दायरा लड़कियों के लिए हैवानियत से भरा है

असुरक्षित स्त्रियां
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- कुमार कृष्णन

राज्य कोई भी हो, सरकार किसी भी दल की हो, महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, यह एक तल्ख हकीकत है। इस हकीकत से समाज भी भली-भांति परिचित है, फिर भी वह बेपरवाह बना हुआ है। धर्म पर ख़तरे की बात से समाज उद्विग्न हो जाता है। कमाल की बात है कि बलात्कार की भयावह घटनाओं को देख-सुनकर भी इस समाज का मन विचलित नहीं होता? इतने संवेदनहीन और हैवानियत से भरे समाज में महिलाएं किस तरह अपनी सुरक्षा करें।

देश में हर रोज लड़कियों के साथ हो रही अमानवीय घटनाएं इस बात का सुबूत हैं कि चांद-सितारों तक पहुंच चुके हम ऐसे समाज में रहते हैं जिसकी सोच का दायरा लड़कियों के लिए हैवानियत से भरा है। हाल में देश में बेटियों के साथ ज्यादती की जो खबरें आई हैं, जिससे पूरा देश सहम गया है और मानवता शर्मसार है। निर्भया कांड, फिर कठुआ रेप कांड, सूरत कांड...कितने कांडों की गिनती करें? कुछ का तो हमें पता भी नहीं चल पाता क्योंकि वो खबरों में शामिल नहीं हो पातीं, थाने में इनकी शिकायत तक दर्ज नहीं होती।

'नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो' (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि शहर में महिलाएं और बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। आंकड़ों के मुताबिक, बच्चों से जुड़े अपराधों में 10.68 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं के प्रति अपराध भी बढ़े हैं। उनके प्रति अपराध में 12.24 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। ये आंकड़े बताते हैं कि कम उम्र की बच्चियां किस हद तक असुरक्षा के वातावरण में रह रही हैं।

इससे निपटने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, फांसी तक के प्रावधान किए गए हैं, इसके बाद भी दरिंदगी की रोकथाम नहीं हुई। उलटे यह दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। केवल कानून बना देने और उसमें कड़े दंड के प्रावधान कर देने से महिलाओं और बच्चियों के साथ होने वाली दरिंदगी रोक पाना शायद ही संभव होगा। इसके लिए सरकार, समाज और परिवार को भी सोचना होगा कि यह दरिंदगी आ कहां से रही है।

पिछले 11 वर्षों के परिणामों पर नजर डालें, तो यौन अपराध और दरिंदगी कम होने के स्थान पर बढ़ती ही जा रही है। यह कैसे कम होगी? हम कानून बनाकर भूल गए हैं कि इससे अपराध पर नियंत्रण हुआ है या नहीं। अपराध बढ़ने के कौन-कौन से कारण हैं? उन कारणों को दूर करने की दिशा में शासन, प्रशासन और सामाजिक स्तर पर कोई प्रयास किए गए हैं या नहीं? सरकार और महिला संगठन यदि सोचते हैं कि दरिंदगी और यौन अपराधों से कानून बनाकर अथवा दंडित करके निपटा जा सकता है, तो यह बेमानी है।

यदि ऐसा होता तो अभी तक यौन अपराधों पर नियंत्रण पा लिया गया होता। नियंत्रण की बात तो दूर, यौन अपराध और दरिंदगी बढ़ती जा रही है। कड़े कानूनों के कारण यौन अपराध करने वाले लोग दरिंदगी करते हैं। सबूत को मिटाने के लिए महिलाओं और बच्चियों को मार डालने तक का कुकृत्य करते हैं। बच्चियों और महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के साथ उनकी जान भी जा रही है।

कानून और नियम जो भी बनाए जाएं, वे सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाए जाएं। यदि कोई अपराध करता हुआ पाया जाता है, तो उसे उस अपराध की कड़ी-से-कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए, लेकिन कानून की आड़ में सुनियोजित अपराधिक घटनाएं बढ़ने लगती हैं तो इस तरह के नियम, कानून बनाने से सरकार को बचना भी चाहिए। सामाजिक स्तर पर भी महिलाओं तथा यौन अपराधों को रोकने के लिए समग्र चिंतन किए जाने की जरूरत है।

छोटी-छोटी बच्चियों से की गई क्रूरता क्या किसी भी धर्म-संप्रदाय या किसी भी समाज के लिए सही है? यह सुनकर जरूर हमारी नसें फूल जाती हैं, हम क्रोधित होते हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद सब सामान्य हो जाता है, फिर एक नई घटना तक के लिए। हर साल 'एनसीआरबी' महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के आंकड़े जारी करता है जिसे देखकर पता चलता है कि इस साल, इस राज्य में बलात्कार, छेड़खानी या दहेज हत्या की इतनी घटनाएं हुई हैं।

ये आंकड़े पुलिस में दर्ज शिकायतों के आधार पर होते हैं। बलात्कार के मामले में कभी कोई राज्य आगे रहता है, कभी कोई। अगर कहीं आंकड़े पिछले साल की तुलना में या पिछली सरकारों की तुलना में कम हुए, तो उनका बखान भी बढ़ा-चढ़ा कर होता है, मानो आंकड़े कम नहीं हुए, बलात्कार की घटनाएं ही ख़त्म हो गईं।
अगर ऐसा हो पाता तो महिलाओं के लिए ये देश वाकई स्वर्ग बन जाता। फिलहाल तो यहां महिला होना और उस पर गरीब, दलित या अल्पसंख्यक होना ही अभिशाप की तरह हो गया है। महिलाओं की सुरक्षा का कोई इंतजाम मजबूत बनाने का दावा करने वाली सरकारें यह नहीं कर पाई हैं, लेकिन चुनावों में महिला सुरक्षा के वादे ऐसे बढ़-चढ़कर होते हैं, मानो किसी की सरकार बन गई तो महिलाएं वाकई बेख़ौफ़ होकर आधी रात को भी निकल सकेंगी।

वैसे राज्य कोई भी हो, सरकार किसी भी दल की हो, महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, यह एक तल्ख हकीकत है। इस हकीकत से समाज भी भली-भांति परिचित है, फिर भी वह बेपरवाह बना हुआ है। धर्म पर ख़तरे की बात से समाज उद्विग्न हो जाता है। कमाल की बात है कि बलात्कार की भयावह घटनाओं को देख-सुनकर भी इस समाज का मन विचलित नहीं होता? इतने संवेदनहीन और हैवानियत से भरे समाज में महिलाएं किस तरह अपनी सुरक्षा करें, यह विचारणीय है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)


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